बेकार की चिंता
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बेकार की चिंता करते हो ,
पल पल समय उसी में गवाते हो,
अपने लक्ष्य से ओझल होते हो,
प्रतिकार कर,
अपनी व्यर्थ की चिंता का।
विहान का विहंगम दृश्य देख,
जब कुछ न रुकता शेष यहाँ,
तब तू बैठा है क्यों चिंता में,
उठ ! तजि दे ऐसी चिंता को ,