The Story Of Surrender To Shri Hari Vishnu : Power Of Devotion To Load Shri Hari Vishnu!
The Story of Surrender to Shri Hari Vishnu : Power of Devotion to Load Shri Hari Vishnu! Vishnu! - श्री हरी विष्णु अपने सच्चे भक्तो की रक्षा अवश्य ही करते है। ऐसा विश्वास हमे अपने मन में हमेशा रखना चाहिए। एक सच्चे ह्रदय से निकली प्रार्थना भगवान् हरी को तुरंत ही अपने भक्तों की मदद करने के लिए ,आने को मजबूर कर देती है। भगवान् विष्णु अपने भक्तों को ज़रा भी कष्ट नहीं होने देते है। अतः गजेंद्र मोक्ष की कथा सुनते है यह कहानी भगवान विष्णु के प्रति विश्वास और समर्पण के लिए अति उपयुक्त है। क्षीरसागर पर एक त्रिकुट नाम का प्रसिद्ध ,सुन्दर एवं श्रेष्ट पर्वत था।
10,000 योज़न की ऊंचाई लम्बाई व् चौड़ाई वाले पर्वत की छठा से समुद्र दिशाएं व् आकाश जगमगाते रहते थे। वही पास में एक बड़ा सरोवर था।उसमे सुनहरे कमल खिलते थे। उसी पर्वत के घने जंगल में बहुत सारी हथनियो के साथ गजराज बजरंग भी रहता था। और वहां के बड़े - बड़े शक्तिशाली हाथियों का सरदार था। एक बार वह अपनी हथनियो के साथ बड़ी - बड़ी झाड़ियों को रोंदता हुआ घूम रहा था। उसकी गंध मात्र से शेर जैसे हिंसक पशु भी डर कर भाग रहे थे। कुछ समय घूमने के बाद गजेंद्र को प्यास लगी और कड़ी धुप में प्यास से व्याकुल होकर अपने छोटे - छोटे बच्चो और हथनियों के साथ गजेन्द्र उस सुगन्धित सरोवर की ओर चल पड़ा।
सभी ने पहले तो उस सरोवर जल पिया फिर स्नान कियाऔर बाद मे जल से खेलने लगे। ठीक उसी समय एक मगरमच्छ ने क्रोध से भरकर गजेन्द्र गजराज का पैर पकड़ लिया। गजेन्द्र ने अपने आप को छुड़ाने की बहुत कोशिश की ,लेकिन उसके सभी प्रयास बेकार हो गए। दूसरे हाथियों ने भी उसकी सहायता करनी चाही, लेकिन वे भी इसमें असफल रहे। कभी गजेन्द्र मगरमच्छ को बाहर खींच लाता तो कभी मगरमच्छ उसे सरोवर में अंदर की ओर खींच ले जाता। गजेन्द्र और मगरमच्छ अपनी पूरी ताकत लगाकर लड़ते रहे। सरोवर का निर्मल जल गन्दा हो गया था। और कमल क्षत - विक्षत हो गए थे। काफी देर तक खींचा तानी में गजेन्द्र का मन और शरीर दोनों शिथिल पड़ गए और मगरमच्छ तो ठहरा जलचर। अब वह और उत्साहित और ताकत से उसे खींचने लगा।
गजेन्द्र दुखी होकर सोचने लगा की मैं तो पानी पीकर अपनी प्यास बुझाने के लिए यहाँ आया था। प्यास बुझाकर मुझे चले जाना चाहिए था। मैं क्यों इस तालाब में उतर पड़ा? अब मुझे कौन बचायेगा ? सभी प्रकार से असमर्थ गजेन्द्र के प्राण संकट में पड़ गए। उसकी शक्ति और पराक्रम का अहंकार चूर हो गया था। अब वह पूरी तरह निराश हो गया था। इस तरह जगेंद्र को अपनी मृत्यु साफ़ दिखाई दे रही थी। फिर भी मन के किसी कोने में यह विश्वास था की उसने इतना लम्बा संघर्ष किया है तो उसकी जान बच सकती है , उसने अपने आप से कहा की मैं स्वम् और मेरा परिवार मुझे नहीं बचा पाया ,अब तो मैं विश्व के एक मात्र स्वामी श्री हरी विष्णु की ही शरण लेता हूँ, वे हीअब मेरी रक्षा करेंगे।
अपनी बुद्धि से ऐसा निश्चय करके गजेन्द्र ने अपने मन को ह्रदय में एकाग्र किया और पूर्व जन्म में सीखे हुए मंत्रो से श्री हरी विष्णु का मन से जाप करने लगा। मैं श्री हरी विष्णु भगवान जी को मन से प्रणाम करता हूँ जो जगत के मूल कारक है सबके ह्दय में विद्धमान है। समस्त जगत के एक मात्र स्वामी है और सारा संसार उनमे समाया हुआ है। जिनके प्रभाव से संसार का अस्तित्व है। मैं उन्ही श्री हरी विष्णु भगवान की शरण लेता हूँ। हे ! नारयण मुझ शरणागत की रक्षा कीजिए। श्री हरी विष्णु के स्मरण से गजेन्द्र की पीड़ा कुछ कम हुई। प्रभु के शरण में आये हुए प्राणी को कष्ट देने वाले मगरमच्छ के जबड़ो में दर्द हुआ। फिर भी वह क्रोध में जोर से जगेंद्र के पैर चबाने लगा।
झटपटाते हुए गजेन्द्र ने फिर स्मरण किया और कहा – “जब तक मुझ जैसे घमंडी प्राणी जब तक संकट में नहीं पड़ते जब तक आपको याद भी नहीं करते। हे प्रभु ! यदि दुःख न हो तो हमे आपकी जरुरत का बोध ही नहीं होता। आप जब तक प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देते जब तक संसार का प्राणी आपका अस्तित्व ही नहीं मानता। लेकिन कष्ट में आपकी ही शरण मे पहुंच जाता है।“ जीवों की पीड़ा को हरने वाले देव आप सृष्टि के मूलभूत कारक है। गजेन्द्र ने श्री हरी विष्णु की स्तुति जारी रखी। हे प्रभु मेरे पाव की शक्ति जबाब दे चुकी है ,आँशु भी सुख गए है,अब मैं ऊँचे स्वर में पुकार भी नहीं सकता।आप चाहे तो मेरी रक्षा करे या मेरे हाल पर छोड दे। अब सब आपकी दया पर निर्भर है।
हे ! सर्व शक्तिमान भगवान् मैं आपकी शरण में हूँ। पीड़ा से व्याकुल गजेंद्र सूंड उठा कर भगवान् के आने की आशा से आकाश में देखने लगा। ऐसी करुणामयी स्तुति सुनकर भक्त वत्सल श्री हरी विष्णु भगवान् तुरंत अपनी सवारी गरुड़ पे सवार होकर बिना देरी के शीघ्रता से स्वम् ही वह प्रकट हो गए। जहां गजेंद्र संकट में फॅसा हुआ था। पीड़ा से व्याकुल गजेंद्र ने जब श्री हरी विष्णु भगवान् को देखा तो गजेंद्र ने उस अवस्था में भी अपनी बची हुई शक्ति के द्वारा अपनी सूंड में लाल कमल के सुन्दर पुष्प को उठाया और डूबते हुए सरोवर में बहुत ही दीन भाव से बोला "हे नारायण ! आपको नमस्कार है। मैं आपके चरणों में अपने आप को पूरी तरह से समर्पण करता हूँ।" भक्त वत्सल भगवान् ने तुरंत अपना सुदर्शन चला कर मगरमच्छ का सर धड़ से अलग कर दिया और गजेंद्र को बचा लिया।
अतः दोस्तों इस तरह कोई दूसरा उपाए न पाकर हांथी गजेंद्र ने जिस प्रकार श्री हरी विष्णु को याद किया और अपने आप को विष्णु को पूर्ण रूप से समर्पण कर दिया। भक्त की इतनी करुण पुकार सुनकर भगवान् ने हांथी की जान बचाई। ऐसे ही हमे भगवान् को पूरी तरह से अपना जीवन को समर्पण कर देना चाहिए।
इस घटना से हमे ये पता चलता है भक्ति में कितनी शक्ति होती है। और इस सच्चे ह्रदय से निकली एक सच्ची प्रार्थना भगवान् विष्णु को भी आने के लिए मजबूर कर देती है। ये भी स्पष्ट होता है की यदि हमारे ह्रदय में भगवान् विष्णु के प्रति समर्पण और पूर्ण भक्ति है तो जीवन में कठिन परिस्थिति में प्रभु हमारा हाँथ पकड़ लेंगे। जो गजेंद्र ने स्तुति की थी इसे ही गजेंद्र स्तुति कहते है और विकार परिस्थिति में गजेंद्र स्तुति करने की सलाह भी दी जाती है।
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