महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है? शिवरात्रि की कथा ? Why Is Mahashivratri Celebrated?
महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है? शिवरात्रि की कथा ? Why is Mahashivratri celebrated? - शिवरात्रि को भगवान् शिव और पारवती का विवाह हुआ था इसलिए शिव रात्रि मनाया जाता है कुछ विद्वानों का मन्ना है की ऐसी दिन समुन्द्र मंथन में जो विष निकला था उसे भगवान् शिव ने पि लिया था ऐसी लिए तभी से सभी लोग शिवरात्रि मानने लगे। अतः शिव पुराण में एक कथा बहुत की प्रचलित है वह इस प्रकार है -एक बार की बात है की एक वन में एक भील शिकारी रहता था।
उसका नाम गुरुद्रुह था उसका परिवार बड़ा था। वह बलान और क्रूर स्वभाव का होने के साथ ही क्रूरता पूर्ण कार्य भी किया करता था। वह पति दिन वन में जाकर हिरन और अन्य प्राणियों को भी मारा करता था। और वही रहकर नानाप्रकार की चोरिया किया करता था। उसने बचपन से ही कोई पुण्य कर्म नहीं किया था। इस प्रकार वन में रहते हुए उसका काफी समय वन में बीत गया। तत्पश्चात एक दिन शिवरात्रि आई लेकिन वह एक घने जंगल में निवास करने वाला था उसे पता नहीं था की आज शिव रात्रि है।
उसी दिन उसके माता पिता और पत्नी भूख से व्याकुल उससे काने की मांग करने लगे। उनके बार - बार याचना करने वह धनुष -बन लेकर वन में निकल गया और सरे दिन घूमना के बाद आज उसे कुछ भी नहीं मिला और सूर्य अस्त हो गया और वह बहुत ही परेशान था। मेरे माता पिता भूख के मारे किस हालत में होंगे और मेरी पत्नी की क्या दशा होगी कुछ न कुछ लेकर ही जाना चाहिए। ऐसा सोचकर वह शिकारी एक जलाशय के पास गया और वह पानी में उतरने का घाट था वह जाकर खड़ा हो गया।
अब मन ही मन यह सोचने लगा की कोई न कोई जानवर पानी पीने तो जरूर आएगा। उसी को मारकर प्रसन्नता पूर्वक घर जाऊंगा। ऐसा सोचकर वह एक बेल के पेड़ पर जाकर बैठ गया और जल भी साथ लेकर बैठ गया। उसके मन में बस यही चिंता थी की कब कोई जीव आये और वह उसे मरकर घर ले जाये और भूख -प्यास से व्याकुल था और इस तरह काफी रात हो गयी जब रात का पहला पहर प्रारम्भ हुआ तो एक प्यासी हिरणी वहाँ आयी। उसे देखकर उस व्याध को बड़ा हर्ष हुआ।
फिर उसने हिरणी को मरने के लिए धनुष पर बाण कस लिया और ऐसा करते हुए उसके हाथ के धक्के से वह जल और कुछ पत्ते नीचे गिर गए। पेड़ के नीचे शिव लिंग था इसके बारे में वह व्यार्ध नहीं जानता था। इस प्रकार उस जल से शिव की प्रथम पहर की पूजा सफल हो गयी। और इस खड़खड़ाहट के कारण समय बर्बाद हो गया उधर उस हिरणी ने भय से ऊपर देखा। उसे देखते ही नाह व्याकुल हिरणी बोली की व्याध तुम क्या करना चाहते हो। मेरे सामने सच - सच बताओ। हिरणी की बाटे सुनकर व्याध बोला - की मेरे परिवार के लोग भूखे है।
अतः तुम को मर कर मै उनकी भूख मिटाऊंगा। और मै उन्हें तृप्त करूँगा वह हिरणी उस भील की बातो को सुनकर हिरणी सोचने लगी की मै अब क्या करू ?मै कहाँ जाऊ ?व्याध मेरे मांस से तुमको सुख होगा। व्यार्ध मेरे इस अनर्थकारी शरीर के लिए इससे अच्छा क्या होगा ?उपकार करने वाले प्राणी को जो सुख होता है उसे 100 वर्षो में भी प्राप्त नहीं होगा।परन्तु मेरे सब बच्चे आश्रम में ही है। मै उन्हें अपनी बहन और स्वामी को सोप कर लोट आउंगी व्याध तुम मेरी इस बात को मिथ्या न समझो।
मै फिर तुम्हारे पास लोट आउंगी। क्योकि सत्य पर ही दुनिया टिकी हुई है।सत्य से ही समुद्र अपनी मर्यादा में स्थित है। इतना हिरणी के कहने पर भी जब व्याध ने बात नहीं मानी। सुनो मै तुम्हारे सामने ऐसी सपथ खाती हूँ। ब्रह्ममण यदि वेद बेचे और तीनो काल संध्या वंदन न करे। पति की आज्ञा का उलंघन का अनुसरण करने वाली स्त्री को जो पाप लगता है। भगवान् शंकर से विशवास घाट करने वाले व्यक्ति को जो पाप लगता है उसी पाप से मै भी लुप्त हो जाऊ।
अच्छा अब तुम अपने घर को जाओ और वह हिरणी बड़ी ख़ुशी से जब तक वह अपने आश्रम में गयी जब तक रत का दूसरा पहर भी आज्ञा जब तक हिरणी की दूसरी बहन पानी पीने को वहाँ आगयी। उसे देखते हुए भील ने जैसे ही तीर को धनुष में लगाया और फिर से जल और कुछ पत्ते शिव लंग पर गिर गए और उसके द्वारा दूसरे पहर की भी पूजा हो गयी। और वह हिरणी भी व्याध के लिए शुभ दायनी हो गयी। हे आखेटक ! ये क्या करते हो ? आखेटक ने कहा - की मै तुम्हे मरूंगा और अपने भूखे कुटुंब का पेट भरूंगा।
वह हिरणी बोली की मेरा देह धारण सफल हो गया और लेकिन मरे छोटे - छोटे बच्चे घर पर है मै एक बार जाकर अपने स्वामी को सौंप दू मै फिर तुम्हारे पास लोट आउंगी। भील बोला की मुझे तुम्हारे बात पर विशवास नहीं है मै तुम्हे मारूंगा। व्याध मै जो भी बोलती हूँ उसे सुने जो विवाहित पुरुष अपनी स्त्री को छोड़ कर दूसरे के पास जाता है और पाप मुझे भी लगे। उसके बाद हिरणी आपने आश्रम की और गयी। ऐसी प्रकार दूसरा पहर भी व्याध के जाते - जाते बीत गया।
और तीसरा पहर भी शुरू हो गया और जल के मार्ग में एक हिरन था वह बहुत ही हृष्ट - पुष्ट था। उसको देखते ही व्याध ने फिर से धनुष को उठाया और उसके हाथ से फिर जल और कुछ बेलपत्री नीचे गिर गया और शिव जी पर चढ़ गया। इस प्रकार तीसरे पहर की पूजा भी हो गयी। पत्ते की आवाज को सुनकर व्याध ने पूछा की क्या करते हो तो व्याध ने पूछा की अपने कुटुम्भ का पेट भरने को तुम्हे मारता हूँ। तो हिरन बोला की मै धन्य हूँ मेरा हृष्ट पुष्ट शरीर धन्य हो गया।
कटुकी मेरे शरीर से आपके परिवार की तृप्ति होगी। जो सामर्थ्य के अनुसार परोपकार नहीं करता उसका समर्थता बेकार होती है। परन्तु मुझे एक बार जाने दो मै अपने बच्चो को अपनी पत्नी के पास सौंप कर आता हूँ।सबको धीरज बंधा कर लोट आता हूँ। यह सुनकर व्याध बड़ा संतुष्ट हुआ क्युकी उसका शरीर पाप मुक्त हो गया था। व्याध ने हिरन से कहा की जो भी यहाँ आया वह बहाना बना कर चला गया। परंति वह अभी तक नहीं लोटे। हिरन तुम भी इस समय संकट में हो इसलिए झूट बोलकर चले जाओ। हिरन ने विश्वास दिलाया और चला गया।
सभी एक आश्रम में ही मिले। सभी ने एक दूसरे की बातो को सुना और वचन बढ़ हो चुके थे और सत्यता को ध्यान में रखते हुए बालको को आश्वासन देकर सब के सब वह जाने को तैयार हो गए। हिरन ने कहा की पहले मै वचन बढ़ हुई थी इसलिए मै ही जाती हूँ। लेकिन छोटी वाली हिरणी ने कहा की मै तुम्हारी सेविका हूँ मुझे ही जाना चाहिए। यह सुकर हिरन बोला की नहीं तुम दोनों यही रहो मै जाता हूँ। क्युकी बच्चो की रक्षा माँ से ही होती है। स्वामी की बात को सुनकर दोनों हिरणी बोली की प्रभु पति के बिना ही हमारा जीवन व्यर्थ है।
तब उन तीनो ने अपने बच्चो को सांत्वना देकर पड़ोसियों को सौंप कर तीनो ने ही प्रस्थान किया जहा वह व्याध इंतजार कर रहा था। उनके तीनो बच्चे भी उनके पीछे - पीछे पहुंच गए। व्याध उन सभी को देखकर बड़ा खुश हुआ। जैसे ही व्याध ने बन चढ़ाया पुनः फिर से जल और बेल पटरी शिव पर चढ़ गया। इससे शिव के चौथे पहर की पूजा भी सम्पन हो गयी। इससे वैध का सारा पाप काल नष्ट हो गया और जब तक हिरन बोल पड़े की हमारे शरीर को तृप्त करो।
फिर शिव पूजा के प्रभाव से उसे दुर्लभ ज्ञान प्राप्त हो गया। उसने सोचा की ये पशु भी धन्य है। ज्ञान हीं होकर भी अपने शरीर से पुण्य प्राप्त करना चाहते है। लेकिन धिक्कार है मेरे जीवन को की मै अपने परिवार को तृप्त करता हूँ। अपने बाण उसने रोक लिए उसने हिरन से कहा की तुम सब धन्य है। उन्हें वापस जाने दिया। उसके ऐसा करने पर भगवान् शंकर ने प्रसन्न हो कर तत्काल उसे अपने दिव्य शरीर का दर्शन करवाया। तथा उसे सुख समृद्धि का आशीष गुह दान देकर आशीर्वाद दिया। तभी से ही शिवरात्रि मनाई जाने लगी।
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Article Posted By: Manju Kumari
Work Profile: Hindi Content Writer
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