क्या सच-मुच भगवान् होते है ? यदि होते है तो कहाँ है ?
क्या सच-मुच भगवान् होते है ? यदि होते है तो कहाँ है ?
प्रकृति- प्रकृति में इतना सब कुछ है की जहाँ भी देखो पेड़, पौधे, पशु, पंछी, नदी, नाले, पहाड़, आकाश, पृथ्वी, चाँद, तारे,सूरजआदिकी संरचना किसी ने तो की है किसने की है,वह कौन है, कहाँ है किसे कहते है,आदि यह सब भी बताते है कि भगवान् है ,ईश्वर है दुःख पड़ते है ईश्वर ही याद आते है सुख हो तो भी शुक्रिया किया जाता है। यही तो सुनते आ रहे है तथा करते भी आ रहे है।
पेड़-पौधे कैसे बढ़ते है क्या खाते है क्या पीते है कोई नहीं देखता परन्तु बस इतना ही पता है कि पानी ही जीवन है कैसे घूप निकलती है,कैसे शाम होती है,दिन-रात कैसे होते है, पानी कैसे बरसता है ,कैसे सर्दी पड़ती है ,कैसे गर्मी पड़ती है ,कुछ नहीं पता कोई नहीं जानता यही तो प्रकृति है या कह सकते है कि भगवान् होता है आज दुनिया में अनगिनत प्रजाति के पेड़-पौधे, मिट्टी, जल व खनिज हैं। इन सबका निर्माण कृत्रिम तरीके से नहीं बल्कि स्वतं हुआ है। इन सबकी उत्पत्ति ब्रह्माण्ड के साथ ही हुई है।
मानव शरीर संरचना-ईश्वर के अस्तित्व का दूसरा महत्वपूर्ण प्रमाण स्वयं मानव शरीर की संरचना है। उसमें मौजूद आंख, नाक, कान, लीवर, ह्रदय सभी एक मशीन की तरह काम करते हैं। इन सभी का निर्माण ईश्वर ने किया है, जो किसी चमत्कार से कम नहीं है।भगवान हैं और उन्होंने ही इस श्रष्टि का निर्माण किया है और सब कुछ उसके द्वारा ही किया जा रहा है|
मन में विश्वास-ईश्वर के वजूद का एक प्रमाण यह भी है कि लोग मुसीबत से निकलने व खुशहाली के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं। उन्हें यकीन है कि ईश्वर उनकी मदद करेगा। अलग-अलग धर्म व समुदाय के लिए भगवान का स्वरूप भिन्न है, लेकिन सबका एक ही विश्वास ईश्वर के अस्तित्व को साबित करता है।
भगवान के होने का तात्पर्य चमत्कार से भी है। माना जाता है कि ईश्वर सर्वशक्तिशाली हैं। उनकी इसी शक्ति की झलक दुनिया में मौजूद कई चीजों में देखनें को मिलती है। जैसे गंगा जल के गंदे होने पर भी उसमें कभी कीड़े न पड़ना, धामिक स्थलों में विज्ञान के सिद्धांतों का फेल हो जाना आदि ईश्वर के वजूद को दर्शाता है।
हम बचपन से ही भगवान और देव-देवियों की प्रार्थना करते आ रहे हैं, उनकी भक्ति करते आ रहे हैं और इसी तरह अलग-अलग तरीके से भगवान एवं धर्म से जुड़े हुए हैं। फिर भी, हम पूछते हैं कि भगवान कौन हैं? क्या हकीकत में भगवान का अस्तित्व हैं? क्या वास्तव मे भगवान हैं? कहाँ हैं भगवान? क्या किसी ने भगवान को देखा हैं या उनका अनुभव किया हैं? भगवान का पता क्या हैं? यह ब्रह्मांड किसने बनाया? क्या भगवान के अस्तित्व का कोई सबूत हैं? क्या ये दुनिया भगवान चलाते हैं? भगवान का न्याय क्या है? हम भगवान के साथ अभेद कैसे हो सकते हैं? क्या मैं भगवान का प्रेम पा सकता हूँ? क्या भगवान से की हुई हमारी प्रार्थनाओं का हमें ज़वाब मिलता हैं? क्या भगवान एक है या अनेक हैं? क्या भगवान के प्रेम को महसूस कर सकते हैं? भगवान और विज्ञान के बिच कोई सबंध हैं? नि:शंक भरे विकसित दिमाग़ में ऐसे कई प्रश्न उठते हैं। आखिरकार भगवान को जानने की आपकी खोज ही आपको यहाँ ले आई हैं!
एक बार की बात है। दो भाई होते है दोनों ही अनाथ होते है लेकिन एक महात्मा जी उनको सहारा देते है। जब दोनों बड़े होते है तो एक बडा भाई अच्छे संस्कार वाला होता है लेकिन छोटा भाई चोर -लुटेरा बन जाता है एक बार क्या होता है क बड़ा भाई रास्ते पर जाते समय पेअर में कील लग जाती है और बड़ा घाव हो जाता है लेकिन छोटे भाई को एक खजाना मिलता है तब बड़ा भाई जाकर अपने गुरु जी से कहता है की मै हमेशा सच का साथ देता हूँऔर किसे को सताता भी नहीं हूँ और देखो मुझे यह चोट कितनी अधिक लगी है और छोटे भाई को देखो उसे खजाना मिला है यह क्या है ?
तब गुरु जी कहते है की सुनो सब ऊपर वाले के हाथ में है वः सब देखता है हम नहीं जानते लेकिन वः दिखाई नहीं देता पर होता है सुनो तुम्हारे छोटे भाई के हाथ में आज के दिन राज योग था पर उसके बुरे कर्मो के कारणथोड़ा सा धन ही उसने पाया है लेकिन तुम्हारी आज के दिन मृत्यु लिखी थी अच्छे कर्मो के कारण ही तुम्हे सिर्फ कील लगी लेकिन ईश्वर ने तुम्हारे प्राण बचा लिए यह कम है अर्थार्त ईश्वर को सब पता है क्या करना है वः पहले से ही निश्चित होता है लेकिन अच्छे कर्मो के कारण ही सब ठीक हो पता है|
"मानो तो देव है नहीं तो पत्थर" यह कहावत तो सुनी होगी आपने।अगर आस्था है तो पत्थर में भी भवन दिखाई देंगे नहीं तो भगवान् में नहीं पत्थर दिखाई देंगे इसलिए आपकी आस्था पर ही भगवान का अस्तित्व निर्भर है हम यह कह सकते है की पृथ्वी पर सचमुच भगवान् है क्योकि हमारे साथ जो कुछ भी घटित होता है वः कहि न कहि ईस्वर की मर्जी पर ही होता है जबकि पृथ्वी पर कुछ देवता प्रत्यक्ष है सूर्य देव और चंद्र देव|
जो लोग ईश्वर से संपर्क करते हैं उनका दुःख ख़त्म हो जाता है | लोग संपर्क ही नहीं करतें और कहतें हैं दुःख क्यों है ? जो संपर्क करेगा वो दुःख- अत्याचार से मुक्त हो जाएगा |जैसे जैसे अधर्मी लोग बढ़ते जायेंगे वैसे वैसे अत्याचार बढ़ते जायेंगे - और जैसे जैसे धार्मिक लोग भगवान् को मानने वाले लोग बढ़ेंगे अत्याचार कम होगा |
और अंत में
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
भावार्थ : हे भारत! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूपको रचता हूँ अर्थात साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ॥7॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥
भावार्थ : साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए
और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ॥