नवजात शिशु के रख -रखाव का सही तरीका | जन्म के बाद बच्चे को एक खास प्रकार की देखभाल

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नवजात शिशु के रख -रखाव का सही तरीका-   बच्चे के जन्म के बाद बच्चे को एक खास प्रकार की देखभाल कीआवश्यकता होती है। भले ही डिलीवरी सामान्य हो या सीजेरियन। जब बच्चा इस संसार में आंखें खोलता है तो उसे सुरक्षित महसूस कराने और सबसे पहले गर्मी देने के लिए मां के सीने पर रखा जाता है, जिससे वह अपनी मां की त्वचा को महसूस कर सके वह बिलकुल ही नाजुक और मासूम होता है उसे जन्म के तुरंत बाद माँ के सीने से लगाकर गर्मी देना आवश्यक होता है साथ ही आधे घंटे की भीतर माँ का ही दूध ही पिलाना परम् आवश्यक होता है।

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यह माँ का पहला दूध ही नए जन्मे बच्चे के लिए अमृत से कम नहीं होता है यही माँ का दूध ही नए जन्मे बच्चे को अनेक प्रकार की बीमारियों से बचाता है इसके बाद उसे मां के पहले दूध और नींद की जरूरत होती है। फिर उसका वजन किया जाता है और विटामिन के इंजेक्शन भी दिए जाते हैं ताकि ब्लीडिंग को रोका जा सके। इसके अलावा भी जन्म के पहले 24 घंटों में कई तरह की जांच करनी होती हैं।जो की इस प्रकार है -  

 

सांस की गति- जैसे ही बच्चा जन्म लेता है, डॉक्टर उसके मुंह और नाक से म्युकस और एमनियोटिक फ्ल्यूड को साफ करने के लिए सक्शन करते हैं, जिससे बच्चा खुद से सांस लेना शुरू कर सके। जन्म के एक मिनट और पांच मिनट के बाद सांसों की गति मापी जाती है।

 

पहला मेडिकल चेकअप -जन्म के एक घंटे बाद डॉक्टर शिशु के रेस्पिरेशन रेट, बॉडी टेंप्रेचर, हार्ट बीट्स और मसल्स मूवमेंट के अलावा उसके रिएक्शंस, बाई बर्थ डिजीज और जॉन्डिस की भी जांच करते हैं। जन्म के 24 घंटे के भीतर शिशु को यूरीन और स्टूल जरूर डिस्चार्ज करना चाहिए। अगर इसमें जरा भी देर हो या फिर उसके यूरीन या स्टूल में गड़बड़ी दिखाई दे तो इस बारे में डॉक्टर को जरूर बताएं।

 

फर्स्ट डाइट - बच्चे के जन्म के बाद, बच्चे का सबसे पहला भोजन, मां का पहला दूध होता है। यह थोड़ा-सा चिपचिपा और पीले रंग का होता है। मां के पहले दूध को कोलोस्ट्रकम कहते हैं। इसमें कईं एंटीबायोटिक्स होते हैं, जो बीमारियों से बच्चे को बचाते हैं और बच्चे के इम्यून सिस्टम को विकसित करने में सहायता कर उसे विभिन्न इंफेक्शंस से बचाते हैं। एंटीबॉयोटिक्स से भरपूर यह दूध नवजात शिशु के लिए एक परफेक्ट फूड माना जाता है। यह बच्चे को न सिर्फ पोषण ही नहीं सुरक्षा भी प्रदान करता है। जन्म के एक घंटे के भीतर ही यह बच्चे को दे देना चाहिए।

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नींद - पहली फीडिंग के बाद बच्चा छह-सात घंटे सोता है।संसार में अपने पहले दिन बच्चा जागने से अधिक सोता है। कईं बच्चे तो फीड करते-करते ही सो जाते हैं तो घबराएं नहीं, क्योंकि ऐसा होना बिल्कुल नॉर्मल है। क्योकि बच्चे की आँख खोलने के बाद व् दूध पीने के बाद उसे नींद बहुत तेज आती है और वह सो जाता है।  इन सभी जांच और देखभाल के बाद जब डॉक्टर मां और शिशु की सेहत से पूरी तरह संतुष्ट हो जाएं तभी उसे हॉस्पिटल से घर लेकर जाएं। उसके बाद उसे सभी टीके सही समय पर लगाएं। ध्यान रखें कि बच्चे को 24 घंटे पूरे होने से पहले नहलाना नहीं चाहिए।कभी -कभी ऐसा भी देखा गया है की नए जन्मे बच्चे को तो नहलाते-नहलाते ही सो जाता है तो घबराएं नहीं, क्योंकि ऐसा होना भी  बिल्कुल नॉर्मल है क्योकि बच्चे की आँख खोलने के बाद व् दूध पीने के बाद उसे नींद बहुत तेज आती है और वह सो जाता है।

 

दूध पिलाने का सही तरीका-नए जन्मे बच्चे को सबसे पहले माँ का ही दूध पिलाना चाहिए। यह नए जन्मे बच्चे के लिए माँ का दूध उसके लिए एक आवश्यक व् पोषक आहार है जो की बच्चे को बीमारियों से लड़ने में मदद करता है जो बच्चे जन्म से माँ का दूध ही पीते है उनकी आखो की रौशनी तेज होती है ,हड्डिया मजबूत होती है ,जो बच्चे अपनी माँ का दूध पीते है उन्हें बीमारिया जैसे की डायरिया नहीं होता ,निमोनिया नहीं होता, सबसे अच्छी बात डॉक्टर की भी कम आवश्यकता होती है। शुरू में 3-3 घंटे पर माँ का दूध पिलाना चाहिए 6 महिने तक माँ का दूध ही लगता है और कुछ नहीं। एक आवश्यक बात नए जन्मे बच्चे को जब भी ले पहले हाथ अच्छे से किसी भी साबुन से धो ले फिर साफ कपड़े से पोछने के बाद ही ले।  

 

बच्चे को सुलाएं-नवजात शिशुओं को स्वस्थ और मजबूत बनना जारी रखने के लिए बहुत सारे आराम की ज़रूरत होती है -- कुछ बच्चे एक दिन में 16 घंटे आराम कर सकते हैं। हालांकि एक बार आपका बच्चा तीन महीने का या उससे बड़ा हो जाए तो, वह एक समय में 6-8 घंटे तक सोने में सक्षम होता है, प्रारंभ में, आपका बच्चा एक बार में केवल 2-3 घंटे के लिए सोता है और यदि उसने 4 घंटे से कुछ खाया नही है तो उसको नींद से उठाना पड़ता है।

 

(1)कुछ बच्चो को पैदा होने पर दिन और रात में भ्रम होता है। यदि आपका बच्चा रात में अधिक सक्रीय है तो, रात्रि उत्तेजना को सीमित करने के लिए रोशनी मंद रखें और धीमे बात करें, और तब तक तक धैर्य रखें जब तक आपके बच्चे का नींद का चक्र सामान्य नही हो जाता।

 

(2)यह सुनिश्चित करें की आप अपने बच्चे को उसकी पीठ के बल लिटाते हैं ताकि सिड्स (SIDS) का जोखिम कम हो सके।

 

(3)आपको अपने बच्चे के सिर की स्थिति बदलते रहनी चाहिए -- चाहे उसका झुकाव बायीं तरफ हो या फिर दायीं -- ताकि वह "नरम जगह" को दूर कर सकें, जो की बच्चे के एक ही स्थिति में सोने की वजह से उसके चेहरे पर हो सकता है।

 

(4)बच्चे को एक ही स्तिथि में नहीं सुलाना चाहिए करवट बदलते रहना चाहिए और सर के नीचेगर्दन की तरफ मुलायम सा तकिया या राई की तकिया बिलकुल ढीली बनाना चाहिए जिससे बच्चे का सर भी पीछे से चपटा न हो सके खास तोर पर ध्यान रखना चाहिए |

 

(5) नए बच्चे को गोदी में उठाने के लिए सबसे सही तरीका है दोनों पैर को बराबर कर के पकड़कर नीचे कमर पर हाथ लगाते हुए सर पर हाथ लगाकर उठने से गोदी में लेना चाहिए क्योकि छोटे बच्चे के हाथ ,हसली ,कंधे उतरने का डॉ होता है इसलिए खास ख्याल रखा जाता है छोटी सी गलती भी बच्चे को नुकसान पहुंचा सकती है|    

 

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