छठ महापर्व पर ज़रूर सुनें छठी मैया की कथा | Chath Mahaparv Chath Mata Katha
छठ महापर्व पर ज़रूर सुनें छठी मैया की कथा | Chath Mahaparv Chath Mata Katha - बहुत समय पहले की बात है एक परिवार में माँ बेटा और उसकी बहु रहती थी बूढी माँ छठ माता की परम भक्त थी और वह हर साल छठ माता का व्रत किया करती थी। परन्तु बहु नए विचारो वाली थी वो पूजा पाठ में विश्वास नहीं करती थी एक बार जब बूढी अम्मा छठ माता की पूजा की तैयारी कर रही थी बूढी अम्मा का बेटा आम की लकड़ी तोड़कर ला रहा था और पूजन की सामग्री भी बाजार से खरीद कर ला रहा था तभी बुढ़िया माँ की बहु बूढी अम्मा पर हॅंस रही थी। और कहने लगी की अम्मा दुनिया कहाँ से कहाँ पहुंच गयी है।
लोग आसमान को छू रहे है। और आज भी आप इतनी अंधविश्वासी हो। पढ़ी - लिखी बहु की बातो का बूढी माता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। बूढी अम्मा तो अपने ही धुन में मस्त थी। जब बूढी अम्मा पूजा करने को तैयार हुयी परन्तु बहु ने कहा - की माई ये सब बेकार है इस उम्र में तीन दिन भूखी रहोगी तो बीमार पड जाओगी और अपनी सेहत को भी बिगाड़ लोगी। भूख प्यास से न जाने क्यों लोग खुद को सताते है। नई बहु की ये बाते सुन कर उसके भोलेपन पर बुढ़िया माँ मुस्कुराने लगी और कहा- "की अरे बहु ! शादी के बाद मेरे संतान नहीं हो रही थी तब मैंने यही व्रत को किया था तब छठ मैईया ने मेरी पुकार सुन ली।
तुझे पता है बहू ये तेरा पति भी छठ मईया का ही प्रशाद है। यह अंधविश्वास नहीं है बहू। माता का कण -कण में निवास है। मेरी बात को मानो और तुम भी मेरे साथ छठ मईया के व्रत को कर ले, तो छठ मईया तेरी भी गोद को भर देंगी। मगर वह नए युग की सोच वाली बहू किसी की कहाँ सुनने वाली थी वो मुँह को टेढ़ा कर के सासु माँ से बोली की मुझको कौन सा दुःख है और मैं इस पूजा - पाठ को नहीं करने वाली। सुन्दर पति मिला है जीवन में सब सुख मिला है।आलिशान घर है दिन रात मस्त रहती हूँ। पूरे गांव में मुझ जैसा धनवान कहाँ।
करम प्रधान है सासु माँ,करम प्रधान है इस दुनिया में। बाकी सब बेकार की बाते है। सासु माँ के लाख समझाने पर भी बहू पर कोई असर नहीं हुआ। वह नास्तिक थी बार -बार छठ माता की बुराई किये ही जा रही थी। तब उसका पति वहाँ आया और उसने भी उसको समझाने की कोशिस की और उसने कहा - की देखो प्रिये ! देवी -देवताओ के आगे अंहकार करना ठीक बात नहीं है। तुम भी व्रत और पूजा करने में माता का सहयोग करो।" लेकिन वह तो अपने पति की भी बात को मानने को भी तैयार नहीं थी।
सीधे -सीधे बोल दी "की मुझे नहीं पड़ना इस अंधविश्वास के चक्कर में"। पति भी थक गया उसे समझाते -समझाते। और बोला - ठीक है तुम्हे जो करना है वही करो , मैं तो छठ माता का घाट सजाने जा रहा हूँ। जिससे मेरी माँ छठ मैईया के श्री चरणों में अपने सर को झुका सके। बेटा हाँथ में कुडल लेकर घाट पर चला जाता है। छठ माता की पूजा के लिए सुन्दर घाट को बनाने में जुट जाता है। अपनी माँ की पूजा की तैयारी में माँ की मद्त करता है आम की लकड़ी को जलाकर अपनी माँ के साथ ठीकुवा सिकवाता है। पूरे भक्ति भाव से दोनों माँ और बेटे छठ का पर्व को मनाते है बूढी अम्मा के बेटे ने घर और द्वार को गाये के गोबर से लीपता है।
उसी समय उसकी पत्नी पाव में सेंडल पहने हुए वहाँ से गुजरती है। और कहती है हाय ! पता नहीं ये कौन सा त्यौहार है और पूरे घर को ही गोबर ही गोबर बना के रखा है। अब तो घर से बहार निकलना मुश्किल हो रहा है। कैसे गोबर की दुर्गन्ध आ रही है। और उसने अपने पति से कहाँ की तुम और तुम्हारी माँ बहुत बड़े भक्त बनते हो देखोजी आपने बदन से भी गोबर की बदबू आ रही है। अब तो नहा कर ही घर आना। बहू की बाते सुनकर बूढी अम्मा बहू को समझाती है की अरे बेटा तुझे नहीं पता की गोबर को तू जब दुर्गन्ध कह रही है उस गोबर में बहुत से ऐसे रसायन पाए जाते है जिसके लीपने से घर की बहुत से बीमारिया कोषों दूर रहती है।
इतना सुनकर बहू और बिगड गयी। झुंझला कर बूढी अम्मा से बोली की ह ! पहले तो लकड़ी पर ठीकुआ बनाया और अब गोबर से लीपकर पूरे घर को गोबर। इन दोनों की बहस के बीच बेटा आकर बोला - की अरे प्रिये ! "तुम माता से झगड़ा मत करो। चलो अब जाकर तैयार हो जाओ छठ माता के घाट पर जाने का समय हो गया है "। बैंड -बाजे वाले को बुलवाकर दौरा उठा कर वे सब घाट पर चल दिए। पीछे -पीछे बूढी माँ गीत गाते चल रही थी। पर बहू को तो इन सब में कोई रूचि नहीं रखती। वो तो सज - धज कर मटक -मटक कर चल रही थी।
बूढी अम्मा और उसके बेटे ने बहू को बहुत समझाया तो बहू अपने पति और सासु माँ के साथ घाट पर तो चली जाती है वे जैसे ही घाट पर पहुँचती है वो पूजा की बजाए मेला घूमने में लग जाती है कुछ देर बाद उसका पति बहू को वहाँ न पाकर उसे ढूढ़ने में लग जाता है। तो कहि हलवाई की दूकान पर स्वादिष्ठ पकवान का आनंद उठाते नजर आती है।आकर कहता है - प्रिये ! "ये क्या करती हो तुम। यहां तक आयी हो तो माँ के साथ बैठो"। पत्नी ने झुंझलाकर बोली - "न जी मैं पूजा पाठ में नहीं बैठने वाली ,न ही घाट पर आने वाली हूँ मैं तो मेला घूमूंगी। जम के खाऊँगी और पीऊँगी। तुम अपना पूजा - पाठ करो। मेरा पूजा -पाठ से कोई लेना - देना नहीं है।"
इनकी बहस आपस के सभी लोग देख रहे थे शर्मिंदा होकर वह पति वहाँ से चला गया। और छठ घाट की ओर जाने लगा। ईख खड़ा करने को वही बेटा घाट की ओर जाता है ओर जैसे ही वह नहाने को वह दुप्की लगाता है ओर वह डूब जाता है डूबता - डूबता वह जोर - जोर से चीखने लगता है की बचाओ - बचाओ। लेकिन किसी को भी ये आवाज कहाँ से आ रही है पता ही नहीं चलता। कोई तो जाओ ढूंढ के लाओ सब यही चिल्लाने लगे। जैसे ही बूढी अम्मा को पता चला की उसका बेटा नदी में डूब गया है वो छाती पीटकर रोने लगी ओर छठ माता से ही सवाल कर दिया "अरे माँ - मैं माँ हूँ और तू भी माँ है और तू कैसी माँ है जिसने एक माँ से उसका बेटा छीन लिया है। "
जब से मेरी शादी हुई है मैं पिछली 30 साल से पूजा करती आ रही हूँ। माँ बोल मेरी भक्ति में कौन सी कमी आ गयी थी जो तूने मेरी गोद को सुना कर दिया मुझसे या मेरे लाल से ऐसी कौन सी भूल हो गयी बोल थी जो तूने मेरा लाल छीन लिया। अरे माँ मैं तो छठ घाट तेरी पूजा करने आयी थी तूने तो मेरी दुनिया ही उजाड़ दी। हे ! माँ यदि जाने अनजाने में कोई गलती हो गयी हो तो उसकी सजा मेरे बेटे को मत दो मेरा लाल लोटा दो। यदि तूने मेरा लाल नहीं लौटाया तो ये तेरी बूढी भक्त यही इसी नदी में कूद कर अपने प्राण त्याग देगी।
अब तू या तो मेरे बेटे को लोटा या मेरे भी प्राण ले ले। उधर मेले में सबको आगाह किया जा रहा था की "छठ घाट पर आये सभी व्यक्तियों को सूचित किया जा रहा है की घाट के गहरे भाग में न जाये। अभी - अभी सूचना मिली है की एक व्यक्ति गहरे पानी में डूब गया है। पानी में आगे जाने पर खतरा होने की आशंका है। इसलिए कोई भी नदी के गहरे भाग में न जाये । ये बात सुनकर बहू दौड़ी - दौड़ी जाती है। वहाँ जाकर जब वह देखती है की उसकी सासू माँ दहाड़ मार कर रो रही है और उसका पति इस दुनिया में नहीं रहा। तो उसे सदमा लग जाता है।
वह जोर - जोर से चीखने लगती है और रोने लगती है। पागलो की तरह लोगो के ईंख को उठा कर फेकने लगती है। चीख - चीख कर बूढी माँ से पूछती है की मैंने तो पहले ही कहा था की माँ छठ - वट के पूजा में मत पड़ो। सब ढोंग है अंधविश्वास है। तेरे ध्यान न देने के कारन आज मेरा पति मुझसे दूर चला गया है। अपनी माता को भला बुरा बोलते हुए वह छठ माता को कोसने लगी। इस घटना को देखकर वहाँ खड़े सभी लोगो की साँसे रुक जाती है। सब लोग आपस में बात करते है की बेचारी के साथ बहुत बुरा हुआ। और मन ही मन सभी लोग छठ माता को पुकारने लगते है। की हे माँ !इस बुढ़िया माँ की पुकार सुन लो।
छठ माता तो है ही दयालु ! वह कभी अपने भक्तो को निराश नहीं करती। कभी उन्हें बेसहारा और उदास नहीं छोड़ती। इधर पुत्र वियोग में बूढी माँ अपनी जान देने को पानी में जाती है। वैसे ही नदी के अंदर से एक लहर उठती है और वो लहर किनारे की और जोर से आती है। उसी लहर में से उस बूढी माँ का बेटा भी बाहर निकल आता है। इस दृश्य को देखकर वहाँ खड़े सभी लोगो की आँखे खुली की खुली रह जाती है। सब की आँखों में खुशी के आंसू आ जाते है। बाद में बूढी माँ ख़ुशी से जोर - जोर से रोती है। और बहू भी ख़ुशी के आंशुओ को रोक नहीं पाती। ये सारा दृश्य चल ही रहा ता की बादलो से बिजली की कड़कने की आवाज आती है।
आकाश वाणी में छठी माता ने कहा - की मेरी पुत्री मैं किसी का भी अहित नहीं करती। मैंने तुम्हारी आँखों से अज्ञान का पर्दा हटाने के लिए तुम्हारे पति को पानी में डुबाया था पुत्री मैं सदैव अपने भक्तो की रक्षा करती हूँ इस कलयुग में जो भी भक्त मेरी पूजा सच्चे मन से करता है मैं उसकी सभी मनोकामना को पूरी करती हूँ इतना कहकर छठ माता अंतर ध्यान हो गयी वहाँ खड़े सभी भक्तो ने छठ माता के नाम के जय कारा लगाया। सास बहु और बेटे ने ख़ुशी - ख़ुशी सबने मिलकर छठ माता की पूजा की।
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Article Posted By: Manju Kumari
Work Profile: Hindi Content Writer
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