बसंत पंचमी सरस्वती के जन्म की कथा और उसका महत्व
बसंत पंचमी सरस्वती के जन्म की कथा और उसका महत्व - बसंत ऋतू के आते ही प्रकृति का कण - कण खिल उठता है मानव तो क्या पशु - पक्षी भी उल्लास से भर जाते है। हर दिन नई उमंग से सूर्य देव निकलते है और नई चेतना प्रदान कर और अगले दिन फिर आने का आश्वाशन देकर चला जाता है।ऋतू माह का ये सारा महीना उत्साह देने वाला है परन्तु बसंत पंचमी का ये पर्व भारतीय जन - जीवन को एक तरिके से प्रभावित करता है प्राचीन काल से इसी ज्ञान और कला की देवी माता सरस्वती का जन्म दिवस मन जाता है।
माता सरस्वती की पूजा के लिए समर्पित बसंत पंचमी को ही मनाया जाता है। बसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए उनकी आराधना करनी चाहिए। खास कर विद्यार्थियों के लिए यह दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। जो भी विद्यार्थी सूर्य देव के उगने से पहले जागकर स्नान आदि करते है और माँ सरस्वती की पूजा करते है माँ सरस्वती उनपर कृपा बरसाती है। उनके मन को ज्ञान के तेज प्रकाश से भर देती है ऐसे विद्यार्थियों के स्मरण शक्ति के साथ ही ज्ञान प्राप्ति के जिज्ञासा को बढाती है।
बसंत पंचमी सरस्वती के जन्म की कथा - उपनिष्दों की कथा के अनुसार सृष्टि के प्रारम्भिक काल में भगवान् ब्रहम्मा जी ने जीव की रचना की,खासतोर पर मनुष्य की रचना की। लेकिन अपनी रचना से वे संतुष्ट नहीं थे वे सोचते थे की कुछ कमी रह गयी है जिसके कारण चारो तरफ मौन में छाया रहता है। तब ब्रहम्मा जी ने इस समस्या के निवारण के लिए अपने कमंडल से जल अपनी अंजनी में लेकर संकल्प स्वरूप उस जल को छिड़क कर भगवान् विष्णु की स्तुति की । ब्रहम्मा जी की स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान् विष्णु ब्रहम्मा जी के समक्ष प्रकट हुए।
तब ब्रहम्मा जी ने भगवान् विष्णु से प्राथना की की हे प्रभु मैने सृष्टि की रचना तो की है पर चारो तरफ मौन है। इसके लिए मुझे क्या करना चाहिए। ब्रह्ममदेव की समस्या जानकार भगवान् विष्णु ने आदि शक्ति में दुर्गा का आव्हान किया। भगवान विष्णु के द्वारा आवाहन होने के कारण भगवती मदुर्गा वहां तुरंत प्रकट हो गयी। तब ब्रहम्मा जी और विष्णु जी ने उन्हें इस संकट को दूर करने का निवेदन किया। ब्रहम्मा जी और विष्णुजीकी बातो को सुनने के पश्चात आदि शक्ति माता दुर्गा के शरीर से स्वेत रंग का एक भरी तेज प्रकट हुआ।
जो की एक दिव्य नारी के रूप में बदल गया। यह स्वरूप एक चतुर्भुजी एक सुन्दर स्त्री का था जिनके एक हाथ में वीणा और तथा दूसरे हाथ में वर मुद्रा थे। अन्य दोनों हाथ में पुस्तक और माला थी। माँ दुर्गा के सिरे के तेज से उत्पन होते ही माँ सरस्वती जी ने वीणा का मधुर राग किया। जिससे संसार के समेत जीवो को वाणी प्राप्त हो गयी। यानिकि सृस्टि के सभी जीव - जन्तुओ को आवाज प्राप्त हो गयी। जल धारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। हवा के चलने से सरसराहट होने लगी। इसी तरह समस्त सृस्टि मो ध्वनि प्राप्त हो गयी।
तब सभी देवताओ ने शब्द और रस का संचार कर देने वाली उन देवी को वाणी की अधिशास्त्री देवी सरस्वस्ती कहा। तभी से ही माता को सरस्वती माता के नाम से जाना जाता है। उसके बाद आदि शक्ति माँ दुर्गा ने ब्रहम्मा जी से कहा की मेरे तेज से उत्पन हुई ये देवी आपकी पत्नी बनेंगी। जैसे लक्ष्मी श्री विष्णु जी की पत्नी है। पार्वती महादेव की शक्ति है उसी प्रकार ये सरस्वती देवी आपकी शक्ति होंगी। ऐसा कह कर माँ दुर्गा अंतर्ध्यान हो गयी। इसके बाद सभी देवता सृस्टि के सञ्चालन में संलग्न हो गए।
माँ सरस्वस्ती को ईश्वरी, भगवती,शारदा , वीणावादनी आदि और भी कई नामो से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदान करने वाली देवी है। संगीत की उत्पत्ति के कारण ये संगीत की देवी भी कहा जाता है कहते है जिस दिन ये माँ दुर्गा के तेज से प्रकट हुई थी उसी दिन को बसंत पंचमी के नाम से मनाया जाता है वेदो में माँ भगवती देवी का वर्णन करते हुए कहा जाता है -
प्रणो देवी सरस्वती ,
वाजे भिर्वजिनिवती ,
धीनामणित्रयवतु।
अर्थात ये परम् चेतना है सरस्वती के रूप में हमारी बुद्धि तथा मनोवृतियों के प्रति संचिका है। हमारे जो आचार और वर्धा है उसका आधार भगवती सरस्वती है इनकी समृद्धियो और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। पुराणों के अनुसार श्री कृष्ण ने प्र्शन होकर यह वरदान दिया था की बसंत पंचमी केदिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और तभी से इस वरदान के फल स्वरूप विद्या की देवी सरस्वती की पूजा होने लगी औरआज तक जारी है और आगे भी होती ही रहेगी।
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Article Posted By: Manju Kumari
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