जानिए आखिर क्यों कहा जाता है,राम से बड़ा राम का नाम
जानिए आखिर क्यों कहा जाता है,राम से बड़ा राम का नाम - हिन्दू धर्म के प्रमुख ग्रंथ के उत्तर रामायण के अनुसार जब अश्वमेघ यज्ञ पूरा हो गया तो श्री राम ने बहुत बड़ी सभा का आयोजन किया। जिसमे राजा राम ने देवताओ किन्नरों ऋषि मुनियो और राजाओ आदि को उसमे सम्मलित किया। सभा में आये नारद मुनि के भड़काने पर एक राजा ने ऋषि विश्वामित्र को छोड़कर सभी को प्रणाम किया। जिसे ऋषि विश्वामित्र क्रोधित हो उठे और उन्होंने भगवान् श्री राम से कहा की यदि सूर्यास्त से पहले उस राजा को श्री राम ने दंड नहीं दिया तो वो उन्हें श्राप दे देंगे।
इस पर श्री राम ने उसे मारने का प्रण ले लिया। श्री राम के प्रण की खबर पाते ही राजा हसनुमान जी की माता अंजनी के पास भागा - भागा गया और बिना पूरी बात बताये उनसे प्राण रक्षा का वचन मांग लिया। तब माता अंजनी ने हनुमान जी को राजान के प्राण रक्षा का आदेश दिया। हनुमान जी ने श्री राम जी की शपथ लेकर कहा की कोई भी राजा का बाल भी बांका नहीं कर पायेगा। जब राजन ने बताया की श्री राम ने ही उसका वध करने का प्रण किया है,तो हनुमान जी धर्म संकट में पड़ गए की राजन के प्राण कैसे बचाये और माता का वचन को कैसे पूरा किया जाये,और श्री राम जी को श्राप कैसे से बचाये।
धरम संकट में फसे हनुमान जी को एक योजना सूझी। हनुमान जी ने राजन से सरयू नदी के तट पर जाकर राम नाम जपने के लिए कहा।। हनुमान जी सूक्ष्म रूप लेकर राजन के पीछे छिप गए। जब राजन को ढूढ़ते हुए श्री राम जी सरयू के तट पर पहुंचे तो देखा की राजा राम राम जी के नाम का जाप कर रहा है।
प्रभु राम जी ने सोचा, "की ये तो मेरा भक्त है, मैं भक्त के प्राण कैसे ले लू"।
श्री राम ने राज भवन लौटकर ऋषि विश्वामित्र से अपनी दुविधा कही। विश्वामित्र अपनी बात पर अडिग रहे,जिस पर श्री राम को राजन के प्राण लेने के लिए फिर से सरयू के तट पर जाना पड़ा। अब श्री राम के समक्ष भी धर्म संकट खडा हो गया ,कैसे राम नाम जप रहे अपने भक्त का वध करे। राम सोच रहे थे की हनुमान जी को उनके साथ होना चाहिए था परन्तु हनुमान जी तो अपने आराध्य के विरुद्ध सूक्ष्म रूप से एक धर्म युद्ध का संचालन कर रहे थे। हनुमान जी को ज्ञात थे की राम नाम जपते हुए राजन को कोई भी नही मार सकता ,खुद मर्यादा पुरुषोत्तम राम भी नहीं।
श्री राम ने जब राजन को मरने के लिए शक्ति बाण निकाला ,तब हनुमान जी के कहने पर राजन राम नाम का जाप करने लगा। राम जानते थे की राम नाम का जाप करने वाले पर शक्तिबाण असर नहीं करता। श्री राम असहाये होकर राजभवन लौट गए।और राम को फिर सरयू तट पर जाना पड़ा।
इस बार राजा हनुमान जी कहने पर जय जय सियाराम ,जय जय हनुमान गा रहा था।प्रभु राम ने सोचा की मेरे नाम के साथ - साथ ये शक्ति और भक्ति की जय बोल रहा है। ऐसे में कोई अस्त्र और शस्त्र ऐसे मार नहीं सकता। इस संकट को देखकर श्री राम मूर्छित हो गए। तब ऋषि वशिष्ट ने विश्वामित्र को सलाह दी की राम को इस तरह संकट में ना डाले। उन्होंने कहा की श्रीराम चाहकर भी राम नाम जपने वाले को नहीं मार सकते ,क्योकि जो "बल" राम के नाम में है,वो खुद राम में नहीं। संकट बढ़ता देख ऋषि विश्वामित्र ने राम को संभाला और अपने वचन से मुक्त कर दिया। मामला सम्भलते देखकर राजा के पीछे छिपे हनुमान वापस अपने रूप में आ गए,और श्री राम के चरणों में आ गिरे।
तब प्रभु श्री राम ने कहा की हनुमान ने इस प्रसंग को सिद्ध कर दिए है की भक्ति और शक्ति सदा आराध्य की ताकत बनती है। तथा सच्चा भक्त सदैव भगवान् से बड़ा रहता है। इस प्रकार हनुमान जी ने राम नाम जी के सहारे श्री राम को भी हरा दिया।
धन्य है राम नाम और धन्य धन्य है प्रभु श्री राम के भक्त हनुमान।
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Article Posted By: Manju Kumari
Work Profile: Hindi Content Writer
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