वाल्मीकि जयंती (वाल्मीकि जयंती कथा)-
वाल्मीकि जयंती (वाल्मीकि जयंती कथा)-
वाल्मीकि जयंती देशभर में पूरे उत्साह के साथ मनायी जाती है। वाल्मीकि जयंती अश्विनी मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है , और उत्तर भारत में वाल्मीकि जयंती को प्रकट दिवस के रूप में मनाया जाता है। महर्षि वाल्मीकि आदि कवि के रूप में विख्यात है। इन्होंने रामायण की संस्कृत में रचना करी,जिसे वाल्मीकि रामायण के नाम से जाना जाता है। रामायण महाकाव्य है जिसके अंदर श्री राम जी के जीवन के विषय में बताया गया है। वाल्मीकि रामायण महाकाव्य की रचना करने के पश्चात आदि कवि कहलाए।
आदिकवि भगवान् वाल्मीकि जी नेआदिकाव्य श्रीमद्वाल्मीकिरामायणमें स्वयं का परिचय देते हुए बताया है कि वह किसी दस्यु कुल में उत्पन्न नहीं हुए थे,अपितु ब्रह्मर्षि भृगु के वंश में उत्पन्न ब्राह्मण थे. रामायण में भार्गव वाल्मीकिने 24000 श्लोकोंमें श्रीराम उपाख्यान ‘रामायण’ लिखी ऐसा वर्णन है –
संनिबद्धं हि श्लोकानां चतुर्विंशत्सहस्र कम् !
उपाख्यानशतं चैव भार्गवेण तपस्विना !!
जीवन परिचय - महर्षि वाल्मीकि का जन्म महर्षि कश्यप और अदिति के दसवे पुत्र वरुण और उनकी पत्नी चर्षणी के घर में हुआ। मनुस्मृति के अनुसार प्रचेता, वशिष्ठ, नारद, पुलसत्य आदि इन्हीं के भाई थे। पौराणिक कथा के अनुसार बाल्मीकि का नाम रत्नाकर था। महर्षि बनने से पहले बाल्मीकि जी डाकू रत्नाकर के नाम से जाने जाते थे। इनके बारे में कहा जाता है की एक भीलनी इन्हे एक भीलनी चुरा कर लाइ थी। जिसके कारन इनका पालन - पोषण भील परिवार में हुआ था। उसी ने ही इनका नाम रत्नाकर रखा था और पुरे परिवार का पालन - पोषण के लिए ही वह रत्नाकर डाकू लोगो को लूटपाट करके किया करता था।
एक बार की बात है की रत्नाकर डाकू को नारद मुनि मिल गए। तो रत्नाकर ने उन्हें भी लूटने का प्रयत्न किया। तब नारद जी ने कहा की यह सब तुम किसके लिए करते हो । तब रत्नाकर ने कहा की यह सब मैं अपने परिवार के पालन पोषण के लिए करता हूँ।नारदजी ने रत्नाकर से कहा”तुम जो यह सब अपराध कर रहे हो, क्या जब तुम्हें इन सब पापों की सजा मिलेगी तो तुम्हारा परिवार तुम्हारे अपराध को स्वीकार करेगा? क्या वह तुम्हारे इन पापों में भागीदार बनेगा?”
रत्नाकर ने नारदजी से कहा”क्यों नहीं ? मेरा परिवार सदैव मेरे साथ है और वह मेरे इन पापों में बराबर का भागीदार बनने को तैयार होगा.”
नारद मुनि ने कहा”क्या तुमने इस विषय में उनसे पूछा है?एक बार जाकर तुम उनसे उनके मन की बात को पूछो,अगर वह तुम्हारे इन पापों में भागीदार बनने के लिए तैयार हैं तो मैं तुम्हें अपना सारा धन खुशी पूर्वक दे दूंगा ”
नारद जी की बाते सुनकर रत्नाकर असमंजस में पड़ गए। रत्नाकर अपने असमंजस को दूर करने के लिए ,नारद जी को एक पेड़ से बांधकर अपने घर इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए पहुंच गए और उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों को एकत्रित किया और उनसे कहा कि “जो मैं यह निम्न कार्य चोरी डकैती करता हूं,जब इसके लिए मुझे इन पापों का दंड मिलेगा तो,क्या आप सब भी उस दंड को भोगने के लिए तैयार हैं?”
परन्तु यह क्या रत्नाकर की सोच से बिलकुल विपरीत उसके परिवार के सब सदस्यों ने कहा की आपके पाप के पापो का दंड तो आपको अकेले ही भुगतना पड़ेगा। हम उसके भागीदार नहीं बनेंगे। रत्नाकर के परिवार वालो ने उनके पापो में भागीदार होने से साफ़ इंकार कर दिया। यह जानकर रत्नाकर को बहुत निराशा हुई और वह नारद जी के पास पहुंचे और उनके चरणों में गिर पड़े और उनसे अपनी मुक्ति का उपाय पूछा।
नारद मुनि ने रत्नाकर को सत्य का परिचय करवाया।
उन्हें कहा कि वह राम राम का जाप करें,परंतु जीवन भर मारकाट करने वाले रत्नाकर के मुख से राम नाम नहीं निकल पा रहा था,तब नारद मुनि ने कहा कि तुम मरा- मरा बोलो राम खुद ही बन जाएगा,तब रत्नाकर ने मरा-मरा बोलना शुरू करा और मरा-मरा ,बोलते-बोलते यह राम-राम बोलने लगे और राम नाम में इतना रम गए की रत्नाकर राम धुन में लीन हो गए।
महर्षि वाल्मीकि द्वारा रामायण की रचना -महर्षि बाल्मीकि ने संस्कृत में रामायण की रचना की थी , रामायण एक महाकाव्य है ,संस्कृत में महाकाव्य की रचना करने के कारण ही बाल्मीकि आदि कवी कहलाये। एक बार की बात है की बाल्मीकि जी एक सारस पक्षी के जोड़े को निहार रहे थे यह जोड़ा प्रेम में लीन था तभी एक बहेलिया ने इस प्रेम में लीं जोड़े में से नर पक्षी को मार दिया। जिस कारण मादा पक्षी विलाप करने लगी। इस रुदन को सुनकर वाल्मीकि जी की करुणा जागृत हो गई और इस दुख की अवस्था में उनके मुख से स्वयं ही यह
प्रथम श्लोक निकल पड़ा –
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥
श्लोक का अर्थ है -"हे दुष्ट ! तुमने प्रेम में मग्न सारस को मारा है जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की पर्पटी नहीं हो पायेगी और तुझे भी वियोग झेलना पड़ेगा। " इसके बाद इन्होने महाकाव्य रामायण जो की बाल्मीकि रामायण के नाम से जानी जाती है रचना की और आदि कवी बाल्मीकि के नाम से अमर हो गए वाल्मीकि जी ने अपने महाकाव्य “रामायण” में अनेक घटनाओं के घटने के समय सूर्य, चंद्र तथा अन्य नक्षत्र की स्थितियों का वर्णन किया है।
इससे पता चलता है कि महर्षि वाल्मीकि ज्योतिष विद्या एवं खगोल विद्या के भी प्रकाण्ड ज्ञानी थे। अपने वनवास काल में (श्री राम) बाल्मीकि आश्रम में भी गए थे।देखत बन सर सैल सुहाए। वाल्मीक आश्रम प्रभु आए। महर्षि बाल्मीकि जी को श्री राम जी के जीवन की घटनाओ का पूर्ण रूप से ज्ञान था सतयुग त्रेता और द्वापर तीनो ही काल में बाल्मीकि का उल्लेख बलिकी के नाम से ही मिलता है। राम चरित्र मानस के अनुसार जब राम बाल्मीकि आश्रम आये थे , तो वो आदिकवि वाल्मीकि के चरणों में दण्डवत प्रणाम करने के लिए
जमीन पर डंडे की भांति लेट गए थे और उनके मुख से निकला था
“तुम त्रिकालदर्शी मुनिनाथा, विश्व बद्रर जिमि तुमरे हाथा।”
अर्थ - आप तीनो लोको के जानने वाले स्वम् प्रभु हो , ये पूरा संसार आपके हांथो में एक बेर के सामान प्रतीत होता है। जब राम ने अपनी पत्नी सीता का परित्याग किया था तब सीता जी को भी महर्षि बाल्मीकि जी ने अपने आश्रम में ही आश्रय दिया था। बाल्मी जी को श्रीराम जी के जीवन में घटने वाली घटनाओ का पहले से ही ज्ञान था। वाल्मीकि जी ने भगवान विष्णु को दिये श्राप को आधार मान कर अपने महाकाव्य “रामायण” की रचना की।
महाभारत काल में भी वाल्मीकि का वर्णन मिलता है। जब पांडवों ने कौरवों से युद्ध में विजय प्राप्त करी तो द्रौपदी ने यज्ञ करा, जिसमें सफल होने के लिए शंख का बजना जरूरी था , और शंख को बजाने के लिए कृष्ण सहित सभी के प्रयास करने पर भी शंख नहीं बजा शंख, ना बजने पर यज्ञ सफल नहीं होता तो कृष्ण के कहने पर सभी वाल्मीकि से प्रार्थना करते हैं और वाल्मीकि जी वहां प्रकट हुए तो शंख खुद-ब-खुद बज उठता हैऔर द्रौपदी का यज्ञ संपूर्ण हुआ।
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Article Posted By: Manju Kumari
Work Profile: Hindi Content Writer
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