क्या आप चीज़ों को सकारात्मक नज़रिये से देखते है
क्या आप चीज़ों को सकारात्मक नज़रिये से देखते है ?- एक शाम एक कालोनी में आस - पास रहने वाले मित्र खड़े होकर बात - चीत कर रहे थे। तभी किसी अजनबी ने आकर पूछा की मैं इसी कॉलोनी में एक मकान खोज रहा हूँ। कैसे है यहां के लोग ? उस ग्रुप में से समझदार से लगने वाले व्यक्ति ने उल्टा question किया। जहाँ आप अभी रहते है वहां के लोग कैसे है ?इस पर उस अजनबी ने कहा की -वहां के लोग तो बहुत ही अच्छे है बहुत मेल - मिलाव वाले ,दुःख -दर्द के साथी है।
हम तो वह कॉलोनी कभी न छोड़ते। लेकिन मकान मालिक को खुद के रहने के लिए अब घर चाहिए। इसीलिए हमलोग एक नया मकान ढूंढ रहे है। इसपर समझदार व्यक्ति ने जबाब दिया। यहाँ के लोग भी बहुत ही अच्छे है। बेफ़िक्र होकर आप यहाँ आ जाइये। उस व्यक्ति के जाने के बाद वह मित्र मंडली अभी वहीँ खड़े हुय्र बात - चीत कर ही रहे थे एक दूसरे व्यक्ति ने आकर कुछ वैसा ही प्रश्न्न किया और उसी समझदार व्यक्ति ने भी फिर से ठीक वैसे ही प्र्शन्न किया। जहा वे लोग रह रहे है वहां के लोग कैसे है ?
इस पर उस अजनबी व्यक्ति ने कहा -की क्या बताओ आये दिन लड़ाई - झगड़ा। वहां के लोगो से परेशान होकर अपना घर बदलने की सोच रहे है। इस पर समझदार से लगने वाले व्यक्ति ने जबाब दिया की यहाँ भी कुछ उसी प्रकार के व्यक्ति रहते है। आप इस कालोनी में नहीं रह पाएंगे। आप कही और try करे। उसके चले जाने के बाद साथियो ने आश्चर्य चकित होकर उससे पूछा की यह किया उससे पहले वाले व्यक्ति से यहाँ की तारीफ की। और अब इस व्यक्ति से बुराई कर रहे है ऐसा क्यों ?
इस पर उस समझदार व्यक्ति ने समझाते हुए कहा की पहले वाले को अपने पडोसी अच्छे लगे क्योकि वह खुद अच्छा यक्ति है। और दूसरे व्यक्ति को अपने सारे व्यक्ति बुरे और झगड़ालू लगते है क्योकि सब तो झगड़ालू हो नहीं सकते।पर वह खुद ही झगड़ालू किस्म का है। तो उसका सबसे झगड़ा होता ही रहता है। क्योकि जैसे हम जैसा व्यवहार करते है वैसा ही दुसरो से मिलता है उदाहरण और बी ही अनेक है जैसे की एक ही कहानी पर दो लेखक एकदम difrent ही बातें लिखेंगे।
क्योकि उनपर अपना अनुभव जिंदगी के प्रति उनका नजरिया या आदि का स्पष्ट प्रभाव होगा। इसी तरह एक ही कहानी पर दो difrent फिल्मकार फिल्मे भी बिलकुल अलग ही बनाएंगे और आश्चर्य यह है की एक ही बुक पर एक ही फिल्म पर लोगो की प्रतिक्रया भी एकदम अलग होते है। क्योकि हम सब की अलग - अलग पूर्ण धारणा होती है। जीवन के संघर्ष और संस्कार अलग होते है। लोग कहते है की दुनिया ऐसी ही है। पर दुनिया दरअसल दुनिया वैसी है जिस दृष्टि से हम उसे देखते है।
मतलब हम जैसे है वैसी ही दुनिया हमे दिखाई देती है। यह हम पर निर्भर करती है की दुनिया को किस नजर सर देखते है। इसीलिए बहुत महत्वपूर्ण है की हम अपनी सोच को सकारात्मक रखे। हर निर्णय सोच - समझ कर ले न की मन के वशीभूत होकर। किसी से अगर पहली बार मिले तो उसके प्रति प्रेम से भर कर मिले। इसमें कोई दो राहे नहीं है की हम जैसे सोचते है हमारी छवि भी उसी तरह बनती चली जाती है। लेकिन सकारात्मक शब्दों के इस्तेमाल से हमारी छवि भी बेहतर हो सकती है।
आप खुद के बारे में क्या सोचते है ? क्या आप चीजों को सकारात्मक नजरिये से देखते है यदि है तो यकीन मानिये भविष्य उज्वल हो सकता है। यह सच है की आप जैसा सोचते है आपका nature आपका दृष्टिकोण भी उसी के अनुरूप ढलते चले जाते है। उदहारण के तौर पर यदि आप अपने जहन में या मन में यह बात बैठा ले की आप creative नहीं है तो इस बात की पूरी सम्भावना बन जाती है की आप creative नहीं रहेंगे। दूसरी तरफ अगर आप खुद से लगातार ये कहे की आप creative है तो सचमुच आप एक दिन creative व्यक्ति बन सकते हो।
फिर जीवन में एक दिन ऐसा जरूर आएगा जब आप creative ideayas के मालिक बन सकते है। आप अपने बारे में जैसा सोचेंगे विजय या हारे हुए खिलाडी के रूप में। ठीक उसी तरह आपकी personality का निर्माण होता चला जायेगा। यह स्थिति तय कर देगी की भविष्य में में आपके साथ किस तरह की और किस तरह की परिस्थितियां बन सकती है। यदि आप अपने बारे में positive बाते करते है तो ये आपको सकारात्मक विचारों वाला व्यक्ति बना देती है और यदि आप नकारात्मक विचारों की बाते करते है तो ये ही सब आपको नकारात्मक विचारों की सोच वाला की छवि प्रदान करते है इसीलिए हमे शब्द रूपी अस्त्र का प्रयोग अच्छी तरह से सोच - विचार के ही करनी चाहिए।
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
Article Posted By: Manju Kumari
Work Profile: Hindi Content Writer
Share your feedback about my article.