बुद्ध पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है || बुद्ध पूर्णिमा कब मनाई जाती है ?

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बुद्ध पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है || बुद्ध पूर्णिमा कब मनाई जाती है ?- बुध पूर्णिमा बौद्ध धर्मावलियो के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैक्योकि बैसाख पूर्णिमा के दिन भगवन बुध इस धरती पर अवतरित हुए थे। इसी दिन भगवान् बुध को ज्ञान की प्राप्ति हुयी थी और ऐसी दिन उन्होंने महापारी निर्माण भी किया था। इसलिए बैसाख पूर्णिमा को बुध पूर्णिमा भी कहते है। भगवान् बुध के जीवन की तीन बड़ी घटनाये बैसाख पूर्णिमा के दिन ही हुयी थी। भगवान् बुध का जन्म ,ज्ञान पर्पटी यानि बूढी तत्व की प्राप्ति ,महा परी निर्माण।

भगवान् बुध को जब संसार की सच्चाई का ज्ञान हुआ तो वे अपना राज महल , ग्रस्थ्य जीवन ,भौतिक व् सांस्कृतिक सुखो को त्यागकर सत्य की खोज में निकल पड़े। लगभग सात वर्षो तक कठिन परिश्रम के तपस्या के बाद बुध पूर्णिमा के दिन बौद्ध गया जो की बिहार में है बोदी वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। इस लिए इस दिन को बुध पूर्णिमा के नाम से मनाया जाने लगा। बुध पूर्णिमा का दिन केवल बौद्ध धर्म के लिए ही नहीं बल्कि हिन्दू धर्म के लिए भी पवित्र दिन है।

बुद्ध पूर्णिमा का महत्व  - दरअसल हिन्दू धरम के लोगो के लोगो का मानना है की भगवन बुध हिन्दू देवता भगवान् विष्णु के नोवे अवतार है। इसलिए हिन्दू धरम में भी इस दिन को भी बड़े ही श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाया जाता है। यही कारण है की बौद्ध गया हिन्दू व् बौद्ध धर्मावलियो के लिए भी बहुत ही पवित्र स्थान है। दुनिया भर से बौद्ध धर्म के अनुयायी बौद्ध गया के दर्शन करने आते है। इसी दिन को सत्य विनायक पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है की जब भगवन कृष्ण के बचपन के दोस्त सुदामा बहुत गरीब थे।

 

जब वे कृष्ण से मिलने उनके महल पहुंचे तब कृष्ण ने उनको कष्ट निवारण हेतु  सत्य विनायक पूर्णिमा के व्रत को करने को कहा- सुदामा ने कृष्ण की बात मानी और इस व्रत को विधिवत किया तो उनके कष्टों का निवारण हो गया। और ऐसी दिन ही धर्मराज की भी पूजा की जाती है कहते है की सत्य विनायक पूर्णिमा के व्रत सेमृत्यु के देवता धरम राज खुश होते है और उनके पर्सन होने से अकाल मृत्यु का भय ख़त्म हो जाता है। पूर्णिमा का दिन भगवन विष्णु को समर्पित है।

 

बुध पूर्णिमा के दिन तीर्थ स्थानो में स्नान करना पापनाशक माना जाता है। लेकिन बैसाख की पूर्णिमा खास होती है। इस दिन सूर्य अपनी नीच राशि मेष में होते है और चन्द्रमा भी अपनी उच्च राशि तुला में होती है। भगवान् बुध का जन्म 1563 इसवी पूर्व  बैसाख पूर्णिमा के दिन लुम्बीनी जो की नेपाल में है शाक्यकुल के राजा सुदोधन और महारानी महामाया के घर में हुआ था। बालक का नाम सिदार्थ रखा गया था गौतम गोत्र में जन्म लेने के कारण उनको गौतम भी कहा जाता था।

इनकी माता का निधन जन्म के सातवे दिन ही हो गया था। सिद्धार्थ के जन्म समारोह के दिन ही एक साधु ने बालक के भविष्य पढ़ते हुए बताया था की या तो ये बालक महान राजा बनेगा या महान पवित्र पथ प्रदर्शक। इनका ललन पालन महारानी की छोटी बहन प्रजापति गौतमी ने किया था। गौतम के मन में अपार दया और करुणा थी। वे किसी को दुखी नहीं देख सकते थे। सिदार्थ के चचेरे भाई देवदत्त के द्वारा तीर से घायल हंस की खूब सेवा कर प्राणो की रक्षा की।

 

बुद्ध पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है  - सिदार्थ ने गुरु विस्वामित्र से वेद ,पुराण ,उपनिषदों ,राज काज कार्यो और युद्ध विद्या सीखी। कुस्ती ,घुड़ सवारी ,तीर कमान चलाने में वे पूर्ण तय निपुण थे। 16 वर्ष की उम्र में ही इनका विवाह यशोधरा से किया गया राजकुमार सिद्धार्थ और राजकमारी यशोधरा को एक पुत्र रत्न की प्रप्ति हुई जिसका नाम राहु रखा गया। राजमहल साडी सुख - सुविधा से पूर्ण होने के बाद भी सिदार्थ का मन राज महल में नहीं लगा फिर जीवन के सच्चे रंग जन्म, मृत्यु, बुढ़ापा और दुखी लोगो को देखने के बाद उनका मन सुखो से मोह भग हो गया

 

फिर सिदार्थ अपनी पत्नी और बेटे को छोड़ कर तपश्या के लिए चल पड़े। बिना अन्न जल ग्रहण किये छह साल की कठिन तपस्या के बाद 35 साल की आयु में बैसाख पूर्णिमा की रात निरंजना नदी के किनारे पीपल के पेड़ के नीचे सिदार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ। ज्ञान प्राप्ति के बाद सिद्धार्थ बुध के नाम से जाने जाने लगे। जिस जगह पर उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ उसे बोध गया और जिस पेड़ के नीच ज्ञान प्ऱप्त हुआ उसे बोदी वृक्ष कहा जाने लगा। बोदी का अर्थ होता है ज्ञान प्राप्त होना और संसार के सभी माया मोह से छुटकारा पाना।

ज्ञान प्राप्त करने के बाद महात्मा बुद्ध आषाढ़ मास की पूर्णिमा को काशी के पास मृगदाव जो की सारनाथ में है वहां पहुंचे यही पर उन्होंने सबसे पहला धर्म उपदेश दिया। जिसे बोध ग्रंथ में धर्म चक्र परिवर्तन कहा जाता है। पांच मित्रो को अपना अनुयायी बनाया और उन्हें धर्म प्रचार के लिए भेज दिया। बुद्ध की मृत्यु 80 साल की उम्र में 83 इ० पूर्व बैसाख पूर्णिमा के दिन बिहार के देवरिया जिले के कुशी नगर में छुद्र द्वारा दिए गए भोजन को खाने के बाद हो गयी।

 

जिसे बोध धर्म में महा परनिर्माण कहा जाता है। इस वक्त विश्व में लगभग 180 करोड़ लोग बोध धर्म के अनुयायी है। बुद्ध पूर्णिमा बुद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए सबसे बड़ा त्यौहार है। इस दिन अनेक प्रकार के कार्यो कर्मो का आयोजन किया जाता है। अलग - अलग देसो में वह के रीती रिवाजो के अनुसार ही इस त्यौहार को मनाया जाता है। इस दिन बोध अनुयाई अपने घरो में अगरबत्ती व् धुप दिए जलाये जाते है। घरो को फूलो से सजाया जाता है। और बोध धर्म ग्रंथो का पाठ किया जाता है।

दीपक जलाकर भगवान् बुद्ध की पूजा कर उन्हें फल-फूल अर्पित करते है बुद्ध पूर्णिमा के दिन अनुयायी बोदी वृक्ष के दर्शन जरूर करते है। इस दिन पवित्र बोदी वृक्ष की पूजा की जाती है। उसकी शाखाओ को रंगीन कागजो से सजाया जाता है और उसकी जड़ो में दूध और सुगंधित पानी डाला जाता है। मंदिर के आस पास दिए जलाये जाते है। तथा प्रार्थना की जाती है। सुखद भविष्य के लिए भगवान् बुद्ध का आशीर्वाद लिया जाता है। दिल्ली संग्रहलय में इनकी अस्थियो को सुरक्षित रखा गया है। लेकिन बैसाख पूर्णिमा के दिन इन अस्थियो को लोगो क्र दर्शनार्थ हेतु बाहर रखा जाता है। जिससे की बोध धर्मवाली वहां आकर उनके दर्शन कर सके।

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Article Posted By: Manju Kumari

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