जरूरतमंदों की मदद करना ही सच्ची इंसानियत है

1506
Views

जरूरतमंदों की मदद करना ही सच्ची इंसानियत है - खुदा भी रहमत उसपर बरसता है जो इन्सान जरुरतमंदो की मदद आगे बढ़कर करता है एक ऐसा व्यक्ति जो की न हमारे खुशियों में ,हमारे अच्छे समय में हमारे साथ होता है और हमारे दुःख दर्द में भी हमारा साथ नहीं छोड़ता है जिसे हम दोस्त कहते है जो की बड़ी ही मुश्किल से मिलते है। जो की हर दम हमारे साथ खड़े रहते है एक कहावत भी है सच्चा दोस्त व्ही होता है जो की उस समय साथ देता है जब सब साथ छोड़ दते है। भलाई तो भीतर से उपजी चेतना है।

जरूरतमंदों की सहायता से बड़ा मनुष्य के लिए कोई धर्म है ही नहीं। अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में कहा भी है - परहित सरिस धर्म नहीं भाई पर पीड़ा सम नहीं अधमाई। इससे परोपकार को बेहतर ढंग से समझा जा सकता है। गांधी जी ने भी कहा है वैष्णव जन को तेने कहिए जे पीर पराई जाणी रे। कहने का अर्थ है मनुष्य वही है जो मनुष्य के काम आवे। जो व्यक्ति दूसरों की पीड़ा समझे बगैर अपने स्वार्थ में जीता रहता है

वह पशु से भी गया गुजरा है। क्योंकि पशु-पक्षी भी आपस में कभी कभार एक दूसरे की ऐसी सहायता कर देते हैं।जो की मनुष्य के लिए प्रेरक हो जाता है। सदियों से ऐसी घटनाएं देखने और सुनने को मिलती रही है। वेदो में जो उपदेश दिया है उसका मूलमंत्र परोपकार के माध्यम से आत्मोन्नति है। संसार में ऐसे और भी प्राणी है जो अपने शजातियो के साथ भलाई और उपकार का व्यवहार करते है। भलाई तो ऊपर से उपजी एक चेतना है।

 

मनुष्य की विशेषता यही है की उसे ज्ञान देकर कर्म करने को स्वतंत्र बना दिया है। यह उसकी इच्छा पर निर्भर है की वह किसी के सह भलाई करता है या बुराई। बुराई रोकने के लिये तो सभी देशों में कानून है पर ऐसा कोई प्रतिबंध या नियम कहीं नहीं है कि हम दूसरों की मदद करें ही।यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे के साथ भलाई करता है या परोपकार करता है और उसकी मदद के लिए स्वम् ही परिश्रम करता है। अपने स्वार्थ और सुख व् आराम को छोड़ता है तो मानना ही चाहिए की उसकी आत्मा का विकास हो चुका है।इसका मतलब है की वः ईस्वरीय आदेश का पालन कर रहा है।

दूसरों की सहायता ईश्वर भक्ति के समान - ईश्वर की भक्ति अथवा उसके प्रेम का वास्तविक मार्ग यही है कि हम अवसर पड़ने पर जरूरतमंदों की मदद करें प्रत्येक व्यक्ति के साथ सत्य और न्याय का व्यवहार करें। पर आज हम विपरीत मार्ग पर चल रहे हैं। आज धर्म का निर्णय भी धन वैभव और ठाट - बाट से होता है। जो गरीबी किसी समय ईश्वर भक्तो का भूषण समझी जाती थी। वह आज घोर अभिशाप मणि जाती है। यही ख्याल किया जाता है की यह व्यक्ति अपने पापो ,ईश्वर के प्रति विमुखता का फल भोग रहा है।

दूसरी तरफ जो लिओग हर तरह के कुकर्म करके धन कमाते है और संध्या समय आरती और पूजा बड़े ही ठाट - बाट और धूम धाम से कराते है वे धर्मात्मा मान लिए जाते है। उनकी सम्पदा ,और वैभव प्रभु की कृपा का परिणाम बतलाया जाता है।  इस प्रकार आजकल की धन की पूजा करने वाली दुनिया ने भगवान को भी धनवानों का प्रेमी और रक्षक बतलाना आरम्भ कर दिया है।

  मधुमक्खी, चीटीं आदि छोटे-छोटे प्राणी भी परिश्रम करके अपने साथ रहने वालों की सहायता करते हैं।

----------------------------------------------------------------------------------------------------------

Article Posted By: Manju Kumari

Work Profile: Hindi Content Writer

Share your feedback about my article.

 

0 Answer

Your Answer



I agree to terms and conditions, privacy policy and cookies policy of site.

Post Ads Here


Featured User
Apurba Singh

Apurba Singh

Member Since August 2021
Nidhi Gosain

Nidhi Gosain

Member Since November 2019
Scarlet Johansson

Scarlet Johansson

Member Since September 2021
Mustafa

Mustafa

Member Since September 2021
Atish Garg

Atish Garg

Member Since August 2020

Hot Questions


Om Paithani And Silk Saree



Quality Zone Infotech



Sai Nath University


Rampal Cycle Store



Om Paithani And Silk Saree



Quality Zone Infotech



Kuku Talks



Website Development Packages