Why Me ? A Beautiful Message By Arthur Ashe | निराश करने वाली परिस्थिति में भी खुश कैसे रहे-

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Why Me ? A Beautiful Message by Arthur Ashe | निराश करने वाली परिस्थिति में भी खुश कैसे रहे-Arthur Ashe के top tennis playars थे। अपने carrier के sense पर दुनिया के नंबर 1 player  बने। 3 grand slam ,wimbledon ,US Opon ,Australian Open  ये सब  Arthur Ashe के ही नाम है।उनके शानदार carrier के दौरान उनके जीवन में एक ऐसा भी मोड़ आया जब 80 के दशक में hard pilla surgery  हुई। Arthur Ashe को जो खून चढ़ाया गया था वह HIV  posstiv था और जिसके कारण Arthur Ashe HIV possitiv संक्रमित हो गए। सन 1992 में Arthur Ashe ने लोगो को सार्वजानिक रूप से अपनी इस बीमारी के बारे में बताया।

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Arthur Ashe अब लोगो में HIV एड्स के प्रति लोगो में जागरूकता फैलाने का काम करने लगा। सन 1993 में Arthur Ashe की मृत्यु हो गयी।  मृत्यु के पहले Arthur Ashe के साथ हुई इस दुर्भाग्य पूर्ण घटना का पता चला तब विश्व भर से उनके लिए सहानभूति भरे पत्र आने लगेएक दिन उन्हें एक छोटे बच्चे का पत्र मिला उसमे लिखा था की भवन ने केवल आपको ही इतनी बुरी बिमारी देने की लिए क्यों चुना। कभी आपके मन में यह प्रसन्न नहीं आता की मैं ही क्यों ?

 

इस पत्र को पढ़कर Arthur Ashe मुस्कुराये और जानते है उन्होंने क्या जबाब दिया। इस सवाल का जो जबाब Arthur Ashe  ने दिया था वो लोगो के लिये अनोखी मिशाल बन गया Arthur Ashe ने लिखा की पूरी 5 करोड़ बच्चे tennis खेलना शुरू करते है। उनमे से 50 लाख बच्चे tennis की शिक्षा लेते है जिस में से 5 लाख बच्चे professional tennis की trening पर पहुंचते है। फिर उनमे से 50 हजार बच्चे सफल होकर Circuit तक आ पाते है और फिर 5 हजार grand Slam तक जाते है जिनमे से Wimbledon तक आते है। और उसके बाद केवल 4 लोग Semifinals और सिर्फ 2 लोग ही final  में आते है और जब मैंने विजयी कप को कई बार अपने हाथ में पकड़ा हुआ था तब मैंने नहीं पूछा की मैं ही क्यों ?मुझे ही क्यों जिताया?

 

मैंने ये कभी नहीं पूछा भगवान् से की हर बार मैं ही क्यों जीतता हूँ। और आज जब मैं  में हूँ तो भी मुझे भगवान् से ये नहीं पूछूंगा की मैं ही क्यों ?इस असहाय दर्द में नहीं पूछना चाहिए की मैं ही क्यों ?जब खुशियों के समय सफलताओ के समय नहीं कहा की मैं ही क्यों ?तब मुश्किल समय में क्यों कहुँ की मैं ही क्यों ?जब इन्सान के अंदर जो भी मिला है उसके प्रति attitude के प्रति filling आ जाती है। आभरी होने का नजरिया आ जाता है। शुक्र्गुजार होने की आदत आ जाती है। फिर उसे किसी चीज की शिकायत नहीं होती। वे सुख और दुःख में एक जैसे ही रहते है। उसी तरह हमारे जीवन में ऐसे मौके आते है। जब हमे सारे दरवाजे बंद नजर आते है।

 

हम निराश और उदासी से घिर जाते है। ऐसे मौके पर अपने आपको अच्छी चीजों की याद दिलानी पड़ती है। क्युकी ऐसी चीजे अक्सर हमारे पास ही मौजूद होती है। हमे अपने आस-पास नजरिये को केंद्रित करना चाहिए बाकी नकारात्मक चीजे अपने आप लुप्त हो जाती है। बिता हुआ दिन कितना भी बुरा क्यों न हो पर आने वाला दिन न्य होता है। हमे ये तय करना होगा की हमारा आने वाला कैसा होना चाहिए। उसे कैसे बिताया जाये। हमे आगे बढ़ने की कोशिश करते रहना चाहिए। और लक्ष्य प्राप्त करना चाहिए।    

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