अहोई अष्टमी का क्या है महत्व ? कैसे करें अहोई अष्टमी का व्रत नियम और कथा -
अहोई अष्टमी का क्या है महत्व ? कैसे करें अहोई अष्टमी का व्रत नियम और कथा - होई अष्टमी बच्चों की खुशहाली के लिए किया जाता है। अहोई अष्टमी व्रत कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी को आता है। यह व्रत करवा चौथ के चौथे दिन किया जाता है। माँ रात्रि को तारे देखकर ही अपने पुत्र के दीर्घायु होने की कामना करती हैं और उसके बाद व्रत खोलती हैं। नि:संतान महिलाएं पुत्र प्राप्ति की कामना से अहोई अष्टमी का व्रत करती हैं और व्रत के प्रताप से उनकी मनोकामना पूर्ण होती है।
व्रत के नियम -
(1) व्रत के दिन सुबह प्रातः उठकर स्नान आदि करके पूजन के समय ही संकल्प लिया जाता है।“हे अहोई माता, मैं अपने पुत्र की लम्बी आयु एवं सुखमय जीवन हेतु अहोई व्रत कर रही हूं। अहोई माता मेरे पुत्रों को दीर्घायु, स्वस्थ एवं सुखी रखें।” अनहोनी से बचाने वाली माता देवी पार्वती हैं इसलिए इस व्रत में माता पर्वती की पूजा की जाती है।
(2) अहोई माता के पूजा के लिए गेरू से अहोई माता चित्र दीवाल पर बनाया जाता है। साथ में स्याहु और उसके सात पुत्रो की भी आकृति दीवाल पर बनाई जाती है।
(3) माता के सामने चावल की कटोरी ,सिघाड़े और मूली राखी जाती है सुबह में दिया रखकर कहानी कहि जाती है। कहानी कहते समय जो चावल हाँथ में लिए जाते है उन्हें साड़ी / सूट के दुप्पटे में बाँध लेते हैं। सुबह पूजा करते समय लोटे में पानी और उसके ऊपर करवे में पानी रखते हैं।
(4) ध्यान रखें कि यह करवा, करवा चौथ में इस्तेमाल हुआ होना चाहिए। इस कर्वे का पानी दीवाली के दिन घर में भी छिड़का जाता है। संध्या काल में इन चित्रों कीपूजा की जाती है। पके हुए खाने में 14 पूड़ी और 8 पुओ का भोग अहोई माता को लगाया जाता है। उस दिन बयाना निकाला जाता है। बायने में चौदह पूरी या मठरी या काजू होते हैं। लोटे का पानी शाम को चावल के साथ तारों को आर्ध किया जाता है।
(5) अहोई माता की पूजा में एक विधान यह भी है चांदी की अहोई बनाई जाती है जिसे स्याहु कहते है। इस स्याहु की पूजा रोली ,अक्षत ,दूध और भात से की जाती है। पूजा आप चाहे जिस विधि से करे लेकिन दोनों में ही कलश में जल भर कर रख ले और पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुने और सुनाये। पूजा के बाद अपनी सास के पैर जरूर छुए और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके पश्चात व्रती अन्न जल ग्रहण करती है।
अहोई अष्टमी का व्रत कथा - प्राचीन काल में एक साहुकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थी। इस साहुकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गई तो ननद भी उनके साथ हो ली। साहुकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए ग़लती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से स्याहू का एक बच्चा मर गया। स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी।
साहूकार की बेटी अपनी सतो भाभियो से एक - एक करके विनती करती है वह उसके बदले अपनी कोख को बंधवा ले। सबसे छोटी भाभी अपनी कोख बंधवाने को तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी को जो भी बच्चे होते वे सात दिन बाद मर जाते थे। इस प्रकार उसके सात बेटे मर गए। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।
सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और उसे स्याहु के पास ले जाती है। रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं अचानक साहुकार की छोटी बहू की नज़र एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहु ने उसके बच्चे के मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है। छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है। गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है।
वहां स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहु होने का अशीर्वाद देती है। स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहु का घर पुत्र और पुत्र वधुओं से हरा भरा हो जाता है। अहोई का अर्थ एक प्रकार से यह भी होता है "अनहोनी से बचाना " जैसे साहुकार की छोटी बहू ने कर दिखाया था।
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Article Posted By: Manju Kumari
Work Profile: Hindi Content Writer
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