Mahatma Gandhi Jayanti / जानें आखिर दो अक्तूबर को क्यों मनाया जाता है विश्व अहिंसा दिवस

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Mahatma Gandhi Jayanti / जानें आखिर दो अक्तूबर को क्यों मनाया जाता है विश्व अहिंसा दिवस - गांधी जयंती हर वर्ष 2 अक्टूबर को भारत में मनाई जाती है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि गांधी जी ने स्वतंत्रता के लिये अंग्रेजों के खिलाफ अपने पूरे जीवन भर संघर्ष किया। उनका जीवन अपने आप में एक प्रेरणा है। आइये इस लेख के माध्यम से गांधी जी और उनके जन्मदिन का क्या महत्व है, गांधी जयंती कैसे मनाई जाती है इत्यादि के बारे में अध्ययन करते हैं।

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी का परिचय - गांधी जी का जन्म पोरबंदर की रियासत में 2 अक्तूबर, 1869 में हुआ था। उनके पिता करमचंद गांधी, पोरबंदर रियासत के दीवान थे और उनकी माँ का नाम पुतलीबाई था। गांधी जी अपने माता-पिता की चौथी संतान थे। मात्र 13 वर्ष की उम्र में गांधी जी का विवाह कस्तूरबा कपाड़िया से कर दिया गया।

 गांधी जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा राजकोट से प्राप्त की और बाद में वे वकालत की पढ़ाई करने के लिये लंदन चले गए। उल्लेखनीय है कि लंदन में ही उनके एक दोस्त ने उन्हें भगवद् गीता से परिचित कराया और इसका प्रभाव गांधी जी की अन्य गतिविधियों पर स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है। वकालत की पढ़ाई के बाद जब गांधी भारत वापस लौटे तो उन्हें वकील के रूप में नौकरी प्राप्त करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।

 

 वर्ष 1893 में दादा अब्दुल्ला (एक व्यापारी जिनका दक्षिण अफ्रीका में शिपिंग का व्यापार था) ने गांधी जी को दक्षिण अफ्रीका में मुकदमा लड़ने के लिये आमंत्रित किया, जिसे गांधी जी ने स्वीकार कर लिया और गांधी जी दक्षिण अफ्रीका के लिये रवाना हो गए। विदित है कि गांधी जी के इस निर्णय ने उनके राजनीतिक जीवन को काफी प्रभावित किया।

 

 

दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गाँधी

दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गाँधी जी ने अश्वेतों और भारतीयों के प्रति नस्लीय भेद - भाव को महसूस किया। महात्मा गाँधी जी को कई अवसरों पर अपमान का सामना करना पड़ा। जिसके कारण महात्मा गाँधी जी ने नस्लीय भेद भाव से लड़ने का निर्णय लिया।

 

 उस समय दक्षिण अफ्रीका में अश्वेतों और भारतीयों को बोट देने और फुटपाथ पर चलने तक का अधिकार नहीं था। गाँधी जी ने इसका कड़ा विरोध किया और अंततः 1894 में 'नटाल इंडियन कांग्रेस' नामक एक संगठन स्थापित करने में सफल रहे। दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गाँधी जी 21 वर्षो तक रहने के बाद 1915 में भारत लोट आये।

 

भारत में गांधी जी का आगमन

दक्षिण अफ्रीका में लंबे समय तक रहने और अंग्रेज़ों की नस्लवादी नीति के खिलाफ सक्रियता के कारण गांधी जी ने एक राष्ट्रवादी, सिद्धांतवादी और आयोजक के रूप में ख्याति अर्जित कर ली थी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गोपाल कृष्ण गोखले ने गांधी जी को ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता हेतु भारत के संघर्ष में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया। वर्ष 1915 में गांधी भारत आए और उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की रणनीति तैयार करने हेतु देश के गाँव-गाँव का दौरा किया।

गाँधी जी और सत्याग्रह

गाँधी जी ने अपने सम्पूर्ण अहिंसक कार्य "पद्धति" को सत्याग्रह का नाम दिया। उनके लिए सत्य ग्रह का अर्थ  सभी प्रकार के अन्याय ,अत्याचार और शोषण के खिलाफ शुद्ध आत्मबल का प्रयोग करने से था। गाँधी जी का कहना था की सत्याग्रह को कोई भी अपना सकता है।

उनके विचार से सत्याग्रह उस बरगद के वृक्ष के सामान था जिसकी असंख्य शाखाये होती है चंपारण और बारदोली सत्याग्रह गांधी जी द्वारा केवल लोगों के लिये भौतिक लाभ प्राप्त करने हेतु नहीं किये गए थे, बल्कि तत्कालीन ब्रिटिश शासन के अन्यायपूर्ण रवैये का विरोध करने हेतु किये गए थे। सविनय अवज्ञा आंदोलन , दांडी आंदोलन, सत्याग्रह आंदोलन और भारत छोडो आंदोलन ऐसे प्रमुख उदाहरण थे जिसमे गाँधी जी ने आत्मबल को सत्याग्रह के हथियार के रूप में प्रयोग किया।

वर्तमान में कितना प्रसांगिक है सत्याग्रह ? –

महात्मा गांधी के सत्याग्रह को युद्ध के नैतिक विकल्प के रूप में देखा जा सकता है। उन्होंने आम जन को यह सिखाया कि सत्याग्रह का प्रयोग समस्या तथा संघर्ष के समाधान हेतु किस प्रकार किया जाता है। गांधी का सत्याग्रह राजनीतिक मुद्दों के निवारण हेतु एक प्रभावी साधन साबित हुआ है। युद्ध और शांति, आतंकवाद, मानवाधिकार, सतत विकास, जलवायु परिवर्तन, सामाजिक-राजनीतिक अशांति और राजनीतिक-प्रशासनिक भ्रष्टाचार से संबंधित समकालीन चुनौतियों में से कई को गांधीवादी तरीके से हल किया जा सकता है। अतः 21वीं सदी के लोगों के पास अभी भी गांधीवाद से सीखने के लिये बहुत कुछ सीखना बाकी है।

 

शिक्षा पर गांधीवादी दृष्टिकोण

जी एक महान शिक्षावादी थे उनका मन्ना था की किसी देश की सामाजिक, आर्थिक और नैतिक प्रगति अंततः शिक्षा पर निर्भर करती है। उनकी राय में शिक्षा का  सर्वोच्च उद्देश्य आत्म-मूल्यांकन है। गाँधी जी के अनुसार ,छात्रों के लिए चरित्र निर्माण सबसे महत्वपूर्ण है और यह उचित शिक्षा के आभाव में संभव नहीं है।

गांधी जी की शिक्षा अवधारणा

 गाँधी जी की शिक्षा अवधारणा को बुनियादी शिक्षा (Basic Education) के रूप में भी जाना जाता है उन्होंने स्कूलों पर कालेजों के पाठ्यक्रम में नैतिक और धार्मिक शिक्षा को शामिल करने पर बल दिया। गाँधी जी शिक्षा की अवधारणा के निम्नलिखित उद्देश्य बताए -

* अच्छे चरित्र का निर्माण करना।

 

* आदर्श नागरिक बनना।

 

* स्वावलम्बी बनना।

 

* सर्वांगीण विकास करना।

गांधी जी का धर्म

गाँधी जी का जन्म एक हिन्दू परिवार में हुआ था और उनके पिता एक दीवान थे ,इसलिए उन्हें अन्य धर्मो के लोगो से भी मिलने का अधिक अवसर मिला। गाँधी जी के कई ईसाई और मुस्लिम दोस्त थे। साथ ही गाँधी जी अपनी युवा अवस्था में जैन धर्म से काफी प्रभावित थे। कई विश्लेषकों का मानना है कि गांधी जी नेसत्याग्रहकी अवधारणा हेतु जैन धर्म के प्रचलित सिद्धांतअहिंसासे प्रेरणा ली थी।

गाँधी जी ने 'भगवान्' को 'सत्य' के रूप मे उल्लेखित किया था।उनका कहना थी की "मैं लकीर का फकीर नहीं हूँ।" वे संसार के सभी धर्मो को सत्य और अहिंसा की कसौटी पर कसकर देखते थे। जो भी उसमे खरा नहीं उतरता उन्हें गाँधी जी अस्वीकार देते थे। गाँधी जी के अनुसार ,धर्म को केवल खान- पान का विषय बनाकर उसकी प्रतिष्ठा कर दी है। वे चाहते थे की सभी धर्म के लोग अपने धर्म के साथ - साथ दूसरे धर्म के ग्रंथो और उनके अनुयायियों का भी आदर करे।

 

महात्मा गाँधी जी के विचार

 इंसान महान पैदा नहीं होता उसके विचार उसे महान बनाते है। विचार और काम की शुद्धता और सरलता ही महान लोगो को आम लोगो से अलग करती है। वे वही काम करते हैं, जो दूसरे करते हैं, लेकिन उनका मकसद पूरे समाज में बदलाव लाना ही होता है।

राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी जिन्हे हम प्यार से बापू कहते है महान सोच वाले एक साधारण व्यक्ति थे। वे करोडो देश वासियो के जीवन में बदलाव लाना चाहते थे। आज हमें जो आजादी हासिल है, उसके लिए राष्ट्रपिता ने बड़ी कुर्बानियां दी थीं।  वे सबके साथ मिलकर चलना चाहते थे। आज हम परिवार के अंदर बंट गए हैं, खुद को कंप्यूटर तक सीमित कर लिया है और स्मार्टफोन को अपनी दुनिया बना ली है।

 

इन जंजीरो से निकलने में बापू के विचार हमारे लिए मददगार हो सकते है ,जो हमारी आंखें खोल सकते हैं -

 

(1) खुद वो बदलाव बनिए जो आप दुनिया में देखना चाहते है।

 

(2) बापू ने कहा कि स्वास्थ्य ही असली संपत्ति है, कि सोना और चांदी।

 

(3) व्यक्ति अपने विचारों के सिवाय कुछ नहीं है. वह जो सोचता है, वह बन जाता है।

 

(4) कमजोर कभी क्षमाशील नहीं हो सकता है. क्षमाशीलता ताकतवर की निशानी है।

 

(5) ताकत शारीरिक शक्ति से नहीं आती है. यह अदम्य इच्छाशक्ति से आती है।

 

(6) धैर्य का छोटा हिस्सा भी एक टन उपदेश से बेहतर है।

(7) गौरव लक्ष्य पाने के लिए कोशिश करने में हैं, कि लक्ष्य तक पहुंचने में।

 

(8) आप जो करते हैं वह नगण्य होगा. लेकिन आपके लिए वह करना बहुत अहम है।

 

(9) हम जो करते हैं और हम जो कर सकते हैं, इसके बीच का अंतर दुनिया की ज्यादातर समस्याओं के समाधान के लिए पर्याप्त होगा।

 

(10) किसी देश की महानता और उसकी नैतिक उन्नति का अंदाजा हम वहां जानवरों के साथ होने वाले व्यवहार से लगा सकते है।

 

(11) कोई कायर प्यार नहीं कर सकता है; यह तो बहादुर की निशानी है।

 

(12) पाप से घृणा करो पापी से प्रेम करो।

 

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Article Posted By: Manju Kumari

Work Profile: Hindi Content Writer

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