कावड़ यात्रा और महादेव कहानी

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कावड़ यात्रा की कहानी भगवान शिव और उनके भक्तों के गहरे संबंध को दर्शाती है। इस कहानी का आधार पुराणिक कथाओं में मिलता है। यहाँ एक प्रसिद्ध कहानी है जो कावड़ यात्रा और भगवान शिव के बीच के संबंध को बताती है:

### समुद्र मंथन और भगवान शिव

समुद्र मंथन की कथा हिंदू पुराणों में बहुत प्रसिद्ध है। देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया था। इस मंथन से अमृत के साथ-साथ विष भी निकला, जिसे "हलाहल" विष कहा गया। यह विष इतना घातक था कि इससे पूरे संसार का विनाश हो सकता था।

देवताओं और असुरों ने इस विष से बचने के लिए भगवान शिव की शरण ली। भगवान शिव ने संसार को बचाने के लिए इस विष का पान किया। विष को अपने कंठ में धारण करने के कारण उनका कंठ नीला हो गया, और वे "नीलकंठ" कहलाए।

### गंगाजल से भगवान शिव का अभिषेक

विष का प्रभाव शांत करने के लिए देवताओं ने भगवान शिव का गंगाजल से अभिषेक किया। गंगा नदी को पवित्र माना जाता है और यह भगवान शिव की जटाओं से बहती है। गंगाजल से भगवान शिव का अभिषेक करने से विष का प्रभाव कम हो गया और भगवान शिव ने संसार की रक्षा की।

### भक्तों की भक्ति और कावड़ यात्रा

इस पुराणिक कथा से प्रेरित होकर, भक्तगण गंगाजल लेकर भगवान शिव के मंदिरों में जाकर उनका अभिषेक करते हैं। यह अभिषेक भक्तों की भगवान शिव के प्रति भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है। 

कावड़ यात्रा के दौरान भक्तगण गंगा नदी से पवित्र जल लेते हैं और उसे कावड़ में रखकर भगवान शिव के मंदिरों में ले जाते हैं। वहाँ वे शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाकर भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। यह यात्रा भक्तों के लिए एक धार्मिक अनुष्ठान और तपस्या का रूप है।

### एक और प्रसिद्ध कथा: रावण और कावड़

एक अन्य कथा के अनुसार, राक्षस राजा रावण, जो भगवान शिव का महान भक्त था, उसने कैलाश पर्वत पर भगवान शिव की तपस्या की थी। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने रावण को दर्शन दिए और उसे वरदान मांगने को कहा। रावण ने भगवान शिव से एक शिवलिंग प्राप्त किया और उसे अपने राज्य लंका ले जाने की इच्छा व्यक्त की।

भगवान शिव ने उसे एक शिवलिंग दिया और कहा कि वह इसे कहीं भी रास्ते में ना रखे, अन्यथा यह वहीं स्थापित हो जाएगा। रावण शिवलिंग को लेकर लंका की ओर चल पड़ा। रास्ते में उसे लघुशंका का अनुभव हुआ और उसने एक ब्राह्मण (भगवान विष्णु द्वारा प्रकट) को वह शिवलिंग पकड़ा दिया। ब्राह्मण ने शिवलिंग को पृथ्वी पर रख दिया और वह वहीं स्थापित हो गया।

इस कथा से प्रेरित होकर, भक्तगण कावड़ यात्रा करते हैं और गंगाजल लेकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं, यह मानते हुए कि यह भगवान शिव को प्रसन्न करेगा और वे उनकी मनोकामनाएं पूर्ण करेंगे।

### समापन

कावड़ यात्रा भगवान शिव के प्रति भक्तों की गहरी आस्था और भक्ति का प्रतीक है। यह यात्रा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि भक्तों के लिए आत्मिक शांति, पवित्रता और भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का एक साधन है। इस यात्रा में भक्त अपने पापों का प्रायश्चित करते हैं, मनोकामनाओं की पूर्ति की प्रार्थना करते हैं और भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति और श्रद्धा को व्यक्त करते हैं।

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