Jivitputrika Vrat | Jitiya Vrt  |जीवित्पुत्रिका जितिया ,पारण मुहूर्त व्रत कथा , विधि-विधान और नियम

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Jivitputrika Vrat | Jitiya Vrt  |जीवित्पुत्रिका जितिया ,पारण मुहूर्त व्रत कथा , विधि-विधान और नियम - हिंदू धर्म में कई त्योहार बेहद धूमधाम से मनाए जाते हैं, इन्हीं त्योहारों में से एक है जिउतिया पर्व। पंचांग के मुताबिक प्रत्येक वर्ष आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जितिया व्रत किया जाता है। हर साल सुहागन स्त्रियां ये व्रत रखती हैं और संतान के हित की प्रार्थना करती हैं। ऐसा माना जाता है कि जितिया व्रत करने से संतान की लंबी उम्र होती है। इस व्रत को जीवित्पुत्रिका और जितिया व्रत भी कहते हैं।

पूजा विधि - इस व्रत में तीन दिन तक उपवास किया जाता है। पहले दिन महिलाये स्नान करने के बाद भोजन ग्रहण करती है ,फिर दिन भर कुछ नहीं खाती है। व्रत का दूसरा दिन अष्टमी को पड़ता है और यही मुख्य दिन होता है। इस दिन महिलाये निर्जला व्रत रखती है। व्रत के तीसरे  दिन पारण करने के बाद ही भोजन ग्रहण करती है।

जितिया का महत्व - पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत का महत्व महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। कहते हैं कि उत्तरा के गर्भ में पल रहे पांडव पुत्र की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्य कर्मों से उसे पुनर्जीवित किया था। तब से ही स्त्रियां आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को निर्जला व्रत रखती हैं। कहते हैं कि इस व्रत के प्रभाव से भगवान श्री कृष्ण व्रती स्त्रियों की संतानों की रक्षा करते हैं।

क्या है पौराणिक कथा - धार्मिक मान्यताओ के मुताबिक बताया जाता है की एक विशाल पाकड़ के पेड़ पर एक चील रहती थी। उसी पेड़ के नीचे एक सियारिन रहती थी दोनों पक्की सहेलिया थी,दोनों ने कुछ महिलाओ को देखकर जितिया व्रत करने का संकल्प लिया और भगवान श्री जीऊतवाहन की पूजा और व्रत करने का प्रण ले लिया। 

लेकिन जिस दिन दोनों को व्रत रखना था, उसी दिन शहर के एक बड़े व्यापारी की मृत्यु हो गई और उसके दाह संस्कार वही मरुस्थलीय जगह पर किया गया ,जहा पाकड़ का पेड़ था। दिन बीतने के बाद जब रात हुई ,तो वह मौसम ख़राब हो गया। बिजली कड़कने लगी और बदल भी गरजने लगे। वह पर बहुत बड़ा तूफ़ान गया था। सियारिन को अब भूख लगने लगी थी। मुर्दा देखकर वह खुद को रोक सकी और उसने व्यापारी के शरीर को खा लिया और उसका व्रत टूट गया। पर चील ने संयम रखा और नियम श्रद्धा से अगले दिन व्रत का पारण किया।

अगले जन्म में दोनों सहेलियों ने ब्राह्मण परिवार में पुत्रियों के रूप में जन्म लिया उनके पिता का नाम भास्कर था। चील , बड़ी बहन बानी और सिहरन ,छोटी बहन के रूप में जन्मी। चील का नाम शीलवती रखा गया। शीलवती की शादी बुद्धिसेन के साथ हुई। जबकि सियारिन का नाम कपुरावती रखा गया और उसकी शादी उस नगर के राजा मलायकेतु से हुई।अब कपुरवती कंचन वती नगर की रानी बन गयी।

भगवान् जिताऊ के आशीर्वाद से शीलवती के सात बेटे हुए पर कपुरावती के सभी बच्चे जन्म लेते ही मर जाते थे। कुछ समय बाद शीलवती के सातों पुत्र बड़े हो गए और वे सभी राजा के दरबार में काम करने लगे। कपुरावती के मन में उन्हें देख इर्ष्या की भावना गयी, उसने राजा से कहकर शीलवती के सातो बेटे के सर काट दिए।उन्हें सात नए बर्तन मंगवाकर उसमें रख दिया और लाल कपड़े से ढककर शीलवती के पास भिजवा दिया।

यह देख भगवान जीऊतवाहन ने मिट्टी से सातों भाइयों के सिर बनाए और सभी के सिरों को उसके धड़ से जोड़कर उन पर अमृत छिड़क दिया जिससे उनमें जान गई।और इस प्रकार शीलवती के सातो बेटे जीवित हो गए और घर लौट आये।जो कटे हुए सर रानी ने भेजे थे वे सभी फल बन गए। और वह दूसरी ओर रानी कपुरवती बुद्धिसेन के घर से पुत्रो की मृत्यु का समाचार सुनने के लिए व्याकुल थी जब बहुत देर तक कोई समाचार नहीं आया।

तब कपुरवती स्वम् ही बड़ी बहन के घर चली गयी। वह सबको जिन्दा ओर खुश देखकर वह बेहोस हो गयी। जब उसे होस आया तब उसने अपनी बहन को सारी बात बताई। अब उसे अपनी गलती पर पछतावा हो रहा था। भगवान जीऊतवाहन की कृपा से शीलवती को पिछले जन्म की सारी बातें याद थी। वह कपुरवती को लेकर उसी पाकड़ के पेड़ के पास गयी। फिर उसे सारी बातें बताई। सारी बातें सुनकर कपुरवती बेहोस हो गयी। ओर मृत्यु को प्राप्त हुई।

जब राजा को पता चला तो राजा ने कपुरवती का उसी पाकड़ के पेड़ के नीचे डाह संस्कार कर दिया। कहानी सुनने वालो ओर पढ़ने वालो ओर सुनाने वालो का भगवान जीऊतवाहन भला करे ओर आशीर्वाद दे।

बोलो भगवान जीऊतवाहन की जय हो।

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Article Posted By: Manju Kumari

Work Profile: Hindi Content Writer

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