हमें वृद्धाश्रम भेजने की तैयारी कर रहे हो
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"मम्मा, ये बताओ, दादा-दादी आपको बहुत परेशान करते हैं, ना?" बेटे ने मासूमियत से पूछा।
"हाँ बेटा, पर क्या कर सकते हैं... अब हैं यहाँ, तो झेलना ही पड़ेगा," माँ ने थकी हुई आवाज़ में जवाब दिया।
"पर क्यों मम्मा, क्यों झेलना पड़ेगा?" बेटे ने जिज्ञासा से पूछा।
"तुम नहीं समझोगे, रहने दो," माँ ने बात टालने की कोशिश की।
"एक काम करते हैं मम्मा, इन दोनों को चाचा-चाची के घर भेज देते हैं।"
"वो वहाँ दो दिन भी नहीं रह पाएंगे बेटा। चाची तो दादी को देखते ही तुनक जाती है और चाचा तो तुम्हारे चाची के पल्ले से ऐसे बंधे हैं कि वो उतना ही सुनते हैं जितना चाची कहती है। वहाँ इनका कोई गुज़ारा नहीं होने वाला।"
"तो बुआ को बोल दो ना, ये उनके भी तो माँ-पापा हैं, वो ही ले जाएँ कुछ दिनों के लिए इन दोनों को।"
"तुम भी ना बड़े भोले हो बेटा। वहाँ नहीं जाएंगे दादा-दादी। ढकोसला करेंगे कि हम तो बेटी के घर का पानी भी नहीं पी सकते तो वहाँ जाकर रहेंगे कैसे और अगर रहने को तैयार हो भी गए तो तुम्हारी बुआ के पचासों बहाने निकल आएंगे। वो भी तो अपनी माँ पर ही गई है।"
"क्या मम्मा, मतलब कोई इन्हें अपने साथ नहीं रखना चाहता। एक काम करो मम्मा, इन्हें वहाँ पहुँचा दो... वो मैंने टीवी पर देखा था, कुछ ओल्ड ऐज होम टाइप से है... अरे वो जो उस दिन मूवी में आ रहा था।"
"वृद्धाश्रम कहते हैं उसे। मैं भी थक जाती हूँ काम करके। सुबह उठने से सोने तक इनके नखरे झेलना... तौबा तौबा... कब तक आखिर। मैं भी कुछ दिन और देख रही हूँ, नहीं तो तुम्हारे पापा से बात करूँगी कि वो इन दोनों को वहीं छोड़ आए।"
"हाँ, यही ठीक रहेगा। दादी दिन भर टोकती रहती है... टीवी मत देखो, मोबाइल मत खेलो... मैं बच्चा थोड़े ना हूँ... बड़ा हो रहा हूँ मैं... समझदार हो रहा हूँ। ये भी कोई बात हुई भला... हुँ..."
"अरे मेरा राजा बेटा... इतना गुस्सा... दस साल के ही हो अभी... मेरी आँखों के तारे हो तुम... इतनी जल्दी बड़े हो जाओगे, कभी सोचा ही नहीं था। अब देखो तुम बड़े होते जाओगे और हम बूढ़े होते जाएँगे। फिर तुम्हारी शादी करेंगे, प्यारी सी दुल्हनियाँ लाएँगे।"
"नहीं मम्मा, प्लीज़... मैं तो बड़ा हो रहा हूँ, पर आप लोग प्लीज़ बूढ़े मत होना।"
"हा हा हा, क्यों बेटा... बूढ़ा तो सबको ही होना है एक दिन।"
"पर मम्मा, आप लोग बूढ़े हो जाओगे और मेरी वाइफ आएगी तो उसे भी ऐसे ही परेशान होना पड़ेगा ना... वो भी तरह-तरह के आईडिया सोचेगी कि कैसे आप लोगों को यहाँ से हटाया जाए। नो मम्मा, प्लीज़ नो... आप भी दादी की तरह हो जाओगी और मेरी वाइफ को परेशान करोगी... मैं ऐसा नहीं होने दूँगा... एक काम करूँगा... मैं मेरी शादी होते ही आप दोनों के लिए ओल्ड ऐज होम बुक करवा दूँगा जहाँ आप लोग रह सकोगे और मैं और मेरी वाइफ भी चैन से रह लेंगे।"
"हुँ... हमारा घर है हमारे पास... तुम रहना अपने घर में अपनी वाइफ को लेकर। यही करोगे तुम... पाल पोस कर बड़ा कर रहे हैं और तुम हमें वृद्धाश्रम भेजने की तैयारी कर रहे हो। वाह बेटा, वाह..."
"मम्मा, मैं कहाँ कुछ गलत कह रहा हूँ। दादा-दादी ने भी तो पापा-बुआ को पाला-पोसा ही होगा ना। सभी माँ-बाप पालते हैं अपने बच्चों को, उसमें क्या नया है। पर अब जब सब बड़े हो गए हैं, तो कोई बूढ़े लोगों को अपने पास नहीं रखना चाहता तो भला मैं क्यों रखूँगा। परेशानी बढ़ाते हैं ये बूढ़े लोग। मैं भी नहीं रखूँगा और साइंटिस्ट बन कर कोई ऐसी दवा बनाऊँगा जिससे कि मैं कभी बूढ़ा ही ना हो पाऊँ और मेरे बच्चों को कोई ओल्ड ऐज होम ना ढूँढना पड़े।"
अपने बेटे की बातें सुनकर माँ के शरीर में सिहरन सी दौड़ गई और जिन आँखों में कुछ देर पहले परेशानी, व्यथा, गुस्सा दिख रहा था, उन्हीं आँखों में अब शर्म पानी का रूप ले चुकी थी।