सऊदीअरब क्यों जाना चाहता है हर मुस्लमान। हज में ऐसा क्या होता है, जो वहां खंभों को शैतान बताकर उन्हें पत्थर मारे जाते हैं
सऊदीअरब क्यों जाना चाहता है हर मुस्लमान। हज में ऐसा क्या होता है, जो वहां खंभों को शैतान बताकर उन्हें पत्थर मारे जाते हैं -
हज यात्रा - ये वो यात्रा है जिसपर दुनिया भर के मुसलमान जाना चाहता है। 'हज' साउदी अरब के मक्का में होता है। ऐसा क्या है वह जिसके लिए दुनिया भर के मुसलमान बेकरार रहते है? क्यों दिल में वहां जाने की ख्वाहिस पाले रहते है?आखिर वहां पहुँचकर क्या करते है?ऐसे कई सवाल है जो आपके मन में आते होंगे।
आओ मदीने चलें.
इसी महीने चलें.
मयकशों आओ आओ मदीने चलें.
जब कोई हज के लिए जाता है तो अपने सभी रिश्तेदारों से मिलकर जाता है। अपनी कभी भी की हुई गलती की माफ़ी मांगते है। और मुसलमानो का जीवन मे एक बार जाना बहुत ही जरुरी होता है। क्योंकि ये इस्लाम के फाइव पिलर (1. कलमा पढ़ना 2. नमाज़ पढ़ना 3. रोज़ा रखना 4. ज़कात देना 5. हज पर जाना) में से एक है. कलमा, नमाज़ और रोज़ा तो सभी मुसलमानों के लिए अनिवार्य हैं. कोई छूट नहीं है. लेकिन ज़कात और हज में ये छूट दी गई है किजो सक्षम हो या जिसके पास इतना पैसा हो जो कीजकात (दान) दे सके।और हज पर जा सके। दोनों हो जरुरी है। हज साउदी अरब के मक्का शहर में है ,क्योकि काबा मक्का में है। काबा वो इमारत है जिसकी तरफ दुनिया भर के मुसलमान नमाज पढ़ते है ,काबा वो मंजिल है जिसे अल्लाह का घर कहा जाता है। ऐसी वजह से वो मुसलमानो का तीर्थस्थल है। जहाँ जिंदगी में एक बार जाना इस्लाम में जरुरी बताया गया है।
क्या होता है हज में ?-हज इस्लामिक कैलेण्डर के 12वे महीने जिल हिज्जाह की 8वी तारीख से 12वे तारीख तक होता है। 12 तारीख को जब हज पूरा होता है। वो दिन ईद-उल-अज़हा का होता है यानी बकरीद। हज के आलावा एक और यात्रा होती है ,जिसे उमराह कहते है। दोनों की रश्में एक जैसी होती है। बस फर्क ये होता है की हज बकरीद के मोके पर होती है, और उमराव साल भर में कभी भी की जा सकती है। 7वीं शताब्दी से हज इस्लामी पैगंबर मुहम्मद की जिंदगी के साथ जुड़ा हुआ है,लेकिन मुसलमान महते है की मक्का की तीर्थयात्रा की यह रश्म हजारो साल से यानि अल्लाह के नबी इब्राहिम के ज़माने से चली आ रही है। हर साल दुनिया भर के मुसलमान यहां हज करने के लिए पहुंचते है।
हज के दौरान निभाई जाने वाली रश्में - (1) इहराम बांधना (2) काबा का तवाफ़ (3) साफा और मरवा (4) शैतान को पत्थर मरना (5) जानवर की क़ुरबानी (6) सर के बाल मुड़वाना या कटवाना।
(1) इहराम बांधना - ये हज या उमराव करने का पहला चरणः है इसके तहत एक खास तरीके की पोषक पहनी जाती है। इस पोषक में दो चादरे होती है जो की जिस्म में लपेट दी जाती है। और फिर इबादत करने की नीयत कर ली जाती है ऐसा करने के बाद बहुत सी चीजे से परहेज करना होता है। जैसे शरीर के बाल को उखाड़ना या कटवाना सुगंध लगान।।।। । इसलिए इहराम बांधने से पहले ही अपने जिस्म की पूरी सफाई कर ली जाती है।इहराम बांधने के बाद कुरआन की आयते पढ़ते रहना होता है।
(2) काबा का तवाफ़ - इहराम बांधने के बाद काबा पहुंचना होता है। यहाँ नाबाज पढ़नी होती है। और फिर काबा का तवाफ़ (परिक्रमा) करनी होती है काना सारे मुसलमानो की एकता का प्रतीक है। भले ही दुनिया भर में शिया-सुन्नी और बरेलवी-देवबंदी के झगड़े है ,लेकिन जब बात कावा की है तो सब एक है। कावा ही वो इमारत है ,जिसकी तरफ रुख करके दुनिया भर के मुसलमान नमाज पढ़ते है।
(3) साफा और मरवा -ये दो पहाड़ियों के नाम है जिसके चक्कर लगाने होते है ,और दुआए पढ़नी होती है। इन दोनों पहाडितो के बीच सात चक्कर लगाने होते है। ये वो जगह है जहाँ हजरत इब्राहिम के बीवी अपने बेटे इस्माइल के लिए पानी की तलाश में गयी थी। मक्का से करीब पांच किलो मीटर दुरी पर मीना नाम की जगह है। जहाँ सारे काजी जमा होते है। शाम तक नमाज पढ़ते है। अगले दिन अराफात नाम की जगह पहुंचते है और एक बहुत बड़े मैदान में खड़े होकर अल्लाह से दुआ मांगते है।
(4) शैतान को पत्थर मारना - सारे हाजी मीना में लौटते है और शैतान को पत्थर मारते है। शैतान को दर्शाने के लिए यहाँ तीन खम्बे बने हुए है। जिनपर हाजी सात कंकड़ मारते है। अरबी में ऐसे रमीजमारात भी कहा जाता है। कहा जाता है की यह वह जगह है जहा शैतान ने बहकाने की कोशिश की थी। उसने कहा की हजरत इब्राहीम अल्लाह का आदेश न मानें।बाद में इन पथरो या कंकड़ो को फिर से जमा करके रीसाइकल किया जाता है।
(5) जानवर की क़ुरबानी - शैतान को पत्थर मरने के बाद नंबर आता है जानवर की क़ुरबानी का। जो आम तोर पर भेद या बकरा होता है ऊंट भी क़ुरबानी की जा सकती है।कहा जाता है की अल्लाह की राह में अपने बेटे इस्माइल को कुर्बान करने की हजरत इब्राहीम की याद में किया जाता है। पहले हाजी खुद ही जानवर खरीद कर क़ुरबानी कराया करते थे। अब हाजी को बैंक का एक टोकन खरीदना होता है जिसका मतलब है की उतने ही पैसे से जानवर खरीद कर उनकी ओर से कुर्बानी दी जाएगी और मीट गरीबों में बांट दिया जाएगा।
(6) सर के बाल मुड़वाना या कटवाना - साफा और मरबा के बाद अपने सर के बाल कटवाना या मुड़वाना होता है। मर्दो को पूरे सर के बाल कटवाना होता है और महिलाओ को भी थोड़े बाल कटवाने होते है। नहीं तो हज या उमराव पूरा नहीं होता। इसके बाद एक बार काबा का तवाफ़ (परिक्रमा) करके पूरा हो जाता है।
क्यों दी जाती है जानवरो की क़ुरबानी ? - इस्लामिक मान्यताओं की माने तो दुनिया में 1 लाख 24 हजार पैगंबर (खुदा के संदेशवाहक) आए. इन्हीं में से एक थे पैगंबर हज़रत इब्राहीम. ये मुसलमानों के नबी हैं, जिनको अल्लाह ने अपना दूत बना कर दुनिया की रहनुमाई करने के लिए भेजा। इसके लिए एक किस्सा है बेटे की क़ुरबानी का।
इस्लाम में जानकारों का कहना है की एक बार अल्लाह ने हजरत इब्राहिम को सपने में सबसे प्यारी चीज को कुर्बान करने का हुक्म दिया। उस वक्त हजरत इब्राहिम को 80 साल की उम्र में औलाद पैदा हुई ऐसे में उनके लिए सबसे प्यारे उनके बेटे हजरत ईस्माइल ही थे। इस क़ुरबानी का जिक्र कुरआन में भी है -
इब्राहीम ने अपने बेटे ईस्माइल को ख़्वाब के बारे में बताया, कहा, ‘ऐ मेरे बेटे मैं ख्वाब में तुम्हे कुर्बान करते हुए देखता हूं तो तुम बताओ कि इस बारे में तुम्हारी क्या मर्ज़ी है?’
ईस्माइल ने जवाब दिया, ‘अब्बू जान आप को जो हुक्म दिया जा रहा है. उसे ज़रूर पूरा करिये। अगर अल्लाह ने चाहा तो आप मुझे सब्र करने वालों में पाएंग। ’
ये बातचीत कुरान में सूरेह साफ्फात में है।
कहा जाता है की इस क़ुरबानी के जरिये अल्लाह हजरत इब्राहिम सब्र ,बफादारी और त्याग को आजमाना चाहता था। क्योकि एक बाप के लिए अपने एकलौते बेटे की गर्दन पर छुरी चलाना खुद को मार डालने से भी कही ज्यादा मुश्किल काम है।
इब्राहिम घर से इस्माइल को साथ लेकर चले। एक रस्सी ,आँखों पर बांधने के लिए एक पट्टी ली और एक छुरी ली ,और मैदान में पहुंचे। अपनी आँख में पट्टी बंधी और अपने बेटे की गर्दन पर छुरी चलाना चाहते थे। तभी अल्लाह का हुक्म एक फरिस्ते को हुआ की जाओ और जाकर इस्माइल की जगह पर दुंबा (भेड़ की एक नस्ल का) पेश कर दो। इब्राहिम ने छुरी चलाई और इस्माइल बच गए और दुंबा ज़िबहा हो गया। तभी से मुसलमानो में ये बकरे की क़ुरबानी की रश्म चली आ रही है हलाकि ये क़ुरबानी ककी रश्म बहुत पहले से बताई जाती है। लेकिन मुसलमानों में बकरीद पर जो कुर्बानी की रस्म शुरू मानी जाती है उसके पीछे इब्राहीम की कुर्बानी का ही किस्सा है। कुछ लोग बकरीद पर कटने वाले बकरे को गलत बताते है। इसके पीछे उनका तर्क है की अल्लाह कबसे बकरे कटने से खुश होने लगा। ऐसा मानने वाले मुसलमानो की तादाद न के बराबर है। जबकि ज्यादातर मुसलमान अल्लाह की रजामंदी से किया गया काम समझते है।
ऐसा क्या हुआ था जो हज में "शैतान" को पत्थर मारे जाते है ? - बात उसी दौरान की है जब हजरत इब्राहिम अपने बेटे इजराइल को कुर्बान करने के लिए ले कर जा रहे थे। तभी रस्ते में उन्हें एक शख्स मिला जिसे शैतान कहा जाता है। ये शैतान जहा मिला था ये वही जगह बताई जाती है। जहाँ हज के दौरान तीन खम्बो को पत्थर मारे जाते है। शैतान ने हजरत इब्राहिम से कहा की इस उम्र में क्यों अपने बेटे की क़ुरबानी दे रहे है। बुढ़ापे में व ही तुम्हारा सहारा होगा उसे ही मार दे रहे है।इसके मरने के बाद कौन तुम्हारी बुढ़ापे में देखभाल करेगा।
हजरत इब्राहिम ये बात सुनकर सोच में पड़ गए। इससे पहले उनके मन में क़ुरबानी न करने का ख्याल आता उन्होंने कहा की दूर होजा मेरी नजर से तू शैतान है। जो की अल्लाह के काम में रूकावट बन रहा है। बताया जाता है की शैतान ने उनके बेटे इजराइल को भी बहकाने की कोशिश की थी। लेकिन उन्होंने भी उसे झड़क दिया। ऐसी बहकाने की वजह से ही मुसलमान आज भी हज के दौरान शैतान को पत्थर मारते है। मुसलमानो का मानना है उसने नबी को अल्लाह की मर्जी के काम में रूकावट पैदा की थी।
लेकिन सवाल ये उठता है की इस्लाम में मूर्ति पूजा हराम है ,तो फिर तीन खम्बे शैतान कैसे हो सकते है। मना किसी ने बहकाया होगा लेकिन ये खम्बे तो शैतान नहीं है। फिर क्यों पत्थर मारे जाते है जब भगवन पत्थर नहीं हो सकता तो शैतान कैसे हो सकता है।
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Article Posted By: Manju Kumari
Work Profile: Hindi Content Writer
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