पित्र कैसे खुश होते हैं पित्र प्रसन्न मनोकामना पूर्ण
पित्र कैसे खुश होते हैं पित्र प्रसन्न मनोकामना पूर्ण - भाद्रपद मास की पूर्णिमा से पितृ पक्ष की शुरुआत हो जाती है। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष कीअमावस्या तिथि तक पितृ पक्ष रहता है। हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का बहुत अधिक महत्व होता है। पितृ पक्ष को श्राद्ध पक्ष के नाम से भी जाना जाता है। पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। इस पक्ष में विधि- विधान से पितर संबंधित कार्य करने से पितरों का आर्शावाद प्राप्त होता है और पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
तीन वृक्ष पितरो के तुल्य है पीपल बेल और वट वृक्ष। कभी भी श्राद्ध पक्ष में यदि आप कुछ भी न कर पाए ,या कुछ भी न कर सकते हो ,तो किसी भी पेड़ का एक पत्ता लेकर पान या पीपल बेल या वट का एक पत्ता लेकर उस पर एक पूड़ी ,खीर या मीठा और थोड़ा सा नमकीन वस्तु बनाकर श्राद्ध पक्ष में किसी भी एक दिन अपनी कामना करके ,अपने पूर्वजो के लिए इन तीन वृक्षों के नीचे भोजन को रखकर आ जाइये। इससे पितरो को शांति मिलती है।
तीन पक्षी पितरो के तुल्य है कौआ , हंस और गरुड़। कौआ और कुत्ता दो ऐसे होते है जिनको आधे घंटे पहले ,24 घंटे पहले 48 घंटे पहले किया होने वाला है सब मालूम हो जाता है क्योकि यमलोक में जहाँ यमराज निवास करते है। कुत्ता और कौआ उस स्थान का भाग ग्रहण करते है और उनको ये ज्ञान पूर्व से यमराज से प्राप्त होता रहता है। कौआ और कुत्ता,जब कोई घटना घटने वाली होती है तो कुत्ता रोने लगता है , कौआ आकर देख जाता है ,कोई आ रहा है तो कौआ आएगा ,कोई भाव सूचक है तो कौआ आएगा।
उसका भी नियम है की कौआ कहा आकर बैठा है। कहा से बोलता है ,कहा बैठा है ,इसका भी लेखन हमारे शास्त्रों में विधान है। तीन पक्षी और तीन वृक्ष पितरो के तुल्य है। पक्षियों में कौआ हंस और गरुड़। ये पित्रों के तुल्य है जो की अधो गति में मर जाते है जिनको पिंड नहीं मिलता है ,जिनका तर्पण नहीं होता ,ब्रह्मण को भोज नहीं मिलता है ,जो की मर जाते है जिनका अंतिम संस्कार नहीं होता ,जिनकी गति बिगड़ जाती है ,ऐसे जीव कौआ के अंश में प्रकट हो जाते है।
जो की पूर्ण फल लेकर जाते है ,पितृ लोक में जगह नहीं होती ,बैकुंठ लोक में जगह नहीं होती यदि देव लोक में जगह नहीं होती ,तो कौआ के अंश में, गरुड़ के अंश में ,या हंस के अंश में डाल दिया जाता है। फिर अगला वर्णन किया तीन पशु कुत्ता गाय और हांथी ये पशु भी पित्रों के तुल्य होते है। शिव महा पुराण की कथा कहती है की यदि श्राद्ध पक्ष में 'गया' नहीं जा सकते , तो गाय के मुख में 'गयासुर' ने सोलह दिन तक वाश करेगा। गाय के मुख में शरद के समय पर यदि कोई रोटी देगा ,उसको गया जी में पिंड दान करने का शुभ फल का सुख प्राप्त होगा।
ये गया सुर का वर गौ माता के लिए था। तो गाय के मुख में 16 दिन के लिए गया क्षेत्र का पिंड का भाग प्राप्त होगा। कुत्ता गाय और हांथी कुत्ते को रोटी क्यों देते है ? क्योकि स्वान पित्रों को अपना भाग प्रदान कर देता है स्वान रखता नहीं है चुकाता देता है। फिर तीन है जलचर है जो की पित्रों के तुल्य होते है। मछली ,कछुआ और नाग वो भी पित्रों के तुल्ये माने जाते है। पिंड जो दिया जाता है वो पानी में डाले जाते है। मछली जिसको पति है वो पित्रों को प्राप्त होता है ।
16 श्राद्ध के अंतर्गत यदि आपके दिए हुए भाग को पा लेता है तो वो जीव उसी समय पर तर जाता है ,कछुआ और महाराज नाग भी पित्रों के तुल्य माने जाते है।
पितृ पक्ष का महत्व - पितृ पक्ष में पितर संबंधित कार्य करने से व्यक्ति का जीवन खुशियों से भर जाता है। इस पक्ष में श्राद्ध तर्पण करने से पितर प्रसन्न होते हैं और आर्शीवाद देते हैं। पितर दोष से मुक्ति के लिए इस पक्ष में श्राद्ध, तर्पण करना शुभ होता है।