संकष्टी चतुर्थी का महत्व , पूजा विधि आरती सहित और व्रत के नियम एवं संकष्टी चतुर्थी व्रत की कथा -
संकष्टी चतुर्थी का महत्व , पूजा विधि आरती सहित और व्रत के नियम एवं संकष्टी चतुर्थी व्रत की कथा -
इस दिन भगवान गणेश जी का विधि- विधान से पूजन किया जाता है। संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत-उपवास कर भगवान गणेश जी को प्रसन्न किया जाता है। कहते हैं भगवान गणेश जी अपने भक्तों से खुश होकर उनके सभी दुख हर लेते हैं और सुखमय जीवन का आशीर्वाद देते हैं।वैसे तो हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी, और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी मनाई जाती है। इस दिन विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश की पूजा-उपासना की जाती है। भगवान गणेश को 108 नामों से स्मरण किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति संकष्टी चतुर्थी के दिन सच्ची श्रद्धा और भक्ति से गणपति बप्पा की पूजा करता है। उसके सभी दुःख और क्लेश दूर हो जाते हैं। साथ ही व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं यथाशीघ्र पूर्ण होती है।
संकष्टी चतुर्थी का महत्व - संस्कृत भाषा में संकष्टी का अर्थ संकट या बाधा हरना होता है , इसलिए भक्तों को के बीच संकष्टी चतुर्थी का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन गणेश जी का विधि-विधान से पूजन करने से सभी दुख दूर होते हैं। भगवान गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए संकष्टी चतुर्थी का दिन सबसे शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि यदि आप किसी परेशानी का सामना कर रहे हैं तो संकष्टी चतुर्थी के दिन गणेश जी का पूजन करने से सभी परेशानियां और बाधाएं दूर होती हैं। बता दें कि किसी भी पूजा या शुभ कार्य से पहले गणेश जी का पूजन किया जाता है
संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि - यदि आप भी संकष्टी चतुर्थी का व्रत कर रहे हैं तो इसकी पूजा विधि को जरूर जान लें। इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद मंदिर में गणेश जी की पूजा कर उन्हें जल चढ़ाएं और उनके सामने धूप - दीप प्रज्जवलित करें। ध्यान रखें कि संकष्टी चतुर्थी के दिन किसी भी रूप में चावल, गेहूं या दाल का सेवन नहीं करना चाहिए। शाम को दूर्वा घास, फूल, अगरबत्ती और दीपक से भगवान गणेश जी की पूजा करें। इसके बाद गणेश जी की आरती करें और उन्हें लड्डू का भोग लगाएं। मान्यता है कि गणेश जी को लड्डू अतिप्रिय हैं और इससे उन्हें प्रसन्नता मिलती है। इसके बाद चंद्रोदय के दौरान चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोलें।
संकष्टी चतुर्थी का व्रत के नियम -
(1) संकष्टी चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
(2) इसके बाद घर में पूजा स्थल की साफ सफाई करें और भगवान गणेश जी के सामने व्रत का संकल्प लें।
(3) इसके बाद गणेश जी की पूजा करें और उनकी मूर्ति के सामने धूप-दीप प्रज्जविलत करें. व्रत के दौरान ‘ऊॅं गणेशाय नमः’ मंत्र का जाप करें. (4) कोशिश करें कि इस दिन में जब भी समय मिले, इस मंत्र का जाप अवश्य करें।
(5) संकष्टी चतुर्थी के दिन चावल, गेहूं और दाल का सेवन करना निषेध माना जाता है और इसलिए इस दिन गलती से भी इन तीन चीजों का सेवन न करें।
(6) इस व्रत के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
(7) घर में केवल सात्विक भोजन ही बनाना चाहिए. इस दिन भूलकर भी मांस और मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए।
(8) व्रत के दिन क्रोध पर काबू रखना चाहिए और किसी के लिए भी अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
(9) रात को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है।
संकष्टी चतुर्थी का व्रत विधि-विधान से करने से भगवान गणेश जी प्रसन्न होते हैं और अपने भक्त को सुखमय जीवन का आशीर्वाद देते हैं।
इस दिन ब्रह्म बेला में उठें। इसके बाद नित्य कर्म से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान करें। अब सर्वप्रथम आमचन कर भगवान गणेश के निम्मित व्रत संकल्प लें और भगवान भास्कर को जल का अर्घ्य दें।
संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा - एक बार की बात है जब माता पार्वती भगवान् शिव जी के साथ बैठीं थी तो उन्हें चोपड़ खेलने की बड़ी इच्छा जागृत हुई। इसके पश्चात उन्होंने शिव जी से चोपड़ खेलने की बात कही लेकिन इस खेल में हार - जीत का फैसला कौन करता इसके लिए शिव जी और माता पार्वती जी ने मिटटी से एक मूर्ति बनाई और उसमें प्राण डाल दिए। खेल शुरू हुआ और लगातार चार बार माता पार्वती विजयी हुई लेकिन पांचवी बार बालक ने शिव जी को विजयी घोषित कर दिया,जिससे माता को बहुत क्रोध आया।
उसी समय माता ने श्राप दे दिया की बालक लंगड़ा हो जाएगा। इसके पश्चात बालक खूब रोया लेकिन इसका कोई उपाय नहीं निकला। तत्पश्चात, माता ने कहा-आने वाले समय में इस स्थान पर नागकन्याएं आएंगी। उनसे व्रत विधि जानकर गणेश जी का पूजा करना, तो तुम्हें श्राप से मुक्ति मिल जाएगी। कालांतर में नागकन्या ने बालक को गणेश चतुर्थी का व्रत विधि सहित बताई।
21 दिनों तक उसी बालक ने भगवान श्रीगणेश जी का व्रत किया। जिससे गणेश जी बहुत प्रसन्न हुए और गणेश जी ने उस बालक को श्राप से मुक्ति कर दिया। अतः संकष्टी चतुर्थी व्रत का विशेष महत्व है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का आगमन होता है।
संकष्टी चतुर्थी की व्रत की आरती –
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥ जय…
एक दंत दयावंत चार भुजा धारी। माथे सिंदूर सोहे मूसे की सवारी ॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया। बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥ जय…
हार चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा। लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा ॥
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी। कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी॥ जय…
‘सूर’ श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा। जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥ जय…
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Article Posted By: Manju Kumari
Work Profile: Content Writer
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