प्रकृति और भारतीय परंपरा का उत्सव है वसंत | वसंत पंचमी उत्सव और महत्व | मां सरस्वती का आविर्भाव दिवस -

413
Views

प्रकृति और भारतीय परंपरा का उत्सव है वसंत | वसंत पंचमी उत्सव और महत्व |

मां सरस्वती का आविर्भाव दिवस -

वसंत तो सारे विश्व में सभी जगह पर ही आता है पर भारत का वसंत कुछ विशेष ही होता है। भारत में वसंत केवल फागुन में आता है और फागुन केवल भारत में ही आता है। गोकुल और बरसाने में फागुन का फाग, अयोध्या में गुलाल और अबीर के उमड़ते बादल, खेतों में दूर-दूर तक लहलहाते सरसों के पीले-पीले फूल, केसरिया पुष्पों से लदे टेसू की झाड़ियां, होली की उमंग भरी मस्ती, जवां दिलों को होले-होले गुदगुदाती फागुन की मस्त बयार, भारत और केवल भारत में ही बहती है।

वसंत पंचमी उत्सव और महत्व - माघ शुक्ल पंचमी को “वसंत पंचमी” उत्सव मनाया जाता है। इसे “श्री पंचमी”, ऋषि पंचमी, मदनोत्सव, वागीश्वरी जयंती और “सरस्वती पूजा उत्सव” भी कहा जाता है। इस दिन से वसंत ऋतु प्रारंभ होती है और होली उत्सव की शुरुआत होती है।

                                                                    

माघ शुक्ल पंचमी को “वसंत पंचमी” उत्सव मनाया जाता है। इसे “श्री पंचमी”,ऋषि पंचमी, मदनोत्सव, वागीश्वरी जयंती और “सरस्वती पूजा उत्सव” भी कहा जाता है। इस दिन से वसंत ऋतु प्रारंभ होती है और होली उत्सव की शुरुआत होती है।

 

वसंत पंचमी के दिन ही होलिका दहन स्थान का पूजन किया जाता है और होली में जलाने के लिए लकड़ी और गोबर के कंडे आदि एकत्र करना शुरूकरते हैं। इस दिन से होली तक 40 दिन फाग गायन यानी होली के गीत गाए जाते हैं। होली के इन गीतों में मादकता, एन्द्रिकता, मस्ती, और उल्लास की पराकाष्ठा होती है और कभी-कभी तो समाज व पारिवारिक संबंधों की अनेक वर्जनाएं तक टूट जाती हैं।

  

भारत की छः ऋतुओं में वसंत ऋतु विशेष है। इसे ऋतुराज या मधुमास भी कहते हैं। “वसंत पंचमी” प्रकृति के अद्भुत सौन्दर्य, श्रृंगार और संगीत की मनमोहक ऋतु यानी ऋतुराज के आगमन की सन्देश वाहक है। वसंत पंचमी के दिन से शरद ऋतु की विदाई के साथ पेड़-पौधों और प्राणियों में नवजीवन का संचार होने लगता है। प्रकृति नवयौवना की भांति श्रृंगार करके इठलाने लगती है।

 

पेड़ों पर नई कोपलें, रंग-बिरंगे फूलों से भरी बागों की क्यारियों से निकलती भीनी सुगंध, पक्षियों के कलरव और पुष्पों पर  भंवरों की गुंजार से वातावरण में मादकता छाने लगती है। कोयलें कूक-कूक के बावरी होने लगती हैं।

वसंत ऋतु में श्रृंगार रस की प्रधानता है और रति इसका स्थायी भाव है, इसीलिए वसंत के गीतों में छलकती है मादकता, यौवन की मस्ती और प्रेम का माधुर्य। भगवान् श्री कृष्ण वसंत पंचमी उत्सव के अधि-देवता हैं अतः ब्रज में यह उत्सव विशेष उल्लास और बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। सभी मंदिरों में उत्सव और भगवान् के विशेष श्रृंगार होते हैं।

 

 

वृन्दावन के श्री बांकेबिहारी और शाह जी के मंदिरों के वसंती कक्ष खुलते हैं। वसंती भोग लगाए जाते है और वसंत राग गाए जाते हैं महिलाएं और बच्चे वसंती-पीले वस्त्र पहनते हैं। वैसे भारतीय इतिहास में वसंती चोला त्याग और शौर्य का भी प्रतीक माना जाता है जो राजपूती जौहर के अकल्पनीय बलिदानों की स्मृतियों को मानस पटल पर उकेर देता है।

 

मां सरस्वती का आविर्भाव दिवस - वसंत पंचमी ज्ञान, कला और संगीत की देवी मां सरस्वती  का आविर्भाव दिवस है। सृष्टि के प्रारंभिक काल में ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की पर वे अपनी सृजना से संतुष्ट नहीं थे क्योंकि चारों ओर मौन छाया था।विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर देवी का था जिसके एक हाथ में वीणा थी तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी।

 

ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी, तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा।

सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-

 

प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।

 

अर्थात् ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं।

 

हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। वास्तव में सरस्वती का विस्तार ही वसंत है, उन्ही का स्वरूप है वसंत|  अतः वसन्त पंचमी को सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता हैं और इस दिन ज्ञान, कला और संगीत की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह दिन विद्या आरम्भ के लिए शुभ है अतः हिन्दू रीति के अनुसार बच्चों को उनका पहला अक्षर लिखना सिखाया जाता है।

 

महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने वर्ष 1996 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय का शुभारम्भ भी वसंत पंचमी के दिन ही किया था। हिन्दी साहित्य की अमर विभूति और कालजयी सरस्वती वन्दना “वर दे, वीणावादिनि वर दे!; प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव, भारत में भर दे!” के रचियता महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का जन्मदिवस (28.02.1899) भी वसंत पंचमी ही था।

भारतीय परंपरा का उत्सव - भारत के शास्त्रीय संगीत के छः रागों में एक राग है “वसंत राग”। अमृतसर के हरमंदिर साहिब में वसंत पंचमी के दिन से वसंत राग क़ा गायन शुरू होता है जो वैसाखी के दिन (13 अप्रैल) तक चलता है| वैसाखी के दिन ही सिखों के दशम गुरु गोविन्द सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी।

 

भारतीय ज्योतिष में वसंत पंचमी को अत्यंत शुभ दिन माना गया है। गृह-प्रवेश या विवाह आदि मांगलिक कार्यों के लिए, नए उद्योग प्रारंभ करने और विद्या आरम्भ के लिए इसे अबूझ मंगलकारी दिन कहा गया है।

 

पौराणिक एवं एतिहासिक महत्व - इस पर्व के साथ अतीत की अनेक प्रेरक घटनाओं भी याद आती है। त्रेता युग की घटना है। रावण द्वारा सीता के हरण के बाद श्रीराम उसकी खोज में दक्षिण की ओर बढ़ते हुए दंडकारण्य में शबरी नामक भीलनी के आश्रम पर वसंत पंचमी के दिन ही पहुंचे थे। गुजरात के डांग जिले में वह स्थान हैं जहां शबरी मां का आश्रम था। उस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में उनकी श्रद्धा है कि श्रीराम आकर यहीं बैठे थे। वहां शबरी माता का मंदिर भी है।

वसंत पंचमी का दिन हमें वर्ष 1192 में पृथ्वीराज चौहान के बलिदान की भी याद दिलाता है। उन्होंने मोहम्मद गौरी को तराइन के युद्ध में पराजित किया और उदारता दिखाते हुए जीवित छोड़ दिया, पर जब दूसरी बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद गौरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ अफगानिस्तान ले गया और उनकी आंखें फोड़ दीं। गौरी ने मृत्युदंड देने से पूर्व उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा। पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई के परामर्श पर गौरी ने ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट करने का संकेत किया, तभी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संकेत दिया।

 

चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।

ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान ॥

 

पृथ्वीराज चौहान ने इस बार भूल नहीं की। उन्होंने तवे पर हुई चोट और चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा, वह गौरी के सीने में जा धंसा। इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे के पेट में छुरा भोंककर आत्मबलिदान दे दिया।

 

इस दिन हमें मां भारती के दो अन्य महान सपूतों गुरु गोविन्द सिंह के शिष्य वीर बन्दा बैरागी और छत्रपति शिवाजी महाराज के सेनापति तन्हाजी मालसुरे को भी श्रद्धांजलि अर्पित करनी चाहिए जिनका बलिदान भी वसंत पंचमी को ही हुआ था।

 

सूफी वसंत - एक किंवदंती है कि 12वी सदी के सूफी संत चिश्ती निजामुद्दीन औलिया अपने जवान भतीजे की मृत्यु से अत्यंत दुखी रहने लगे थे|  मशहूर शायर अमीर खुसरो ने वसंत पंचमी के दिन कुछ औरतों को पीले कपडे पहन कर पीले फूल ले जाते देखा तो खुद भी पीले कपडे पहन कर पीले फूल लेकर चिश्ती साहब के पास पहुँचे| उन्हें देख कर चिश्ती साहब के चहरे पर हँसी आ गयी| तभी से दिल्ली में निजामुद्दीन औलिया की दरगाह और चिश्ती समूह की अन्य सभी दरगाहों पर वसंत मनाया जाने लगा|

भारत उत्सवों का देश है और यहाँ हर उत्सव अलग प्रकार का है। वसंत पंचमी उत्सव है वसंत ऋतु का, जिसके आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। शिक्षाविद इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं, तो कलाकार, चाहें वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, वे सब इस  दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं। साहित्यकारों के लिए वसंत प्रकृति के सौन्दर्य और प्रणय के भावों की अभिव्यक्ति का अवसर है तो वीरों के लिए शौर्य के उत्कर्ष की प्रेरणा है। 

 

ज्ञात हो कि मां शारदा का प्राचीनतम मंदिर पकिस्तान अधिकृत कश्मीर में मुज़्ज़फ़राबाद के निकट पवित्र कृष्ण-गंगा नदी के तट पर स्थित है। पौराणिक मान्यता है कि स्वयं ब्रह्मा जी ने इस मंदिर का निर्माण कर मां शारदा को वहां स्थापित किया था इसीलिए उस मंदिर को ही मां शारदा का प्राकट्य स्थल माना जाता है। आद्य गुरु शंकराचार्य ने इसी शारदा पीठ में मां शारदा के दर्शन किए थे।

 

कश्मीर पर मां शारदा की ऐसी महती कृपा हुई कि शिवपुराण, कल्हण की राजतरंगणी, चरक-संहिता, पतंजलि का अष्टांग-योग और अभिनव गुप्त का नाट्यशास्त्र जैसे महान ग्रंथों की रचना कश्मीर में हुई। हमें सरस्वती का प्राकट्य दिवस, वसंत पंचमी और जीवन के महान संकल्पों के दिवस के रूप में मनाना चाहिए।

===============================================

Article Posted By: Manju Kumari

Work Profile: Content Writer

Share your feedback about my article.

0 Answer

Your Answer



I agree to terms and conditions, privacy policy and cookies policy of site.

Post Ads Here


Featured User
Apurba Singh

Apurba Singh

Member Since August 2021
Nidhi Gosain

Nidhi Gosain

Member Since November 2019
Scarlet Johansson

Scarlet Johansson

Member Since September 2021
Mustafa

Mustafa

Member Since September 2021
Atish Garg

Atish Garg

Member Since August 2020

Hot Questions


Om Paithani And Silk Saree



Quality Zone Infotech



Sai Nath University


Rampal Cycle Store



Om Paithani And Silk Saree



Quality Zone Infotech



Kuku Talks



Website Development Packages