मकर सक्रांति की कथा एवं सम्पूर्ण पूजा विधि एवं नियम
मकर सक्रांति की कथा एवं सम्पूर्ण पूजा विधि एवं नियम -मकर सक्रांति पर सूर्य देव धनु राशि से अपनी राशि मकर राशि में प्रवेश कर जाते है। क्योकि भगवन सूर्य नौ ग्रहो के राजा है। भगवान सूर्य के हम प्रति दिन साक्षात् दर्शन कर सकते है भगवान सूर्य महा ऋषि कश्यप के पुत्र है और अदिति के गर्भ से उत्पन हुए थे अदिति के गर्भ से उत्पन होने के कारन इनका एक नाम आदित्य भी है।
मकर सक्रांति की कथा -पूर्व काल की बात है राजा परहुवाहन महोदय पुर में राज्य करता था। वह राजा बड़ा धर्मात्मा ,दयालु ,गऊ ,ब्रह्मण और अतिथियों का बहुत ही सम्मान किया करता था। उसके राज्य में हरिदास नाम का एक महान विद्वान् श्रेष्ट ब्राह्मण था उसकी पत्नी भी बहुत शुशील और धर्मवती थी जिसका नाम गुणवती था। हरिदास विष्णु सेवक बड़ा तपस्वी था। तदनुसार उसकी पत्नी भी विष्णु भगवान् की भगत और पतिव्रता थी। उसने प्रायः सभी प्रसिद्ध देवी - देवताओ के व्रत किये। परन्तु धर्मराज की यानि धर्म राय नाम से पूजा कभी नहीं की।
वह गणेश की ,चन्द्रमा की ,हर तालिका आदि देवियो की ,राम जन्म ,जन्माष्टमी ,शिवरात्रि ,और शिव की सभी व्रत किया करती थी। बड़ी श्रद्धा से एकादशी का व्रत करती हुई यथा शक्ति दान भी करती रहती थी। और अतिथि सेवा से कभी भी विमुख नहीं रहती थी। इस प्रकार धर्म परायण यह मृत्यु को प्राप्त हुई। इसीलिए धर्म आचरण की प्रभाव से यमदूत उसे आदर पूर्वक धर्मराज की लोक को ले गए। दक्षिण दिशा में पृथ्वी की कुछ ऊपर अंतरिक्ष में धर्मराज का बड़ा भरी नगर है। जो की पापी लोगो को भय दायक है।
धर्म राज का पुर एक हजार योजन का है वह चौकोर है तथा उसके चार द्वार है वह नानाप्रकार की रत्नो से शोभायमान है उसमे कई मनुष्य जो की पुण्य भोगने को गए है। निवास कर रहे है स्थान - स्थान पर गीत सुनाई दे रहे है और बजे भी बज रहे है। उस नगर की साथ कोट है उनके बिच में महासुन्दर धर्म राज का मंदिर है। वह रत्नो का बना हुआ है और अग्नि ,बिजली और वह सूर्य की सामान चमक रहा है। उसके दरवाजो की पेडिया स्फटिक मणि की है। हीरो के कनियो से आँगन चमक रहा है।
उसके मध्यम में अनुपम सुन्दर सिहांसन पर धर्म राज भगवान् विराजमान है। उनके पास चित्रगुप्त जी का स्थान है। जो की मृत प्राणीयो के पाप - पुण्य का लेखा भगवान् धर्मराज को सुनाया करते है। धर्म राज के दूत धर्मवती को वहां ले गए उनको देखकर वह भयभीत होकर कंपनी लगी और नीचे मुँह किये हुए खड़ी हो गयी। चित्रगुप्त जी ने उसके पूर्व जन्म में किये हुए पाप - पुण्य का लेखा - जोखा पढ़कर सुनाया। धर्मराज जी उस गुणवती की हरिहर आदि सभी देवो तथा अपने पति में भक्ति को देखकर प्रसन्न हुए।
लेकिन कुछ उदासी भी उनके मुखमण्डल पर झलकती हुई दिखाई दी। धर्मराज जी को गुणवती ने निवेदन किया की हे प्रभु ! मेरी समझ में मैंने कोई पाप नहीं किया। फिर भी आप उदास क्यों हो कृपया करके इसका कारण बताइये। धर्म राज जी ने कहा की हे देवी ! तुमने व्रत आदि से सभी देवो को निवृत किया है। लेकिन मेरे नाम से तुमने कोई भी दान - पुण्य नहीं किया है यह सुनकर गुणवती ने कहा की हे भगवान् ! मेरा अपराध क्षमा करे। मई आपकी उपासना नहीं जानती थी। अब आप ही कृपा करके कोई उपाय बताइये।
जिससे मनुष्य आपकी कृपा के पात्र बनसके। यदि मई आपके भक्ति मार्ग को आपके मुख से श्रवण कर वापस मृत्युलोक में जा सकू तो आपको संतुष्ट करने का उपाए करूंगी। धर्मराज ने कहा - सूर्य भगवान् के उत्तरायण में जाते ही जो महापुण्य मकर संक्रांति आती है उस दिन से मेरी पूजा शुरू करनी चाहिए इस प्रकार साल भर मेरी कथा सुने और पूजा करे इसमें कभी नागा नहीं करे।
आपात काल आने पर भी मेरे धर्म के इन दस अंगो का पालन करते रहे धृति, यदा, लाभ, संतोष,क्षमा ,यम-नियम द्वारा मन को वश में करना,किसी की वास्तु को नहीं चुराना ,मन में पर स्त्रीओ या पर पुरुषो से बचना यानि मन की शुद्धि ,शारीरिक शुद्धि ,इन्द्रियों के वश में न रहना ,बूढी की पवित्रता यानि मन में बुरे विचार न आने देना। शास्त्र विद्या स्वाध्याय यानि पूजा - पथ कथा श्रवण या व्रत रखना और तदनुसार दान - पुण्य करना ,सत्य बोलना ,सत्यता का ही व्यवहार करना ,क्रोध न करना ये दस धर्म के लक्षण है।
मेरी इस कथा को नियम से सदा सुनते रहना और पथ पढ़ते रहना और यथाशक्ति दान और परोपकार करते रहना। जब साल भर फिर जब मकर संक्रांति आये तब उद्यापन कर दे। सोने की यदि असमर्थ हो तो चाँदी की मूर्ति बनवावे और विद्वान् ब्राह्मण के द्वारा पूजन हवन आदि करे। मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कर पंचामृत से स्नान करा चौदस उपचार से इसकी पूजा करे। मेरे साथ में चित्रगुप्त जी की भी पूजा करे। सफ़ेद और काळा तिल के लड्डू से भोग लगावे। हमारी पूर्ण ट्रस्टी के लिए ब्रह्मण को भी जिमावे।
बांस की छावड़ी में स्व पांच सेर धन और अनाज जो मुक्त तुल्य मानी है भर कर गुरु या ब्रह्मण को भेट करे। स्वर्ग में जाने के लिए सोने या चाँदी की सीधी भी दान करे सुन्दर बनी हुई शय्या भी दान करे। जिस पर मुलायम गद्दा, तकिया और रजाई हो। इसके शिवाय कम्बल ,पादुकाएं बांस की लकड़ी ,लोटा ,डोर ,पांच वस्त्र भी दान देना चाहिए। गौ दान की समर्थ हो तो श्वेत या लाल गाय मेरे लिए और काली गाय चित्रगुप्त के लिए दान की जाये। ये दान की वस्तुए सिर्फ साधारण के लिए है। धनवान व्यक्ति भी दे तो और भी अच्छा है।
गुणवती ने भगवान् से यह प्रार्थना की कि हे प्रभु ! यदि ऐसी बात है तो मुझे यमदुतो से छुड़ा कर फिर से संसार में भेजिए जिससे मै आपकी कथा का प्रचार कर सकूँ। जो ही उसकी प्रार्थना का भगवान् धरम राज ने स्वीकृति दी वैसे ही गुणवती कि शरीर में प्राण पड गए। फिर उसके पुत्र आदि कहने लगे की बड़ी प्रसन्नता है की हमारी माता जी मर कर भी जिन्दा हो गयी। इसके अनन्तर गुणवती ने अपने पति और पुत्र को सब बाते बताई। जी की धर्मराज ने मनुष्यो कि कल्याण कि लिए कही थी।
खुद ने भी यह व्रत शुरू किया। फिर मकर संक्रांति से ही उसने प्रति दिन धर्मराज की पूजा और यह कथा आरम्भ कर दी।स्वर्ग में जाने कि लिए दान -पुण्य आदि करम भी शुरू कर दिए। इस प्रकार वह गुणवती सालभर धरम कथा सुनकर धरम के दस अंगो का पालन कर मृत्यु के उपरांत वह जब स्वर्ग में पहुंची तो देवताओ ने उसका आदर किया और सदा स्वर्गीय भोगो को भोगती रही। सूर्य जी महाराज ने सभी मुनियो से कहा की हे मुनियो जो भी इस धर्म राज व्रत कथा को प्रति दिन सुनते है वे दुखो से मुक्त हो जाते है। इसमें कुछ भी संशय की बात नहीं है।
मृत्यु काल में यम दूत जो लेने आते है वे भी उसको आदर से ले जाते है और धर्मराज जी भी उसे सुखी रखते है। यदि उन मनुष्यो के कुछ पाप बाकि हो तो शीघ्र ही पापनाशक उपाए बता कर शीघ्र ही पाप मुक्ति में सहायक बनजाते है। गरुण प्राण में भी लिखा है की पापी लोगो को यमदूत महा कष्ट पहुंचते हुए ले जाते है। धर्मराज की कथा करने वाले यमलोक मार्ग में भी कष्ट नहीं पाते।
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Article Posted By: Manju Kumari
Work Profile: Hindi Content Writer
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