मकर संक्रांति क्यों मानते है ? इसका मूल कारण क्या है ? मकर संक्रांति का विशेष महत्व क्या है ?
मकर संक्रांति क्यों मानते है ? इसका मूल कारण क्या है ? मकर संक्रांति का विशेष महत्व क्या है ? - ये तो हम सभी जानते ही हैं की भारत एक धर्म प्रधान देश हैं। भारतीय कैलेण्डर त्यौहारों की लिस्ट से भरा हुआ होता हैं क्योंकि भारत में कई त्यौहार हर्ष उल्लाश से मनाए जाते हैं। उन्ही प्रसिद्ध भारतीय त्यौहारों में से एक ‘मकर संक्रांति‘ भी हैं। हम सभी लोग मकर संक्रांति को बड़े ही धूम धाम से मनाते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं की ‘मकर सक्रांति क्यों मनाई जाती हैं’? अगर नहीं, तो आज के इस पोस्ट में हम आपको मकर संक्रांति को मनाने का कारण विस्तृत रूप से बताएंगे।
भारत में अलग अलग धर्मों के साथ उनकी विभिन्न मान्यताएं भी मौजूद है। लेकिन सभी धर्मों के लोग सभी त्यौहारो को मिल-जुलकर और बड़े ही हर्षोल्लास से मनाते हैं। यही तो हमारे देश की खूबसूरती हैं, जो की हमें औरों से अलग करता है। कहा भी गया हैं की
“अनेकता में एकता, भारत की विशेषता।”
सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तो ज्योतिष में इस घटना को संक्रांति कहते हैं। मकर संक्रांति के अवसर पर सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होता है। एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति के बीच का समय ही सौर मास कहलाता है। पौष मास में सूर्य उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो इस अवसर को देश के अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग त्योहार के रूप में मनाते हैं। मकर संक्रांति का त्योहार उत्तर भारत में हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है।
इस दिन से धरती पर अच्छे दिनों की शुरुआत मानी जाती है इसकी वजह यह है कि सूर्य इस दिन से दक्षिण से उत्तरी गोलार्ध में गमन करने लगते हैं, इससे देवताओं के दिन का आरंभ होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन स्वर्ग का दरवाजा खुल जाता है। इसलिए इस दिन किया गया दान पुण्य अन्य दिनों में किए गए दान पुण्य से अधिक फलदायी होता है।
भीष्म पितामाह ने चुना था आज का दिन - मकर संक्रांति के दिन शुद्ध घी एवं कंबल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रांति का दिन ही चयन किया था। गीता में बताया गया है कि जो व्यक्ति उत्तरायण में शुक्ल पक्ष में देह का त्याग करता है उसे मुक्ति मिल जाती है। मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं इसलिए इस पुण्यदायी दिवस को हर्षोल्लास से लोग मनाते हैं।
पुराणों में मकर संक्रांति की कथा - श्रीमद्भागवत एवं देवी पुराण के मुताबिक, शनि महाराज का अपने पिता से वैर भाव था क्योंकि सूर्य देव ने उनकी माता छाया को अपनी दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेद-भाव करते देख लिया था, इस बात से नाराज होकर सूर्य देव ने संज्ञा और उनके पुत्र शनि को अपने से अलग कर दिया था। इससे शनि और छाया ने सूर्य देव को कुष्ठ रोग का श्राप दे दिया था।
मकर संक्रांति से जुड़ा है सूर्य शनि का वरदान - पिता सूर्यदेव को कुष्ठ रोग से पीडि़त देखकर यमराज काफी दुखी हुए। यमराज ने सूर्यदेव को कुष्ठ रोग से मुक्त करवाने के लिए तपस्या की। लेकिन सूर्य ने क्रोधित होकर शनि महाराज के घर कुंभ जिसे शनि की राशि कहा जाता है उसे जला दिया। इससे शनि और उनकी माता छाया को कष्ठ भोगना पड़ रहा था। यमराज ने अपनी सौतेली माता और भाई शनि को कष्ट में देखकर उनके कल्याण के लिए पिता सूर्य को काफी समझाया। तब जाकर सूर्य देव ने कहा कि जब भी वह शनि के दूसरे घर मकर में आएंगे तब शनि के घर को धन-धान्य से भर देंगे। प्रसन्न होकर शनि महाराज ने कहा कि मकर संक्रांति को जो भी सूर्यदेव की पूजा करेगा उसे शनि की दशा में कष्ट नहीं भोगना पड़ेगा।
मकर संक्रांति पर पतंग महोत्सव - मकर संक्रांति पर्व को 'पतंग महोत्सव' के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लोग छतों पर खड़े होकर पतंग उड़ाते हैं। हालांकि पतंग उड़ाने के पीछे कुछ घंटे सूर्य के प्रकाश में बिताना मुख्य वजह बताई जाती है। सर्दी के इस मौसम में सूर्य का प्रकाश शरीर के लिए स्वास्थवद्र्धक और त्वचा तथा हड्डियों के लिए बेहद लाभदायक होता है।
पतंग है शुभ संदेश वाहक - मकर संक्रांति पर उड़ाई जाने वली पतंग का भी बहुत महत्व माना जाता है कहा जाता है की इस दिन उड़ाई गयी पतंग खुशी, उल्लास, आजादी और शुभ संदेश आने का प्रतीक माना जाता है। संक्रांति के दिन से ही घर में सारे शुभ काम शुरू हो जाते हैं और वो शुभ काम पतंग की तरह ही सुंदर, निर्मल और उच्च कोटि के हों इसलिए पतंग उड़ाई जाती है। काम की शुभता के लिए तो कहीं-कहीं लोग तिरंगे को भी पतंग रूप में इस दिन उड़ाते हैं।
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Article Posted By: Manju Kumari
Work Profile: Content Writer
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