महर्षि भृगु ने क्यों मारी थी भगवान् विष्णु की छाती पर लात ? जानिए क्या कारण था ?
महर्षि भृगु ने क्यों मारी थी भगवान् विष्णु की छाती पर लात ? जानिए क्या कारण था ?
धर्म ग्रंथो के अनुसार, महर्षि भृगु ब्रहम्मा जी के मानस पुत्र है। उनकी पत्नी का नाम ख्याति था जो की दक्ष की पुत्री थी। महर्षि भृगु सप्तमाण्डल के एक ऋषि है। सावन और भाद्रपद वे भगवान् सूर्य के रथ पे सवार रहते है। एक बार सरस्वती नदी के तट पर ऋषि मुनि एकत्रित होकर इस विषय पाए चर्चा कर रहे थे की ब्रहम्मा जी और विष्णु और शिव जी में से सबसे बड़े और श्रेष्ट कौन है ?इसका कोई निष्कर्ष न निकलते हेख उन्होंने त्रिदेवो की परीक्षा लेने का निष्य किया। ब्रहम्मा जी के मानस पुत्र को इसके लिए नियुक्त किया गया।
महर्षि भृगु सर्व प्रथम ब्रहम्मा जी के पास गए उन्होंने न तो उन्हें प्रणाम किया और न ही उनकी स्तुति की। यह देख ब्रहम्म जी क्रोधित हो गये । क्रोधित की अधिकता से उनका मुख लाल हो गया। लेकिन यह सोचकर की ये तो उनके ही पुत्र है। उन्हिओंने ह्रदय में उठे क्रोध के आवेग को विवेक बुद्धि में दबा लिया।
वहां से महर्षि भर्ग कैलाश गए। देवादि देव भगवान् महादेव ने देखा की भृगु आ रहे है तो वे प्रसन्न होकर आसन से उठकर उनका आलिंगन करने के लिए भुजाये फैला दी। लेकिन उनकी परीक्षा लेने के लिए भृगु मुनि उनका आलिंगन स्वीकार करते हुए बोले -हे महादेव !आप सदा वेदो और धर्मो की मर्यादा का उललंघन करते है। दुष्टो और पापियों को आप जो वरदान देते है , उनसे सृष्टि पर भयंकर संकट आ जाता है ,इसलिए मैं आपका आलिंगन कदापि नहीं करूँगा। उनकी बात सुनकर भगवान् शिव क्रोध से तिलमिला उठे। उन्होंने जैसे ही त्रिशूल उठाकर उन्हें मारना चाहा,वैसे ही भगवती सती ने अनुनय - विनय कर किसी प्रकार से उनका क्रोध को शांत किया।
इसके बाद भृगु मुनि बैकुण्ट लोक गए। उस समय भगवान् श्रीविष्णु देवी लक्ष्मी जी की गोदी में सिर रखकर लेते हुए थे। भृगु जी ने जाते ही उनके वक्ष पर एक लात मारी। भक्त वत्सल श्री विष्णु जी शीघ्र ही अपने आसन से उठ खड़े हुए। और प्रणाम करते हुए उनके चरण सहलाते हुए बोले - "भगवन !आपके पैर पर कोई चोट तो नहीं लगी ?"कृपया इस आसन पर विश्राम कीजिये। भगवन ! मुझे आपके आगमन का ज्ञान न था , इसलिए मैं आपका स्वागत न कर सका। आपके चरणों का स्पर्श तीर्थो को पवित्र करने वाला है। आपके चरणों के स्पर्श से आज मैं धन्य हो गया।
भगवान् विष्णु का यह प्रेम व्यवहार देखकर महर्षि भृगु की आँखों से आंसू बहने लगे। इसके बाद वे वापस लौट आये। ब्रहम्मा जी ,शिव जी और श्री विष्णु जी के यहाँ के सभी अनुभवों को सविस्तार से कह बताया। उनके अनुभवों को सुनकर सभी ऋषि मुनि बड़े हैरान हुए और उनके सभी संदेह दूर हो गए। तभी से भगवान् विष्णु को सर्वश्रेष्ठ मानकर उनकी पूजा - अर्चना करने लगे ।
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Article Posted By: Manju Kumari
Work Profile: Hindi Content Writer
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