अहोई अष्टमी (पुत्र) व्रत कथा, पूजा विधि | अहोई अष्टमी की कहानी | अहोई माता की पूरी कथा

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अहोई अष्टमी (पुत्र) व्रत कथा, पूजा विधि | अहोई अष्टमी की कहानी | अहोई माता की पूरी कथा  - कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अस्टमी को अहोई अष्ट्मी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन महिलाये अपने बच्चो की लम्बी उम्र, संतान सुख के लिए और समृद्धि और सुख की कामना के लिए व्रत रखती है। अहोई माता की पूजा में हमे जिन चीजों की आवश्यकता होती है वह इस प्रकार है - mataवह इस प्रकार है -केले  ,सिंघाड़े , मूली सककर पारे मट्ठी बायेंए का सामान। आपके जितने बच्चे है उतने ही करवा ,एक पानी का लोटा ,एक कटोरी चावल ,एक सरसो के तेल का दिया ,अब अहोई माता का फोटो लगाकर उसके आगे चावल का ढेर लगा कर उसके ऊपर दिए को जलाना है। इसके बाद कर्वे के अंदर सककर पारे ,मट्ठी नामकीन और मीठी दोनों हिडल देने है। और अब केले और सिंघाड़े कर्वे के ऊपर रख लेना है। 

अहोई माता की पूरी कथा - एक साहूकार के सात बेटे और सात बहुये थी और एक बेटी थी। वे सब घर को लीपने और पोतने के लिए खेत में मिटटी लेने गए। साहूकार की बेटी जहाँ पर मिटटी खोद रही थी उसी पेड़ के नीचे स्याहु के बच्चे भी थे और साहूकार की बेटी के हाँथ से स्याहू माता के बच्चे मर गए। तब स्याहु माता को गुस्सा आया और बोली की तूने मेरे बच्चो को मारा है और ऐसी कारण अबमैं तेरी कोख को बांध दूंगी। तब वह साहूकार की बेटी दर हई और उसने अपनी भाभियो को बोलै की आप मेरे बदले अपनी कोख बंधवा लो तो सब भाभियो ने मना कर दिया तो सबसे छोटी भाभी ने उसकी बात मान ली और स्याहु माता ने उसकीकोख को बांध दी। 

अब छोटी भाभी को जो भी संतान होती तो सात दिन बाद वह मर जाते। ऐसे ही उसके सात बेटे मर गए। इसका निवारण और कारन को जानने की लिए एक पंडित को बुलवाया। वो पंडित उन्हें उस घटना को याद दिलाता है की जब स्याहु ने छोटी बहु की कोख को बांध दिया था। और उसका निवारण भी बताया। पंडित ने बताया की तुम सुरही गाये की सेवा करो। क्योकि सुरही गाये स्याहु माता की सहेली है। और वो ही तुम्हारी कोख को छुड़वा देंगी। 

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छोटी  बहु ने वैसा ही किया सुरही गाये की खूब सेवा की। छोटी बहु रोज सुबह उठकर गोबर साफ करती साफ़ पानी पीने को देती और अच्छे से नहलाती और खूब सेवा की जिससे सुरही गाये बहुत खुश हुयी फिर सुरही गाये छोटी बहु को स्याहु के पास लेकर जाने लगी और रास्ते में दोनों एक जगह रुककर आराम करने लगे। तभी एक साप गरुडनी के बच्चो को खाने के लिए जाने लगी। छोटी बहु उसके बच्चो को बचाने के लिए उस साप को मार डाला। 

जब गरुडनी को इस बात का पता चला तो वह बहुत खुश हुई तब गरुडनी छोटी बहु और सुरही गाये को स्याहु माता के पास ले गई। और तब सुरही माता स्याहु माता को छोटी बहु के द्वारा की गयी सेवा को बताती है और रास्ते की घटना को भी बताती है। की कैसे छोटी बहु ने गरुड़नी के बच्चो को बचाया । यह सब सुनकर स्याहु माता बहुत खुश हुई और छोटी बहु को सात बेटे को होने का वरदान दिया। स्याहु माता के कहे अनुशार छोटी बहु को सात बेटे हुए। मान्यता है की जो भी कोई अहोई माता की पूजा सच्चे मन से , विधि -विधान से करती है। अहोई माता की कथा सुनते और सुनाते है उसकी संतान का जीवन खुशियों से भर जाते है। 

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कोई भी संकट उसकी संतान को कष्ट नहीं दे पाता है। उनकी उम्र लम्बी और निरोगी होती है। अहोई माता ने जैसे छोटी बहु का जीवन खुशियों से भर दिया। वैसे ही सबका जीवन खुशीओ से भर देती है। अनहोनी से बचाने वाली माता "पारवती माता" ही है इस दिन माँ पारवती की ही पूजा की जाती है। अहोई का अर्थ होता है अनहोनी से रक्षा करने वाली। जिन लोगो के संतान दीर्धग आयु नहीं होती हो या कोख में ही नस्ट हो जाती है उनके लिए यह व्रत बहुत ही शुभकारी है। अहोई माता के व्रत करने से संतान का कैरियर, शिक्षा, कारोबार तथा जीवन की बढ़ाये भी दूर हो जाती है। 

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Article Posted By: Manju Kumari

Work Profile: Hindi Content Writer

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HI Manju,

It is realy Nice article thanks for sharing. Keep sharing information.

 

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