ऋषि महर्षि मुनि साधु और संत मे क्या अंतर है?

504
Views

"#ऋषि,"#महर्षि,"#मुनि "#साधु और "संत मे क्या #अंतर है?
भारत मे प्राचीन समय से ही ऋषि-मुनियो का विशेष महत्व रहा है,क्यूंँकि ये समाज के पथ प्रदर्शक माने जाते थे,ऋषि -मुनि अपने ज्ञान और तप के बल पर समाज कल्याण का कार्य करते थे और लोगो को समस्याओं से मुक्ति दिलाते थे,आज़ भी तीर्थ स्थल,जंगल और पहाड़ो मे कई साधु-संत देखने को मिल जाते है,लेकिन क्या आपको पता है कि साधु,संत, ऋषि, महर्षि आदि यह सब अलग-अलग होते है, क्यूंँकि ज्यादातर लोग इनका अर्थ एक ही समझते है, जानिए कि ऋषि, महर्षि, मुनि, साधु और संत मे क्या अंतर है और उनके बारे मे क्या मान्यताएं है...
~ऋषि
ऋषि वैदिक संस्कृत भाषा का शब्द है, वैदिक ऋचाओं के रचयिताओ को ही ऋषि का दर्जा प्राप्त है,ऋषि को सैकड़ों सालो के तप या ध्यान के कारण सीखने और समझने के उच्च स्तर पर माना जाता है, वैदिक कालिन मे सभी ऋषि गृहस्थ आश्रम से आते थे,ऋषि पर किसी तरह का क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार और ईर्ष्या आदि की कोई रोकटोक नही है,और ना ही किसी भी तरह का संयम का उल्लेख मिलता है,ऋषि अपने योग के माध्यम से परमात्मा को प्राप्त हो जाते थे और अपने सभी शिष्यो को आत्मज्ञान की प्राप्ति करवाते थे,वे भौतिक पदार्थ के साथ-साथ उसके पीछे छिपी ऊर्जा को भी देखने मे सक्षम थे,हमारे पुराणो मे सप्त ऋषि का उल्लेख मिलता है,जो #केतु,#पुलह,#पुलस्त्य, #अत्रि,#अंगिरा,#वशिष्ठ तथा #भृगु है,
ज्ञान और तप की उच्चतम सीमा पर
पहुंचने वाले व्यक्ति को महर्षि कहा जाता
है,इनसे ऊपर केवल ब्रह्मर्षि माने जाते है,
हर सभी मे तीन प्रकार के चक्षु होते है,
वह ज्ञान चक्षु,दिव्य चक्षु और परम चक्षु है,
जिसका ज्ञान चक्षु जाग्रत हो जाता है,उसे
ऋषि कहते है,जिसका दिव्य चक्षु जाग्रत होता है,उसे महर्षि कहते है,और जिसका
परम चक्षु जाग्रत हो जाता है उसे ब्रह्मर्षि
कहते है,अंतिम महर्षि दयानंद सरस्वती
हुए थे,जिन्होने मूल मंत्रों को समझा और
उनकी व्याख्या की,इसके बाद आज तक
कोई व्यक्ति महर्षि नही हुआ,महर्षि
मोह-माया से विरक्त होते है,और
परमात्मा को समर्पित हो जाते है,
साधना करने वाले व्यक्ति को साधु कहा जाता है। साधु होने के लिए विद्वान होने की जरूरत नहीं है क्योंकि साधना कोई भी कर सकता है। प्राचीन समय में कई व्यक्ति समाज से हटकर या समाज में रहकर किसी विषय की साधना करते थे
और उससे विशिष्ट ज्ञान प्राप्त करते थे,
कई बार अच्छे और बुरे व्यक्ति मे फ़र्क
करने के लिए भी साधु शब्द का प्रयोग
किया जाता है,इसका कारण यह है कि
साधना से व्यक्ति सीधा,सरल और
सकारात्मक सोच रखने वाला हो जाता है, साथ ही वह लोगो की मदद करने के लिए
हमेशा आगे रहता है,साधु का संस्कृत मे
अर्थ है सज्जन व्यक्ति और इसका एक
उत्तम अर्थ यह भी है 6 विकार यानी काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर का त्याग कर देता है,जो इन सबका त्याग कर देता है और साधु की उपाधि दी जाती है,
संत शब्द संस्कृत के एक शब्द शांत से बिगड़ कर और संतुलन से बना है,संत उस व्यक्ति को कहते है,जो सत्य का आचरण करता है और आत्मज्ञानी होता है
जैसे- संत कबीरदास, संत तुलसीदास, संत रविदास,ईश्वर के भक्त या धार्मिक पुरुष को भी संत कहते है,बहुत से साधु महात्मा संत नही बन सकते क्यूंँकि घर-परिवार को त्यागकर मोक्ष की प्राप्ति के लिए चले जाते है,इसका अर्थ है कि वह अति पर जी रहे है,जो व्यक्ति संसार
और अध्यात्म के बीच संतुलन बना लेता है उसे संत कहते है,संत के अंदर सहजता शांत स्वभाव मे ही बसती है,
संत होना गुण भी है और योग्यता भी..
मुनि शब्द का अर्थ होता है मौन अर्थात शांति यानि जो मुनि होते है,वह बहुत कम बोलते है,मुनि मौन रखने की शपथ लेते है, और वेदों और ग्रंथों का ज्ञान प्राप्त करते है,जो ऋषि साधना प्राप्त करते थे और मौन रहते थे उनको मुनि का दर्जा प्राप्त होता था,कुछ ऐसे ऋषियो को मुनि का दर्जा प्राप्त था,जो ईश्वर का जप करते थे और नारायण का ध्यान करते थे,जैसे कि नारद मुनि,मुनि मंत्रों को जपते है,और अपने ज्ञान से एक व्यापर भंडार की उत्पत्ति करते है,मुनि शास्त्रों की रचना करते है,और समाज के कल्याण के लिए रास्ता दिखाते है,मौन साधना के साथ-साथ जो व्यक्ति एक बार भोजन करता हो और 28 गुणो से युक्त हो,
वह व्यक्ति ही मुनि कहलाता है...
शांति के लिए संत बनो,संकल्प लो सन्यासी बनो,मन का वध कर महंत बनो,अंत और संत एक समान ख़ोज कर और रोज़ कर,खोजी मौजी का धैर्य अपार
आश और निराश से न हार,ज्ञान की तलाश दरिया पार...
की वैदिक ऋचाओं को ऋषि मुनियों द्वारा
ईश्वरीय मुखमंडल से सुनकर संग्रह किया गया है,
लेकिन कुछ म्लेच्छ,अधर्मी,धर्म द्रोहि, संस्कृति के विरोधी एवं मनो कुंठित विकृत विचार धारा वाले, विक्षिप्त दार्शनिको का कहना है की सब मनुष्य द्वारा लिखित है,
जो कि सत प्रतिशत सत्य कथन है,
च्यूंकी सत्य अपने आप फलितार्थ होता है,
और उस सस्ते घटिया एवं संकुचित दार्शनिको को स्वयं ही मनुष्य श्रेणी से विमुख कर देता है, और वो विमुख होकर अपनी मनघड़ंत विक्षिप्त विचारधारा के सहारे अपनी मंदबुद्धि से बेमतलब बेबुनियाद वेदांत,वेदांत दर्शन एवं ग्रंथों की रचनाएं रचकर, उसको सत्य का ढकोसला कर, मानवीय मूल्यों संवेदनाओं एवं मानवीय जीवन को तार तार कर देते है, जैसे वो स्वयं प्रकृति,सृष्टि,इश्वर,रचयिता,परमेश्वर जो भी परम तत्व है, उसके विपरीत स्वयंघोषित भगवान बनने की चेष्टा करते है,
और भारतवर्ष जैसे विशाल उपखंड मे सम्भव भी है, जहांँ के लोग गुलामी सहर्ष स्वीकार कर सकते है, वो और क्या क्या स्वीकार नही करेंगे, अपितु ईश्वरीय सत्ता के आगे कोई भी जीव एक सुक्ष्म कण के अतिरिक्त कोई भी दर्ज़ा नही रखता, केवल और केवल समस्त अस्तित्व का एक कण मात्र, और ऐसे दार्शनिक अतः ऐसी मृत्यु पाते है, जिसकी कल्पना करना भी,
अकल्पनीय है, और जो कोई भी ऐसे दार्शनिको की मृत्यु की सच्चाई जान जाता है, वो कभी भी किसी दार्शनिक एवं स्वयं घोषित ज्ञानी के झांसे मे नही फंसता....
सत आकार सत्य निराकार
शिव शंभू ????????????

0 Answer

Your Answer



I agree to terms and conditions, privacy policy and cookies policy of site.

Post Ads Here


Featured User
Apurba Singh

Apurba Singh

Member Since August 2021
Nidhi Gosain

Nidhi Gosain

Member Since November 2019
Scarlet Johansson

Scarlet Johansson

Member Since September 2021
Mustafa

Mustafa

Member Since September 2021
Atish Garg

Atish Garg

Member Since August 2020

Om Paithani And Silk Saree



Quality Zone Infotech



Sai Nath University


Rampal Cycle Store



Om Paithani And Silk Saree



Quality Zone Infotech



Kuku Talks



Website Development Packages