अपने अन्दर की प्रतिभा (Talent) को पहचाने | Use Your Hidden Talent To Achieve Heights In Life

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अपने अन्दर की प्रतिभा (Talent) को पहचाने | Use Your Hidden Talent to Achieve Heights in Life  - क भिकारी एक ट्रैन में अक्सर भीख माँगा करता था। एक बार रेल सफर में भीख मांगने के दौरान सूट - बूट पहने एक व्यक्ति उसे दिखे। और उसने सोच लिया की “यह व्यक्ति बहुत ही अमीर दिख रहे है। इससे भीख मांगने पर यह मुझे अच्छे पैसे दे देगा।“ यह सोच कर वह उस सेठ से भीख मांगने पहुंच गया।भिखारी को देखकर उस आदमी ने कहा “की तुम हमेशा मांगते ही रहते हो।

 क्या तुम किसी को देते हो ?" भिखारी से कहा। भिखारी ने कहा की "साहब मैं तो भिखारी हूँ। मैं तो हमेशा सबसे मांगता ही रहता हूँ ,मेरी इतनी हैसियत ही कहाँ ?जो की मैं किसी को कुछ दे सकू। " सेठ जी ने कहा- "की जब आप किसी को कुछ दे नहीं सकते तो तुम्हे मांगने का भी कोई हक नहीं है।"मैं एक व्यापारी हूँ और लेन-देन में ही विश्वास करता हूँ। अगर तुम्हारे पास कुछ देने को है तो ही मैं तुम्हे कुछ दे सकता हूँ। तभी वह स्टेशन आ गया जहा उस सेठ को उतरना था।

सेठ ट्रेन से उतरा और चला गया। इधर भिखारी सेठ की कही बातो के बारे में सोचना लगा। सेठ के द्वारा कही गयी बात उस भिखारी के दिल में उतर गयी थी। वह सोचने लगा की शायद मुझे भीख में अधिक पैसा इसलिए नहीं मिलता क्युकी मैं उसके बदले में किसी को कुछ दे नहीं पाता हूँ। लेकिन मैं तो भिखारी हूँ किसी को कुछ देने लायक भी नहीं हूँ। लेकिन कब तक मैं लोगो को बिना कुछ दिए ही मांगता रहूँगा। बहुत सोचने के बाद भिखारी ने यह निर्णय लिया।

 

अबसे जो भी व्यक्ति उसे भीख देगा मैं भी उसे उसके बदले में कुछ अवश्य दूंगा। लेकिन अब उसके दिमाग में यह प्रसन्न चल रहा था की मैं ही एक भिखारी हूँ और भीख के बदले मैं वह लोगो को क्या-कुछ दे सकता हूँ वह सोचता रहा और इस बात को सोचते पूरा दिन गुजर गया लेकिन उसे इस बात का कोई जबाब नहीं मिला। दूसरे दिन जब स्टेशन के पास बैठा हुआ था तभी उसकी नजर उन फूलो पर पड़ी जो की स्टेशन के आस - पास के पोधो पर खिल रहे थे। उसने सोचा की क्यों न मैं लोगो को भीख के बदले फूल दे दिया करू।

फिर उसने वह से कुछ फूल तोड़ लिए। इसके बाद वह फिर से ट्रेन में भीख मांगने पंहुचा। अब जब भी उसे कोई भीख देता तो वह भीख के बदले कुछ फूल दे देता और लोग खुश  होकार फूलो को अपने पास रख लेते थे। अब भीखरी रोज फूल तोड़ता था। और लोगो को दे देता था। कुछ ही दिनों में उसने अहसास किया की अब बहुत से लोग उसे भीख देने लगे थे वह स्टेशन के आस - पास के फूल तोड़ लेता और लोगो को बाँट देता था।जबतक उसके पास फूल रहते थे जब तक ही लोग उसे भीख देते थे।

 

लेकिन जब फूल बांटते - बांटते खत्म हो जाते तो लोग भी उसे भीख देना बंद कर देते। अब रोज ऐसा ही चलने लगा। एक दिन जब वह ट्रेन में भीख मांग रहा था तो उसने देखा की वही सेठ आज फिर ट्रेन में बैठे है जिसकी वजह से ही उसे भीख मांगने की प्रेरणा मिली थी। वह भिखारी तुरंत उस सेठ के पास पहुंचा। और  भीख मांगते हुए बोलै की आज मेरे पास आपकोकुछ दंड को है। आप मुझे भीख दीजिये और बदले में मैं आपको कुछ फूल दूंगा। सेठ जी ने उसे भीख के रूप में कुछ पैसे दे दिए। और भिखारी ने कुछ फूल सेठ को दे दिए।

 

उस सेठ को यह बात बहुत पसंद आयी। फिर सेठ ने कहा की वाह ! क्या बात है तुम भी मेरे तरह एक व्यापारी बन गए हो। इतना कहकर वह सेठ फूल लेकर स्टेशन से उतर गया। लेकिन अब उस सेठ द्वारा कही गयी बात एक बार फिर से उस भिखारी के मन में लग गयी थी। और बार - बार उस सेठ के बात को सोचने लगा। और आखिर में बहुत खुश हुआ उसकी आंख अब चमकने लगी थी और उसे लगने लगा की अब उसके हाँथ सफलता की चाबी लग गयी थी। जिसके द्वारा वह अपने आपको बदल सकता है।

 

वह नीचे उतरा और बड़ी उत्साहित आवाज में ऊपर आसमान की और देखकर बोला की मैं भिखारी नहीं हूँ। मैं तो एक व्यापारी हूँ। मैं भी उस सेठ जैसा बन सकता हूँ।मैं भी अमीर बन सकता हूँ। लोगो ने उसे देखा तो सोचा की शायद यह भिखारी पागल हो गया है। अगले दिन से वह भिकारी उस स्टेशन पर दुबारा नहीं दिखा। एक साल बाद दोनों न्यक्ति सूत - बूत पहने एक हीट्रेन में यात्रा कर रहे थे। दोनों ने एक दूसरे को देखा तो उनमे से एक ने दूसरे को हंटन जोड़कर प्रणाम किया। और कहा की आपने मुझे पहचाना ?

नहीं हम लोग पहली बार मिल रहे है। तब पहले व्यक्ति ने कहा की सेठ जी आप याद कीजिए हम पहली बार नहीं बल्कि तीसरी बार मिल रहे है। सेठ ने कहा  - “की मुझे याद नहीं आ रहा। वैसे हम पहले दो बार कब मिले थे।“ पहले वाला व्यक्ति कतराया और बोला -  हम इसी ट्रेन मे मिले थे। मैं वही भिखारी हूँ जिसको आपने पहली ही मुलाकात में बताया की मुझे जीवन में क्या करना चाहिए। और दूसरी मुलाकात में बताया की मैं वास्तव में कोन हूँ। नतीजा यह निकला की आज मैं फूलो का बहुत बड़ा व्यापारी हूँ।

 

और इसी व्यापर के काम से दूसरे शहर जा रहा हूँ। आपने मुझे पहली मुलाकात में प्रकृति का नियम बताया था। जिसके अनुसार हमे तभी कुछ मिलता है जब हम कुछ देते है। लेन देन का यह नियम वास्तव में ही काम करता है। मैंने यह बहुत अच्छी तरह महसूस किया है। लेकिन मैं खुद को हमेशा भिकारी ही समझता रहा। इससे ऊपर उठकर मैंने कभी सोचा ही नहीं था और जब आपसे मेरी दूसरी मुलाकात हुयी तब आपने मुझे बताया की मैं अब एक व्यापारी बन चूका हूँ। अब मैं समझ चूका था की मैं एक भिखारी नहीं बल्कि एक व्यवारी बन चूका हूँ।

 

आत:  हमे अपने हुनर या talent को पहचानना चाहिए। और देखना चाहिए की उस talent  के बल पर अपने जीवन में किस मंजिल पर पहुंच सकते है। किस hight को छू सकते है। भिखारी ने स्वम् को जब तक भिखारी समझा था वह भिखारी ही रहा। जब उसने स्वम् को व्यापारी मान लिया तो वह व्यापारी बन गया जिस दिन हम समझ लेंगे की मैं कौन हूँ और मेरे पास क्या talent है।उस दिन आप अपने जीवन में अपनी मंजिल को पा लेंगे।    

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Article Posted By: Manju Kumari

Work Profile: Hindi Content Writer

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