क्या है सनातन धर्म ? सनातन धर्म क्या सिखाता है?

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क्या है सनातन धर्म ?  सनातन धर्म भी एक हिन्दू धर्म ही है लेकिन बहुत से लोग सनातन धर्म को हिन्दू धर्म से अलग मानते ह।  वे कहते हैं कि हिन्दू नाम तो विदेशियों ने दिया। पहले इसका नाम सनातन धर्म ही था। फिर कुछ लोग कहते हैं कि नहीं, पहले इसका नाम आर्य धर्म था। कुछ लोग कहते हैं कि नहीं, पहले इसका नाम वैदिक धर्म था। हालांकि इस संबंध में विद्वानों के भिन्न-भिन्न मत है-

 

सनातन का अर्थ है जो शाश्वत हो, सदा के लिए सत्य हो। जिन बातों का शाश्वत महत्व हो वही सनातन धर्म कहा जाता  है। जैसे सत्य सनातन है। ईश्वर ही सत्य है, आत्मा ही सत्य है, मोक्ष ही सत्य है और इस सत्य के मार्ग को बताने वाला धर्म ही सनातन धर्म भी सत्य ही है। वह सत्य जो अनादि काल से चला आ रहा है और जिसका कभी भी अंत नहीं होगा वही धर्म ही सनातन धर्म या शाश्वत धर्म है। जिस धर्म का न प्रारंभ है और  जिस धर्म का न अंत है उसी सत्य को ही सनातन धर्म कहते हैं। यही सनातन धर्म का सत्य है।

sanatan

वैदिक या हिंदू धर्म को इसलिए सनातन धर्म कहा जाता है क्योंकि यही एकमात्र धर्म है जो ईश्वर,आत्मा और मोक्ष को तत्व और ध्यान से जानने का मार्ग बताता है। मोक्ष की अवधारणा इसी धर्म की देन है। एकनिष्ठता, ध्यान, मौन और तप सहित यम-नियम के अभ्यास और जागरण का मोक्ष मार्ग है अन्य कोई मोक्ष का मार्ग नहीं है। मोक्ष से ही आत्मज्ञान और ईश्वर का ज्ञान होता है। यही सनातन धर्म का सत्य है।

 

सनातन धर्म के मूल तत्व सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, दान, जप, तप, यम-नियम आदि हैं जिनका शाश्वत महत्व है। अन्य प्रमुख धर्मों के उदय के पूर्व वेदों में इन सिद्धान्तों को प्रतिपादित कर दिया गया था। सनातन धर्म ही व्ही धर्म है जिसका न तो कोई अंत है न ही इस धर्म का कोई प्रारम्भ है।

 

।।ॐ।।असतो मा सदगमय, तमसो मा ज्योर्तिगमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय।।- वृहदारण्य उपनिषद

भावार्थ : अर्थात हे ईश्वर मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो, अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मृत्यु से अमृत की ओर ले चलो।

 

जो लोग उस परम तत्व परब्रह्म परमेश्वर को नहीं मानते हैं वे असत्य में गिरते हैं। असत्य से मृत्युकाल में अनंत अंधकार में पड़ते हैं। उनके जीवन की गाथा भ्रम और भटकाव की ही गाथा सिद्ध होती है। वे कभी अमृत्व को प्राप्त नहीं होते। मृत्यु आए इससे पहले ही सनातन धर्म के सत्य मार्ग पर आ जाने में ही भलाई है। अन्यथा अनंत योनियों में भटकने के बाद प्रलयकाल के अंधकार में पड़े रहना पड़ता है।

 

जड़ पांच तत्व से है -आकाश, वायु, जल, अग्नि और पृथ्वी । यह सभी साश्वतसत्य की श्रेणी में आते है ये तत्व अपना रूप बदलते रहते है परन्तु ख़त्म नहीं होते है अर्थार्त  इनका अंत नहीं होता है प्राण की भी अपनी अवस्थाएं हैं-प्राण, अपान, समान और यम। उसी तरह आत्मा की अवस्थाएं हैं: जाग्रत, स्वप्न, सुसुप्ति और तुर्या। ज्ञानी लोग ब्रह्म को निर्गुण और सगुण कहते हैं। उक्त सारे भेद तब तक विद्यमान रहते हैं जब तक ‍कि आत्मा मोक्ष प्राप्त न कर ले। यही सनातन धर्म का सत्य है।

 

सनातन धर्म क्या सिखाता है?-हमने धर्म को बहुत तोडा है जातियों के नाम पर,समाज के नाम पर धर्म के नाम पर ,गुरुओं के नाम पर ,सम्प्रदायो के नाम पर। हमे सनातन धर्म सिखाता है की  एक व्यक्ति या एक धर्म का नहीं एक देश का नहीं बल्कि पूरे विश्व का कल्याण हो। सनातन धर्म का नैरा यही है की विश्व का कल्याण हो। यही कल्याण की सोच को रखकर जो आगे बढ़ेगा वही सनातन धर्म का पालन करेगा। यही तो सनातन धर्म है

 

सनातन धर्म हमे यह बताता है की यदि हिन्दू धर्म का कोई अनुष्ठान होता हो जैसे की कोई कथा ,भगवत अखंड रामायण,आदि इनमे कोई और धर्म का व्यक्ति आ जाये तो हम उस गैर धर्म के व्यक्ति का सम्मान करना चाहिए जिससे उस व्यक्ति को अहसास हो की हमारा आदर किया न की अपमान। यही सनातन धर्म सिखाता है।

 

सनातन मार्ग - विज्ञान जब प्रत्येक वस्तु, विचार और तत्व का मूल्यांकन करता है तो इस प्रक्रिया में धर्म के अनेक विश्वास और सिद्धांत धराशायी हो जाते हैं। विज्ञान भी सनातन सत्य को पकड़ने में अभी तक कामयाब नहीं हुआ है किंतु वेदांत में उल्लेखित जिस सनातन सत्य की महिमा का वर्णन किया गया है विज्ञान धीरे-धीरे उससे सहमत होता नजर आ रहा है।

 

हमारे ऋषि-मुनियों ने ध्यान और मोक्ष की गहरी अवस्था में ब्रह्म, ब्रह्मांड और आत्मा के रहस्य को जानकर उसे स्पष्ट तौर पर व्यक्त किया था। वेदों में ही सर्वप्रथम ब्रह्म और ब्रह्मांड के रहस्य पर से पर्दा हटाकर 'मोक्ष' की धारणा को प्रतिपादित कर उसके महत्व को समझाया गया था। मोक्ष के बगैर आत्मा की कोई गति नहीं इसीलिए ऋषियों ने मोक्ष के मार्ग को ही सनातन मार्ग माना है।

 

मोक्ष का मार्ग- धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष में मोक्ष अंतिम लक्ष्य है। यम, नियम, अभ्यास और जागरण से ही मोक्ष मार्ग पुष्ट होता है। जन्म और मृत्यु मिथ्‍या है। जगत भ्रमपूर्ण है। ब्रह्म और मोक्ष ही सत्य है। मोक्ष से ही ब्रह्म हुआ जा सकता है। इसके अलावा स्वयं के अस्तित्व को कायम करने का कोई उपाय नहीं। ब्रह्म के प्रति ही समर्पित रहने वाले को ब्राह्मण और ब्रह्म को जानने वाले को ब्रह्मर्षि और ब्रह्म को जानकर ब्रह्ममय हो जाने वाले को ही ब्रह्मलीन कहते हैं।

 

 

विरोधाभासी नहीं है सनातन धर्म -

सनातन धर्म के सत्य को जन्म देने वाले अलग-अलग काल में अनेक ऋषि हुए हैं। उन्ही ऋषियों को दृष्टा कहा जाता है। अर्थात जिन्होंने सत्य को जैसा देखा, वैसा ही विवरण किया । इसीलिए सभी ऋषियों की बातों में एकरूपता है। जो उक्त ऋषियों की बातों को नहीं समझ पाते वही उसमें भेद करते हैं। भेद भाषाओं में होता है, अनुवादकों में होता है, संस्कृतियों में होता है, परम्पराओं में होता है, सिद्धांतों में होता है, लेकिन सत्य में नहीं होता है।

 

वेद कहते हैं ईश्वरअजन्मा है। उसे जन्म लेने की आवश्यकता नहीं, उसने कभी जन्म नहीं लिया और वह कभी जन्म नहीं लेगा। ईश्वर तो एक ही है लेकिन देवी-देवता या भगवान अनेक हैं। उस एक को छोड़कर उक्त अनेक के आधार पर नियम, पूजा, तीर्थ आदि कर्मकांड को सनातन धर्म का अंग नहीं माना जाता। यही सनातन धर्म का सत्य है।

 

                 सनातन धर्म अमर रह।                           जय हिंदुत्व

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