16 दिन की महालक्ष्मी व्रत कब और कैसे करते है
16 दिन की महालक्ष्मी व्रत कब और कैसे करते है - महालक्ष्मी व्रत या गजलक्ष्मी व्रत का हिन्दू धर्म में बहुत महत्त्व है। इस दिन महालक्ष्मी जी की विशेष प्रकार से पूजा की जाती है। पूजा के समय व्रत कथा को पढ़ना या सुनना अतयंत आवश्यक होता है। यह महालक्ष्मी व्रत को आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। महालक्ष्मी का व्रत गणेश चतुर्थी के चार दिन बाद से प्रारंभ होता है। जो लोग 16 दिनों तक महालक्ष्मी का व्रत नहीं रख पाते हैं,वे पहले और आखिरी दिन महालक्ष्मी व्रत रखते हैं। महालक्ष्मी व्रत कथा इस प्रकार है -
महालक्ष्मी व्रत कथा-एक समय की बात है महर्षि श्री वेद व्यास जी हस्तिना पुर में पधारे। उनके आने की खबर सुनकर महाराज ध्रतराष्ट्र ने आदर सहित राजमहल में ले गए। महर्षि वेदव्यास जी को सिंहासन पर बैठाकर उनका पूजन किया गया |पूजन के बाद माता कुंती और माता गांधारी ने हाथ जोड़कर महर्षि से पूछा कि हे! महर्षि आप त्रिकालदर्शी है| हम आपसे प्रार्थना करते कि आप हमे कोई ऐसा व्रत या पूजन बताये जिसको करने के बाद हमारे परिवार और राज्य व् नगर में सुख, सम्पत्ति और धन -धान्य से परिपूर्ण हो जाये |
यह सुनकर श्री वेदव्यास जी ने कहा" हमआप को एक ऐसे व्रत और पूजन को बताते है जिसको करने से सदा लक्ष्मी जी का वास होता है तथा सुख-समृद्धि का जीवन में वास होता है। यह महालक्ष्मी जी का व्रत है इसे गज लक्ष्मी व्रत भी कहा जाता है। जिसे भाद्रपद की शुक्ल अष्टमी से आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक कीया जाता है।“ तब माता कुंती और माता गांधारी ने कहा – हे महर्षि! इस व्रत कि विधि विस्तार पूवर्क बताने कि कृपा कीजिये।
तब वेद व्यास जी बोले- हे देवी ! यह व्रत भाद्रपद की शुक्ल अष्टमी से प्रारम्भ कीया जाता है इस दिन स्नान करके सोलह सूत के धागो से एक डोरा बनाये उसमे सोलह गाँठ लगाए उसे हल्दी से पीला करे प्रति दिन सोलह दूब व् सोलह गेहू के दाने चढ़ाये आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन मिटटी का एक हांथी बनाये तथा महालक्ष्मी जी की प्रतिमा स्थापित करके पूरी विधि के साथ पूजा करे। पूजा करते समय फूल ,अक्षत ,रोली, मोली,पान सुपारी,नारियल ,कलावा तथा मिष्ठान को सोलह की संख्या में रखे। इस महालक्ष्मी की पूजा में सोलह के अंक का बहुत ही महत्त्व होता है।
इसके बाद 4 ब्राह्मण और 16 ब्राह्मणी को भोजन कराकर सभी को दक्षिणा देकर विदा करे। उनके जाने के बाद स्वयं भी भोजन करे"। इस प्रकार श्रद्धा भक्ति से महालक्ष्मी का पूजा करने से आपके राज्य में सदा अभिवृद्धि होती रहेगी। इस प्रकार महालक्ष्मी व्रत का विधान बताकर महर्षि वेद व्यास जी अपने आश्रम की ओर चले गये । महर्षि वेद व्यास जी केजाने के बाद भाद्रपद की शुक्ल अष्टमी से माता कुंती और माता गांधारी अपने -अपने महलो में नगर की स्त्रियों के साथ व्रत को आरम्भ कीया।
इस प्रकार 15 दिन बीत गए सोलहवे दिन गांधारी ने नगर की प्रतिष्ठित महिलाओ को महल में बुलवा लिया। माता कुंती के घर कोई भी महिला नहीं आई और माता कुंती को गांधारी ने भी नहीं बुलाया इसलिए माता कुंती को अपना बहुत ही अपमान महसूस किय। माता कुंती ने पूजन की कोई भी तैयारी भी नहीं की और वे उदास होकर बैठ गयीं। जब माता कुंती के पांचो पुत्रो ने कुंती को उदास बैठा देखा |तब उनके पांचो पुत्रो ने पूछा की माता आप उदास क्यों बैठी हैऔर पूजा की तैयारी क्यों नहीं की।
तब माता कुंती ने कहा -मेरे प्रिय पुत्रो आज महालक्ष्मी केपूजा का उत्सव माता गांधारी के घर में मन्या जा रहा है। उन्होंने नगर की सभी प्रतिष्ठित महिलाओ को महल में बुलवा लिया है और उनके सौ पुत्रो ने मिटटी का एक विशाल हांथी भी बनाया है इसीलिए सभी महिलाये उस बड़े हांथी की पूजा करने को उनके घर चली गयी यह सुनकर अर्जुन ने कहा कि हे माता !आप परेशान न हो और आप पूजा कि तैयारी करे और नगर में ढिढोंरा पिटवा दे कि हमारे यहा स्वर्ग से ऐरावत आ रहा है। विशाल पूजा कि तैयारी भी की और अर्जुन ने एक तीर से इंद्रा के यहां से ऐरावत को बुला लिया। तब पुरे नगर में शौर हो गया कि कुंती के घर जीवित हांथी ऐरावत आ गया है
नगर के सभी बूढ़े बच्चे व् नगर की सभी महिलाये कुंती के घर आ गए और गांधारी के महल में भी हलचल मच गयी की कुंती के घर ऐरावत आ रहा है आँगन में रंग-बिरंगे चौक पुरे गए। रेशमी वस्त्र भी बिछाए गए और ऐरावत के आने पर उसके आभूषणो की आवाज गूंजने लगी। और उस पर महालक्ष्मी जी की प्रतिमा को हांथी पर इस्थापित किया। सभी नर-नारियो ने ऐरावत को सुगन्धित फूल मालाओ को पहनाय। मीठे पकवान भी ऐरावत को खिलाया गया। राजपुरोहित के द्वारा पूजा भी की और सोलह गांठो वाला डोरा भी अर्पित किया बाद में सभी महिलाओ ने डोरा को हाथो बांधा।
ब्राह्मणो को भोजन भी कराया गया और साथ में स्वर्ण आभूषण व् सुंदर वस्त्र भी दिए गए। सभी महिलाओ ने मिलकर गीत भी गाये भजन कीर्तन भी पूरी रात किये। प्रातः काल राजपुरोहित द्वारा महालक्ष्मी जी को नदी के जल में विसर्जन किया यह व्रत को करने से घर में सुख समृद्धि बनी रहती है