श्री कृष्ण को श्राप से बचने के लिए सुदामा ने स्वीकारी थी उम्रभर की दरिद्रता
श्री कृष्ण को श्राप से बचने के लिए सुदामा ने स्वीकारी थी उम्रभर की दरिद्रता - भगवान् श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता में असीम प्यार और अनूठे त्याग की भावना समाहित है। सुदामा का गरीब होना केवल सांसारिक नजरिया है। जबकि सुदामा का व्यक्तित्व दृष्टि कोण से बेहद अमीर है। सुदामा के बारे में कहा जाता है की वे जन्मजात ब्रह्मज्ञानी थे ब्रह्मज्ञानी होने के कारण ही एक गरीब महिला की और से दिए गए निर्धन होने के श्राप से अपने अपने परम् मित्र श्री कृष्ण को बचाने के लिए स्वम् निर्धन बनना स्वीकार कर लिया। आखिर क्या था वह श्राप ? जिओ सुदामा ने ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार कर लिया।
क्यों और किसे दिया ब्राह्मण महिला ने श्राप - एक ब्राह्मणी थी जो की बहुत ही निर्धन थी।और भिक्षा मांगकर अपना जीवन यापन कर रही थी। एक दिन भिक्षा मांगती हुई वह महिला दर - दर भटकती रही और उसे लगभग पांच दिनतक भटकती रही तब जाकर उसे जाकर एक घर से दो मुठी चने मिले। चने मिलने पर वह महिला अपनी कुटिया में वापस चली गयी। उसे घर आते -आते रत हो गयी अब उस बुढ़िया ने सोचा की रात तो हो ही गयी है। अब सुबह में ही ठाकुर जी को भोग लगाकर ही ग्रहण कर लुंगी।
यह सोच कर उसने चनो को कपड़े में बांधकर रख दिए। और वह फिर से पानी पी कर ठाकुर जी का नाम लेकर सो गयी। कुछ समय के बाद ही महिला की कुटिया में चोर घुस आये। चोरो ने साडी कुटिया में धन ढूंढने की कोशिश की और धन नहीं मिला। तभी एक चोर की नजर उसी चने की पोटली पर पड़ी। उन्होंने सोचा की इसमें ही धन होगा तभी महिला की आँख खुल गयी। तभी बुढ़िया ने शोर मचाना शुरू किया लेकिन चोर भागने में सफल हो गए। शोर सुनकर गांव वाले भी एकत्रित होकर चोरो को पकड़ने के लिए भागे।
चोरो ने जान बचने के लिए संदीपन मुनि के आश्रम में शरण ली। संदीपन मुनि के आश्रम में ही कृष्ण और सुदामा शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। जब गुरु माता को शोर सुनाई दिया तो गुरु माता चोरो को ढूढ़ने आश्रम में चली गयी। चोर गुरु माता को भीतर आता देख के डर गए। चोरो की भागते समय चने वाली पोटली वही गिर गय। वही दूसरी तरफ जब बूढी महिला को चने वाली पोटली चोरी होने की जानकारी मिली। तो उसने आहात मन से श्राप दिया की मेरे चनो को जो भी खायेगा वह निर्धन हो जायेगा।
कैसे सुदामा ने श्री कृष्ण को श्राप से बचाया ? - सुबह में जब गुरु माता आश्रम की सफाई कर रही थी। तब वही चने की पोटली गुरु माता को मिली। गुरु माता ने चने की पोटली सुदामा और कृष्ण को देते हुए कहा की तुम और कृष्ण जंगल में लकड़ी लेने की लिए जाओ। यह पोटली पास में रख लो और भूख लगने पर दोनों ही खा लेना। सुदामा जी ब्रह्म ज्ञानी थे उन्हें पोटली पकड़ते ही सारी घटना का ज्ञान हो गया। यदि यह चने सृष्टि के पालन करता खा लेंगे तो सारी दुनिया केसामने मुश्किल खड़ी हो जाएगी।
इसीलिए सारे ही चने सुदामा ने स्वम् ही खा लिए। इस तरह सारी दुनिया को बचाने के लिए श्रापित चने स्वम् ही खाकर निर्धन होने का रास्ता चुन लिया। इस प्रकार बूढी महिला के द्वारा दिया गए निर्धन होने के श्राप से श्री कृष्ण को बचा लिया।
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Article Posted By: Manju Kumari
Work Profile: Hindi Content Writer
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