कंवर यात्रा का अर्थ और कांवर यात्रा के नियम
कंवर यात्रा का अर्थ और कांवर यात्रा के नियम - भगवन शिव को सावन का महीना काफी पसंद है इसलिए सावन के महीने को शिव का महीना भी कहा जाता है। कहा जाता है की शिव सावन के महीने में ही पृथ्वी की सैर करते है। और अपने भक्तो के बीच रहकर अपना आशीर्वाद देते है सावन के महीने में ही भगवन शिव के भक्त कांवर यात्रा करते है।कांवर यात्री भक्त को भगगवान से जोड़ने का एक सबसे ही आसान तरीका है कांवर यात्रा को करने से भगवान शिव अपने भक्तो पर प्रसन्न होते है और मन वांछित फल या मनोकामना को भी पूर्ण करते है।
कांवड़ यात्रा के ऊपर एक कथा प्रचलित है की जब समुद्र मंथनसावन के महीने में ही क्या गया था और समुद्र मंथन के दौरान ही जो के समय 14 रत्नो के साथ विष भी निकला था उसी विष को भगवान् शिव ने पीकर सृष्टि की रक्षा की थी विषपान के कारण ही उनका गला नीला पड गया तभी से उन्हें नीलकंठ कहा जाना लगा और ऐसा माना जाता है की विषपान के कारण ही भगवान् शिव के शरीर मे बहुत ही अधिक असहनीय जलन होने लगी थी उसी समय सभी देवताओ ने मिलकर गंगाजल को अर्पित किया था जलन को शांत करने के लिए ही भगवान् शिव पर गंगाजल चढ़ाया जाता है ऐसी मान्यता है की गंगा जल चढाने से विष का प्रभाव कम होता है और शिव भगवान् भी प्रसन्न होते है।
सबसे पहले कांवड़ यात्रा किसने की थी और कांवड़ यात्रा करने से क्या फल मिलता है - इस बात का कई जगह उल्लेखित है की रावण जो की भगवान् का परम् भक्त था उसी ने ही भगवान् शिव का परम् भक्त था और उसी ने ही भगवान् शिव की सबसे पहले कांवर यात्रा की थी। लंका पति रावण भगवान् को कई बार प्रसन्न करके वरदान प्राप्त किया था। सिर्फ रावण ही नहीं ऐसी भी मान्यता है की रावण का संघार करने वाले श्री राम ने भी कावरिये के रूप में वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग झारखण्ड के देवघर में है उस पर गंगाजल अर्पित किया था। ऐसा भी मन जाता है की कंधे पर कांवड़ लेकर भोले जी का नाम लेते हुए चलने से काफी पुण्यार्जन होते है हर एक पथ के साथ अश्व मेघ यज्ञ के बराबर ही फल की प्राप्ति होती है। कांवर यात्रा मन को शांति प्रदान करती है।जीवन की हर कठिन से कठिन परिस्थिति का सामना करने की शक्ति देती है।
कांवड़ को कैसे बनाते है - कांवड़ बनाने के लिए एक बांस जिसकी लम्बाई 3 से 4 फुट लम्बा हो। उसके दोनों किनारो पर एक टोकरी की तरह ही लटकाई जाती है उसमे गंगाजल रख सके। दोनों छोर को रंग बिरंगी चुन्नी से, फूलमाला से,और छोटे -छोटे खिलोने जैसे की भगवान् शिव के गले में सर्प होता उसी का खिलौना और तोता का खिलाना रुमाल ,चांदनी ,लड़ी व् सजावट के कई प्रकार के सामान बाजार में उपलब्ध है और विशेष प्रकार से सजाकर ही शिव शंकर को गंगाजल अर्पित किया जाता है।
कांवड़ कितने प्रकार की होती है ? - श्रद्धालु कई प्रकार की कावड़ शिवालयों में चढ़ाते हैं जिनमें खड़ी, बैठी, झूला, डाक, टोकणा, विशाल कांवड़, बैग कांवड़ प्रमुख हैं। न केवल युवा अपितु बच्चे और बूढ़े भी कांवड़ लाने में गर्व महसूस करते हैं।
(1) सामान्य कांवड़ और (2) बैठी कांवड़ ,(3) डाक कांवड़ ,(4) दांडी कांवड़ ,(5) टोकना कांवड़
(1) सामान्य कांवड़ और खडी कांवड़ - इस कांवड़ को दिन रात कंधे पर ही राखी जाती है और ऐसे दो या तीन लोग मिलकर लेट और जल चढ़ाते है।
(2) बैठी कांवड़ और झूला कांवड़ - इस कांवड़ बैकुंठी कांवड़ भी कहते है व् झूला कांवड़ को किसी स्टैंड या पेड़ के तने पर भी रात को रखकर और निर्धारित समय पर ही कांवड़ ले जाते है। और गंगाजल अर्पित करते है।
(3) डाक कांवड़ - यह कांवड़ बहुत ही तेजी से लायी जाती है 24 से 36 घंटो में शिवालय में लाकर अर्पित कर दी जाती है। डाक कांवड़ में छः - सात व्यक्ति की आवश्यकता होती है। एक वहां में खाने - पीने का सामन लादकर ले जाया जाता है। जहा से कावड़ उठा कर बरी - बरी से दौड़कर आगे बढ़ते हुए शिवालय तक ले पहुंचाया जाता है। जो व्यक्ति थक जाता है वह दूसरे व्यक्ति को कांवड़ दे देता है और इस प्रकार कांवड़ गतव्य स्थिति से पहुंच जाती है।
(4) दांडी कांवड़ - इस कांवड़ में शिव भक्त नदी से जल लेकर शिवालय तक दंड भरते हुए गंगाजल अर्पित करते है। यानि की अपने शरीर की लम्बाई को नापते हुए लेट -लेट कर अपनी कावड़ यात्रा को पूरी करते है। ये बहुत ही कठिन होता है।
(5) टोकना कांवड़ - इसमें एक भक्त पानी के दो स्टील के घड़ों को अर्थात टोकनों को गंगा जल से भरकर उनका मुंह सील कराकर धीमी गति से चलकर गंतव्य स्थान तक ले जाता है।
नियम - कांवड़ ले जाते समय कई नियमो का पालन किया जाता है इसमें भक्त अपने साथ बनियान ,कच्छ , तौलिया लेकर साथ में चलते है और सफाई का बहुत ही अधिक ही ध्यान दिया जाता है पैरो में हल्की चप्पल और कांवड़िया हलके भोजन जैसे दूध और फल का ही सेवन करते है। कांवड़ियों को शौच आदि के बाद भी स्नान करना पड़ता है और धरती पर सोना पड़ता है। खाना खाने के बाद भी स्नान करना, लघु शंका के बाद भी हाथ साफ करना, कहीं बैठने के बाद चलते वक्त भी हाथ साफ करके चलना पड़ता है।
वर्तमान समय में कांवड़ के रूप भी बदल गयेहै कांवड़ को बहुत ही विशाल बनवा लेते है और कई लोग लगभग 10 से 12 लोग इसे उठा के चलते है। कई बार तो कांवड़ इतनी विशाल बनवा ली जाती है की उसमे पहिये भी लगवा लिए जाते है और D J और म्यूजिक भी लगवा लिए जाते है और धूमधाम से नाचते और झूमते कांवड़िये मस्ती में चलते है जो की कांवड़ियो की शोभा ही बढ़ जाती है। इस प्रकार कई रूप कांवड़ और कांवड़ियों के देखने को मिलते है।
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Article Posted By: Manju Kumari
Work Profile: Hindi Content Writer
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